गुरुवार, 24 जून 2010

काँच की बरनी


जीवन में सबकुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, तब कुछ तेजी से पा लेने की भी इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बरनी टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।

उन्होंने छात्रों से पूछा, "क्या बरनी पूरी भर गई ?" "हाँ," आवाज आई। फिर प्रोफेसर ने कंकर भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो जहाँ-जहाँ जगह थी वहाँ कंकर समा गए। प्रोफेसर ने फिर पूछा, "क्या अब बरनी भई गई है?" छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफेसर ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। रेत भी उस बरनी में जहाँ संभव था बैठ गई। प्रोफेसर ने फिर पूछा- "क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई न?" हाँ, अब तो पूरी भर गई है," सभी ने कहा।

प्रोफेसर ने समझाना शुरू किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंद को भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक समझो। छोटे कंकर का मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है। रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार-सी बातें, मनमुटाव, झगड़े हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती या कंकर भर दिए होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें