सोमवार, 26 जुलाई 2010

...और दूर हो गया गरूढ़ का भ्रम


राम-रावण के युद्ध के समय मेघनाद द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश में बंधक बना दिया गया। श्रीराम और लक्ष्मण को अचेत अवस्था में देखकर राम सेना और सभी देवता दुख और चिंता में डूब गए। इस समय नारदजी ने गरुड़ देव को श्रीराम और लक्ष्मण के नागपाश काटने के लिए भेजा और गरुड़ देव ने तुरंत ही वहां जाकर दोनों भाइयों को नागपाश से मुक्त करा दिया।

गरुड़ देव अपना कार्य पूर्ण करके जा रहे थे तभी उनके मन शंका उत्पन्न हुई कि क्या ये ही प्रभु श्री विष्णु के अवतार ही है जो साधारण मनुष्य की भांति नागपाश के बंदी होकर अचेत अवस्था को प्राप्त हो गए थे। यह सोचते हुए वे नारदजी के समक्ष पहुंचे और अपने मन की शंका उन्हें बताई। नारदजी ने उन्हें श्री हरि की माया के वश में जानकर उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज दिया। गरुड़ देव ने ब्रह्माजी से भी यही प्रश्न किया, इसके जवाब में ब्रह्मा ने उन्हें शिवजी के पास जाने की सलाह दी। अब गरुड़ देव भगवान शंकर के पास पहुंच गए। शिवजी ने भी गरुड़ को श्री हरि की माया के वश में जानकर उन्हें काकभुसुण्डी के पास भेजा और वहां रामायण का श्रवण करने को कहा। गरुड़ तुरंत ही काकभुसुण्डी के पास पहुंच गए जहां उन्होंने श्रीराम का जीवन चरित्र सुना जिससे उनका भ्रम दूर हो गया। अब उनकी समझ आ गया था कि श्रीराम नारायण ही है जो मानव रूप में जन्मे होने के कारण साधारण मनुष्य के स्वभाव की माया रच रहे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें