रविवार, 25 जुलाई 2010

ये कैसी एकता

‘अनेकता में एकता’
प्रेम चोपड़ा
आख़िर मैं यह क्या कह रहा हूं? मैं भी हैरान हूं, क्योंकि बचपन से घुट्टी बनाकर पिलाई गई पंक्ति तो ठीक उल्टी है- अनेकता में एकता! यह हमारे हिंदुस्तान का कभी मूल-मंत्र था, जबकि आज की स्थिति एकदम विपरीत है।

मुझे मालूम नहीं कि पहली बार ‘अनेकता में एकता’ का नारा किसने बुलंद किया था, मगर विश्वास के साथ कह रहा हूं कि यदि वह श़ख्स आज जिंदा होता, तो उसे अपने कहे पर बड़ी शर्मिदगी होती..
संभव है कि सार्वजनिक मंच से वह अपने इस कथन पर खेद भी प्रकट करता! दरअसल, जिस दौर में यह बात कही गई होगी, तब के हिसाब से बिल्कुल ठीक थी। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई होते हुए भी पहले हम हिंदुस्तानी थे, पर अब तो मराठी-गुजराती-मद्रासी-पंजाबी में विभाजित हो गए हैं। जाहिर है कि आज के संदर्भ में मैं भी सही हूं, क्योंकि ‘काले-गोरे का भेद नहीं हर दिल से हमारा नाता है..’- क्या गर्व से कोई कहते सुनाई देता है?

राजनेता अब देश की नहीं, अपने-अपने क्षेत्र की बातें करते हैं.. अपनी जाति का नेतृत्व करते हैं। मुझे लगता है कि मेरे प्यारे देश को किसी की बुरी नजर लग गई है। सन् 1947 में आजादी मिलने के बाद पहले हमें पाकिस्तान से लड़ना पड़ा। इसके बाद हिंदू-चीनी का नारा लगाकर चीन ने हमारे साथ छल किया। हालांकि उस पराजय से उबर कर हमने जल्दी ही प्रगति की राह पकड़ ली, मगर पाकिस्तान ने छद्म युद्ध जारी रखा। बेशक, सन 1971 में फिर उसकी हार हुई, मगर उस अपमान की आग में हमारा पड़ोसी मुल्क आज भी सुलग रहा है। वह आए दिन हमारे यहां कुछ न कुछ करवा देता है।

यही नहीं, अभी तक हमारे दिल-ओ-दिमाग़ से आतंकवाद का हौवा ख़त्म भी नहीं हुआ था कि देश में नक्सलवाद ने अपनी जड़ें जमा लीं। ऐसा नहीं कि हम नक्सलियों की कमर नहीं तोड़ सकते। हमारी सेना इतनी सक्षम है कि वह चंद घंटों में उनका वजूद मिटा दे, पर बीच में आम जनता आ जाती है। जाहिर है, हम दस नक्सलवादियों के बदले एक भी बेक़सूर इंसान को मरते देखना नहीं चाहते, सो हमारी इसी भावना के साथ खेल रहे हैं वे। सेना या अर्धसैनिक बल जब भी अपने अभियान में तेजी लाते हैं, नक्सली उन्हें ढाल बना लेते हैं।

वैसे भ्रष्टाचार तो वह नासूर है, जो हमारे देश को दीमक की तरह खोखला किए जा रहा है। न्यूज चैनल पर कुछ दिनों से रोजाना ख़बर आती है कि दूध में मिलावट, घी में मिलावट.. और तो और, पानी में भी मिलावट! हमें सब्जियां न खाने के लिए आगाह किया जा रहा है, क्योंकि फल-सब्जियों को इंजेक्शन के सहारे बड़ा और हरा किया जाता है.. केले-आम को पकाने के लिए जिस रसायन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, मात्रा में अधिकता के कारण वही इन फलों के लिए जहर बन चुका रहता है। ऐसे में हम क्या खाएं- क्या पिएं? हे ईश्वर! हमारे हिंदुस्तान को फिर से सोने की चिड़िया बना दो।

हम फिर से ‘हिंदू-मुस्लिम-सिख-इसाई, आपस में हम भाई-भाई..’ कह सकें। लेकिन यह कैसे होगा, हमसे मत पूछिएगा! पता होता तो हम आपको जिम्मेदारी क्यों सौंपते? हमारे जीवन से खिलवाड़ करने वालों को सजा भी आप ही दो, क्योंकि वोटर से ज्यादा आज के नेताओं को फाइनेंसर की चिंता सताती है.. और हर पांच साल बाद इन नेताओं को हमारी अदालत में लाने की जुगत यही भ्रष्टाचारी करते हैं न!

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