रविवार, 25 जुलाई 2010

ऐसे हुई कौरवों की उत्पत्ति


धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे। उनमें दुर्योधन सबसे ज्येष्ठ था। दुर्योधन का जन्म कैसे हुआ तथा उसके शेष भाइयों का नाम क्या था? महाभारत के आदिपर्व में इस संदर्भ में विस्तृत उल्लेख मिलता है।

धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी दो वर्ष तक गर्भवती रही लेकिन संतान का जन्म न हुआ। भयभीत होकर गांधारी ने गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के गोले के समान मांस-पिण्ड निकला। यह बात जब महर्षि व्यास को पता चली तो उन्होंने गांधारी से कहा कि एक सौ एक कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो तथा इस मांस पिण्ड पर ठंडा जल छिड़को।
जल छिड़कने पर उस पिण्ड के एक सौ एक टुकड़े हो गए। व्यासजी की आज्ञानुसार गांधारी ने प्रत्येक कुण्ड में मांस पिण्ड के टुकड़े डाल दिए। समय आने पर उन्हीं मांस-पिण्डों से पहले दुर्योधन और बाद में शेष पुत्र व एक पुत्री का जन्म हुआ।
धृतराष्ट्र के शेष पुत्रों के नाम युयुस्तु, दु:शासन, दुस्सह, दुश्शल, जलसंध, सम, सह, विंद, अनुविंद, दुद्र्धर्ष, सुबाहु, दुष्प्रधर्षण, दुर्मर्षण, दुर्मुख, दुष्कर्ण, कर्ण, विविंशति, विकर्ण, शल, सत्व, सुलोचन, चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, दुर्मद, दुर्विगाह, विवत्सु, विकटानन, ऊर्णानाभ, सुनाभ, नंद, उपनंद, चित्रबाण, चित्रवर्मा, सुवर्मा, दुर्विमोचन, आयोबाहु, महाबाहु, चित्रांग, चित्रकुण्डल, भीमवेग, भीमबल, बलाकी, बलवद्र्धन, उग्रायुध, सुषेण, कुण्डधार, महोदर, चित्रायुध, निषंगी, पाशी, वृन्दारक, दृढ़वर्मा, दृढ़क्षत्र, सोमकीर्ति, अनूदर, दृढ़संध, जरासंध, सत्यसंध, सद:सुवाक, उग्रश्रवा, उग्रसेन, सेनानी, दुष्पराजय, अपराजित, कुण्डशायी, विशालाक्ष, दुराधर, दृढ़हस्त, सुहस्त, बातवेग, सुवर्चा, आदित्यकेतु, बह्वाशी, नागदत्त, अग्रयायी, कवची, क्रथन, कुण्डी, उग्र, भीमरथ, वीरबाहु, अलोलुप, अभय, रौद्रकर्मा, दृढऱथाश्रय, अनाधृष्य, कुण्डभेदी, विरावी, प्रमथ, प्रमाथी, दीर्घरोमा, दीर्घबाहु, महाबाहु, व्यूढोरस्क, कनकध्वज, कुण्डाशी और विरजा। धृतराष्ट्र की पुत्री का नाम दुश्शला था।

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