सोमवार, 26 जुलाई 2010

भागवत-7 : सबका उद्धार करती है भागवत


भागवत कहती है कि योगियों को जो आनंद समाधि में मिलता है, गृहस्थों को वही आनंद घर में बैठकर भागवत से मिल सकता है। ये भागवत की मौलिक घोषणा है।

भागवत ने बोला आपसे घर नहीं छूटता तो कोई बड़ा भारी काम करने की आवश्यकता नहीं। घर में रहें, संसार में रहें। घर में रहना कोई बुरा नहीं है। हां हमारे भीतर घर रहने लगे वहां से झंझट चालू होती है। भागवत इस अंतर को बताएगी कि क्या फर्क है संसार में रहने में और संसार अपने भीतर रहने में। इसलिए भागवत ने कहा है कुछ छोडऩे की आवश्यकता नहीं, मेरे साथ रहो। ऐसे कई प्रसंग आएंगे कि भागवत ये साबित कर देगी कि यहीं स्वर्ग है और यहीं नर्क है। ये तो हम ही लोग हैं जो इसको नर्क बनाए जा रहे हैं।
इस भागवत शास्त्र की रचना कलयुग के जीवों के उद्धार के लिए की गई है। श्रीमद्भागवत में एक नवीन मार्गदर्शन कराया गया है। घर में रहकर भी आप भगवान को प्रसन्न कर सकते हैं, प्राप्त कर सकते हैं परंतु आपका प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय हो जाना चाहिए। गोपियों का प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय बन गया था।
भागवत में कहा है घर में रहो, अपने स्वभाव में रहो और संसार में फिर परमात्मा को प्राप्त कर सकते है। घर में रहें या बाहर अपनों से मिलें या परायों से। लेकिन जरा मुस्कुराइए...

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