रविवार, 25 जुलाई 2010

सरगम



रात्रि का अंतिम प्रहर। वह बैठी है। उसके जागने का इंतजार करती हुई। हर बार उसका हाथ उसकी तरफ़ उठता फिर वापस हो जाता। इसी मुद्रा में सुबह का एक और प्रहर बीत गया। अंतत: उसका धैर्य जाता रहा।
उठ बेटा।

उसने बच्ची की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा। नींद आ रही है। कहकर बच्ची कुनमुनाई और उसने अपनी नींद भरी आंखें बंद कर लीं। कब तक सोएगी? उसकी आवाज में हल्की झुंझलाहट थी।

बस थोड़ी देर और। बच्ची ने चादर से चेहरा ढंक लिया और पेट के बल लेट गई। चादर में लिपटी उसकी देह रूई की तरह लग रही थी। पतली, छोटी..कोमल सी। ढीठ हो गई है तू तो। चार दिन थोड़ा कम सो लेगी तो क्या हो जाएगा? मास्टर जी आने वाले हैं थोड़ा-बहुत तो याद कर ले। तैयार हो जा। इतना बड़ा कॉम्पिटीशन है।

रीना ने कुछ सुने सुनाए शब्दों को रट लिया था। वह कोशिश करती थी कि उन तमाम शब्दों को उसी तरह बोला जाए। पिछली कुछ रातों ने उसकी बेचैनी बढ़ा दी थी, ऐसे मनोभाव जीवन का पहला अनुभव था। स्वयं को लेकर वह कभी भी महत्वाकांक्षी नहीं रही थी। न ही उसने कभी ऐसे ऊंचे सपने देखे थे पर शायद हृदय में वही बीज स्वरूप सुसुप्त अवस्था में रहे होंगे। तभी तो वह वृक्ष रूप में बच्ची को देख रही थी।

जब से बच्ची, जिसे सब प्यार से ओमी कहते हैं- का चयन एक संगीत प्रतियोगिता के लिए हुआ था, तब से घर का पूरा माहौल ही बदल गया था। ख़बर जो ख़ुशियां लेकर आई थी। ख़ुशियां जो भविष्य के सपनों को बढ़ाती जा रही थी..अमरबेल की तरह..। लग रहा था स्वप्नों का अंतहीन संसार रच-बस गया है चारों तरफ़।

ख़ुशियां, सपनों और उल्लास की बारिश होने लगी थी। रीना के मन में न जताते हुए भी स्वयं को विशिष्ट होने का एहसास भरने लगा था। रीना ने ओमी के साथ-साथ स्वयं पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया था। जितने पैसे जोड़कर, छुपाकर, यहां वहां जमा करके रखे थे सब निकाल लिए थे..। अच्छी साड़ियां, चूड़ियां, बिंदी, गले की मालाएं। टी.वी पर माता-पिता को दिखाते हैं, तो जाहिर है उसे अच्छा दिखना चाहिए। घर को व्यवस्थित, सुंदर और सजाने की जरूरत न थी। घर के नाम पर एक छोटी सी झुग्गी है, जिसमें जरूरत भर की चीजों हैं।

रीना ने अब तक जो देखा था, उससे वह समझ गई थी कि झुग्गी जैसी है वैसी ही रहने दी जाए, क्योंकि घर की स्थिति देखकर ही तो लोगों का मन बदलता है। दया और करुणा के भाव पैदा होते हैं..। लोग भावनात्मक ढंग से जुड़ते हैं..फिर जाति, प्रांत और भाष पर आते हैं और इन्ही के नाम पर आंसुओं की धारें बहती हैं।

वोटों की बरसात होती है। रीना को तो कुछ सूझता ही नहीं है.. वह तो रात-दिन आने वाले समय को जीती रहती है।

सपने..उसकी आंखों में दीपों की तरह जलने लगे..। ओमी को टीवी पर गाते देखना..ऑडियंस की वाहवाही, वंस मोर, वंस मोर की आवाज, जजों की वाहवाही..दुनिया भर से प्रशंसा मिलना..और हर बार अगले दौर में पहुंचना..सोच-सोचकर वह रोमांचित हो उठती..। उसकी आंखों से नींद उड़ जाती। मन तितलियों की तरह उड़ने लगता। सब कुछ बदल जाएगा। दुनिया भर से लोग कैसे-कैसे मदद करते हैं। ओमी ने एक बार ठीक से गा दिया और अपना प्रभाव जमा लिया, तो आगे भी मौक़ा मिलता रहेगा।

रीना इस समय एक ऐसी मां की भूमिका निभाना चाहती थी, जो अपनी बेटी के लिए हर क़दम उठाने के लिए तैयार थी। जो सब कुछ करने का माद्दा रखती थी..। वह दुनिया को बताना चाहती थी कि..उसके पास साधन नहीं हैं, सुविधाएं नहीं हैं..पैसा नहीं है तालीम देने के लिए। हां सपने हैं.., हौसले हैं..और है संगीत से लगाव..। वह ऐसे ही बोलेगी। ऐसे ही..। रीना मन ही मन एक- एक शब्द रटती, दोहराती फिर..। मन ही मन मुस्कराती..। बस ये लड़की कुछ गड़बड़ न करे। इसे ठीक ठाक रहना चाहिए।

अभी दस मिनट भी नहीं हुए होंगे कि वह सोचते-सोचते फिर ओमी के पास आ गई, उठ मेरी रानी, उठ ना, देख कितना व़क्त निकल गया। तू भाग्यशाली है कि हजारों बच्चों के बीच तेरा सिलेक्शन हुआ। ओमी ने पलकें खोलीं..। अपनी मां को एकटक देखती रही..। मां ने कितने अंग्रेजी के शब्द रट लिए हैं। मां का बोलने का अंदाज बदल गया था। जब तू पैदा हुई थी, तो मुझे सपना आया था। रीना उसे काल्पनिक कहानी सुनाने लगी। कैसा सपना? ओमी जिज्ञासु भाव से देखने लगी।

देवी मां का सपना। सुंदर देवी मां। ओमी उसकी गोद में ढुलक गई। उसके बालों में से गंध आ रही थी। जुओं और डैंड्रफ ने नाक में दम कर रखा था। दोनों हाथों की उंगलियों से वह सिर खुजलाए जा रही थी। लगातार बालों में उसकी उंगलियां घूम रही थीं। तेरे बाल कटवाने हैं, शाम को। वहां बालों में उंगली तक न लगाना, समझी। पर पहले मास्टर जी से सीख ले। आज कोई ग़लती मत करना। ख़ूब ध्यान से सुनना..। समझी..। मैं क्या करूं.. भूल जाती हूं। ओमी ने भोलेपन से कहा। वहां जाकर, कैमरों के सामने..गुरुओं के सामने घबराना नहीं..?

मुझसे नहीं गाया गया तो? ओमी ने मुंह बनाकर कहा। वह ख़ुद को लेकर आश्वस्त नहीं थी। क्यों नहीं गाया जाएगा..? ठीक से याद करने की आदत डाल। इस बार रीना झुंझला पड़ी।

देख..दो चार राउंडों से निकल गई न तो कितनी चीजों का ढेर लग जाएगा। कपड़े, गिफ्ट। तरह-तरह के सामान। कितने लोग पहचानने लगते हैं। देखती नहीं है, जब गाने वाले बच्चे अपने घर आते हैं तो हजारों लोग उनके साथ होते हैं। उनका कैसा स्वागत किया जाता है। बड़े-बड़े लोग मिलते हैं उनसे। नेता, मंत्री लोग तक मिलते हैं।

ऐसे
मिल सकती है तू। किसी नेता या हीरो से। सबके घर ले जाते हैं। सोच ले..हमारे शहर में भी तेरी फेरी लगेगी।
वे तेरे स्कूल जाएंगे..तेरी सहेलियों को दिखाएंगे। हमारा घर दिखाया जाएगा। मौक़ा भी आना था, जब वह उन देखे गए दृश्यों का स्वयं भी हिस्सा बनने जा रही थी। क्या ईश्वर ऐसे भी मेहरबान होता है। रीना मन ही मन प्रार्थना करती, हे भगवान। इस लड़की को सद्बुद्घि देना। ये ठीक रहे। ठीक से गा दे।

उसने कितने मंदिरों में कितना कुछ चढ़ाने का संकल्प ले लिया था। कितनी जगह जाकर मनौतियां पूरी करने की क़समें खा ली थीं। सीखने-सिखाने, रटने-रटाने की कला में वह ओमी को पारंगत कर देना चाहती थी। वह ओमी को समझाती, दुलारती, याद करवाती, सिखाती। ख़ूब बाते करना.. शरमाना नहीं..।

छोटे-छोटे बच्चे कैसी पटर-पटर बाते करते हैं। सबके पांव छूना और बताना कि तू क्या कर रही है? कहां रहती है? तेरे माता-पिता क्या करते हैं? रीना उसे एक एक शब्द रटा देना चाहती थी। वह जीवन में आए इस मौक़े को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी।

ओमी ने अपनी मां के इस रूप को पहली बार देखा था, इसलिए वह आश्चर्य में डूबी, उसकी एक-एक बात को ध्यान से सुनती। समझने की कोशिश करती। उसकी मां इतनी होशियार है और इतनी ख़ुश हो सकती है, यह भी ओमी ने पहली बार देखा था।

स्कूल। ओमी ने याद दिलाया। मैं तेरी टीचर से बात कर लूंगी। जब तू टीवी पर गाएगी, तो तेरी टीचर भी तो ख़ुश होगी। कुछ न कहेगी वह। यह तो स्कूल के लिए गर्व की बात है। परीक्षा। उसने छमाही परीक्षा की याद दिलाई, जो अगले ह़फ्ते से थी। अब बड़ी परीक्षा की चिंता हो रही है।

रीना ने डपटते हुए कहा, बाद में दे देना- कुछ दिनों की तो बात है। छुट्टी के लिए आवेदन लगवा देंगे। ओमी को समझ में नहीं आ रहा था कि जो मां पहले स्कूल भेजने के लिए सुबह से पीछे पड़ी रहती थी, वही अब स्कूल और पढ़ाई के नाम पर उसे यूं झिड़क रही है, और छूट दे रही है। मेरा क्या... नहीं जाना स्कूल। वह मन ही मन ख़ुश हो उठी।

फिर कुछ दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला। ओमी को तो होश ही नहीं रहा..कि वे सबसे कठिन जानलेवा शरीर तोडू, थका देने वाले दिन थे। अभ्यास के दिन, अभ्यास के नाम पर सुबह से लेकर रात तक रीना ओमी के साथ लगी रहती। कभी उसे टॉफियां दी जातीं, तो कभी गुड़िया, तो कोई नई चीजें, तो कभी याद करवाने के लिए तमाचा जड़ दिया जाता उसके गालों पर..। उसका खेलना-कूदना..मुहल्ले में निकलना सब बंद था।

गले को ख़राब करने वाली सारी चीजें प्रतिबंधित थीं। ओमी डरी-सहमी और स्तब्ध सी देखती रह जाती कि आख़िर उसे क्यों और किस बात की सजा दी जा रही है? वह सोते-सोते बड़बड़ाती..खाते-खाते उसके हाथ रुक जाते..बैठे-बैठे वह ऊंघने लगती..या गाते-गाते एकाएक सहम जाती। वह जितना याद कर सकती है, करती है, जितना गा सकती है, गाती है।

देख बेटा, थोड़ा और मेहनत कर ले। हमारा भाग्य बदल जाएगा। हम सब इस नरक से निकल जाएंगे। पैसे मिलेंगे, तो मैं बहुत अच्छे स्कूल में तुझे डलवा दूंगी। तेरे नाम खाता खोलकर पैसा जमा कर दूंगी, जो तेरे ही काम आएगा।..और..तू आगे गाती रही, तो सोच फिल्मों में भी गाने का मौक़ा मिलेगा। तूने देखा न गुरु लोग बच्चों को गवाते हैं या नहीं? फिर वह भावुक हो उठती..मेरी तो क़िस्मत फूटी थी, जो मैं बचपन से लेकर आज तक दूसरों के घरों में बर्तन-कपड़े का काम कर रही हूं।

...पर तू तो कुछ बन सकती है। नाम कमा सकती है। पैसे भी। रीना अपने चंद आंसू पोंछती..। शब्दों में अपनी पीड़ा..चिंता..प्यार और करुणा घोलती। ओमी को पुचकारती, थपकाती, समझाती और उसे इतनी ख़ूबसूरत, समृद्घ और रंगीन भविष्य की तस्वीरें दिखाती, जिनमें ओमी किसी राजकुमारी की तरह नजर आती। उसका बचपन किसी सपने की तरह बढ़ने लगता।

कब वे तमाम दिन निकल गए..पता ही नहीं चला। ओमी जितना जिस तरह से गा सकती थी गाया, जितना सीख सकती थी सीखा.. जितना अभिनय कर सकती थी किया..उन तमाम बच्चों, ऑडियंस के बीच और निर्णायकों के बीच, वह स्वयं को जिस तरह से प्रस्तुत कर सकती थी किया.. नतीजा.. वो तो आना ही था.. ओमी पहले ही दौर में बाहर हो गई। मां पर जैसे वज्रपात हो गया।

आंसुओं की धार उसके गालों को भिगोती जा रही थी, जिसे सारी दुनिया देख रही थी, सिवाय ओमी के। ओमी चुप थी। न उससे रोते बनता था, न हंसते। न कुछ कहते हुए। गीत संगीत, स्वर.. सब उसका साथ छोड़ चुके थे।

एक खूबसूरत भविष्य अपनी चकाचौंध दिखाकर अदृश्य हो गया था.. यह दुनिया उसकी अपनी नहीं थी.. इस दुनिया से उसका आंतरिक रिश्ता नहीं बना था, इसलिए उसके टूटने का असर भी उस पर नहीं पड़ा था। हां, रीना ने उस दुनिया में प्रवेश कर लिया था और वह दुनिया उसके भीतर.. बहुत भीतर जाकर बैठ गई थी। लौटने के बाद, ओमी कुछ इस तरह लौटी जैसे वह किसी प्रतियोगिता से बाहर होकर नहीं कोई, अपराध करके आई हो।

हर बात में मां का ताना मारना, इतना सिखाया था। इतना समझाया था। अरे, ठीक से चार लाइनें गा लेती, तो क़िस्मत बदल जाती। अब तू मर। यहीं पर सड़। कुछ नहीं कर सकती तू जीवन में। वे भी तो बच्चे थे। तुझसे भी छोटे, पर देखे उनको। अरे क्या कमी रखी थी, दो दो गुरुओं से सिखाया था। तेरे भेजे को क्या हो गया था। मुंह में दही जम गया है क्या? हे भगवान। अब मैं क्या करूं। कहां से क़र्ज चुकाऊं। पूरे दस हजार रुपए का क़र्ज चढ़ गया है तेरी शिक्षा-दीक्षा में।

रीना माथे पर हाथ रखकर कल्पना शुरू कर देती। लगता जैसे ओमी नहीं प्रतियोगिता से वह निकाली गई हो। और यह ओमी की असफलता नहीं उसकी असफलता है। छिन्न-भिन्न सपनों ने भविष्य को दु:स्वप्न में बदल दिया था, जो उसका नहीं था, पर जिसे वह पाना चाहती थी, जिसे अपना बना चुकी थी।

घर से बाहर निकलते हुए, काम पर जाते हुए लोगों से बात करते हुए वह स्वयं को शर्मिदा महसूस करती और उसका असर हुआ कि ओमी को भी उसी छाया ने घेर लिया था। घर से लेकर गाली तक, गली के बच्चों से लेकर स्कूल तक में एक असफल.. सबसे पहले आउट होने वाली कंटेस्टेंट के रूप में कुछ- कुछ उपहास की, कुछ कुछ बेवकूफ़ सी, कुछ-कुछ अलग-थलग सी नजर आती। इस बात का एहसास उसे हर पल करवाया जाता। और कुछ दिनों बाद तो यह एहसास इतना गहरा मारक और इतना दर्दनाक हो गया कि ओमी ने अंतत: बिस्तर पकड़ लिया और उसकी मां रीना को क़र्ज ने।
साभार भास्कर

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