शनिवार, 17 जुलाई 2010

भागवत-2 : खुद से परिचित होने का ग्रंथ है भागवत


आज से हम एक ऐसे ग्रंथ में प्रवेश कर रहे हैं जो वैष्णवों का परम धन है, पुराणों का तिलक है, ज्ञानियों का चिंतन, संतों का मनन, भक्तों का वंदन तथा भारत की धड़कन है। किसी का सौभाग्य सर्वोच्च शिखर पर होता है तब उसे श्रीमद्भागवत पुराण कहना, सुनना और पढऩा मिलता है।

भागवत महापुराण वह शास्त्र हैं जिसमें बीते कल की स्मृति, आज का बोध और भविष्य की योजना है। तो आज भागवत में प्रवेश करने से पहले थोड़ा भीतर उतरने की तैयारी करिए। यह स्वयं मूल से परिचित कराने का ग्रंथ है। भगवान ने भागवत की पंक्ति-पंक्ति में ऐसा रस भरा है कि वे स्वयं लिखते हैं-
पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरवो रसिका भुवि भावुका:।
हमारे भीतर जो रहस्य भरा हुआ है उसको उजागर करने के लिए भागवत एक अध्यात्म दीप है जैसे हम भोजन करते हैं तो हमको संतुष्टि मिलती है उसी प्रकार भागवत मन का भोजन है। जब मन को ऐसा शुद्ध भोजन मिलेगा तो मन संतुष्ट होगा, पुष्ट होगा और तृप्त होगा और जिसका मन तृप्त है उसके जीवन में शांति है।
भागवत में प्रवेश करें तो कुछ बातें स्पष्ट करते चलें। हम जिस रूप में इस सद्साहित्य को पढ़ते चलेंगे, हमारे तीन आधार हैं। संत और महात्माओं का यह कहना है और शोध से ज्ञात भी हुआ है। पहली बात है भगवान ने अपना स्वरूप भागवत में रखा तो भागवत भगवान का स्वरूप है। दूसरी बात इसमें ग्रंथों का सार है और तीसरी बात हमारे जीवन का व्यवहार है। ये तीन बातें भागवत में हैं।
भगवान बसे हैं भागवत में
भागवत में 12 स्कंध हैं (12 चेप्टर)। उन 12 स्कंधों में 335 छोटे-छोटे अध्याय हैं जिन्हें सेक्शन कह लें और 18 हजार श्लोक हैं। जो 12 स्कंध हैं उसमें भगवान का स्वरूप बताया है। पहला और दूसरा अध्याय भगवान के चरण , तीसरा और चौथा स्कंध भगवान की जंघाएं, पांचवां स्कंध भगवान की नाभि , छठा वक्षस्थल, सात और आठ बाहू , नौ कंठ, दस मुख, ग्यारह में ललाट और बारह में मूर्धा है।

भगवान का वाड्.मय स्वरूप भागवत के स्कंधों में बंटा हुआ है तो भागवत में बसे हुए हैं भगवान। भागवत का एक और अर्थ है भाग मत। बहुत सी ऐसी स्थिति आती है हमारे जीवन में, या तो आदमी बाहर भागता है या भीतर भागने लगता है। भाग मत भागवत कहती है रुकिए, देखिए और फिर चलिए। एक और अर्थ है भागवत का। चार शब्द है भ, ग, व, त। जिनका अर्थ है भ से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त से त्याग।
दूसरी बात इसमें ग्रंथों का सार है। हमारे यहां चार प्रमुख ग्रंथ हैं और चारों ग्रंथ भागवत में समाविष्ट हैं। इतनी सुंदर रचना वेदव्यासजी ने की है। महाभारत हमें रहना सिखाती है आर्ट ऑफ लिविंग जिसे कहते हैं। कैसे रहें, जीवन की क्या परंपराएं हैं, क्या आचारसंहिता, क्या सूत्र हैं, संबंधों का निर्वहन कैसे किया जाता है यह सब महाभारत से सीखा जा सकता है।
जीवन का दूसरा साहित्य है गीता। गीता हमें सिखाती है करना कैसे है आर्ट ऑफ डुईंग। भागवत महापुराण के दो से आठ स्कंध तक हम गीता में करना कैसे ये देखेंगे। रामायण हमें जीना सिखाती है भागवत में नवें स्कंध में श्रीरामकथा आई है। रामायण हमें सिखाएगी आर्ट ऑफ लिविंग। अंतिम चरण में भागवत कहती है मरना कैसे है। यह इस ग्रंथ का मूल विचार है, 'आर्ट ऑफ डाइंग। भागवत के दसवें, ग्यारहवें और बारहवें स्कंध में भगवान की लीला आएगी।
यह चार ग्रंथ इस भागवत में समाए हुए हैं और इसी रूप में चर्चा करते चलेंगे तो आप इसे स्मरण में रखिए। .......क्रमशः....

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