रविवार, 25 जुलाई 2010

पिता की आज्ञा से माता का मस्तक तक काट दिया


त्रेता युग में विष्णु के अवतार परशुराम हुए। परशुराम को माता-पिता भक्त के रूप में जाना जाता है। उनके पिता का ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं।
एक दिन ऋषि जमदग्नि ने रेणुका से पूजा के जल लाने के लिए कहा। रेणुका जल लेने नदी की ओर चल दीं। नदी पर रेणुका ने देखा कोई देवता अप्सराओं के साथ जल क्रीड़ा कर रहा था, उन्हें देखकर रेणुका का मन भी उस देव पुरुष की ओर आकर्षित होने लगा। ऐसे ही बहुत समय बीत गया और ऋषि की तपस्या का समय निकल गया। रेणुका जब काम वासना से बाहर आई तब उसे पति द्वारा जल मंगाने की बात याद आई। रेणुका जल्द ही जल लेकर पति के समीप जा पहुंची। ऋषि त्रिकाल दर्शी थे उन्हें तुरंत ही समझ आ गया कि रेणुका किसी परपुरुष के प्रति कामवासना में डूब गई थीं। ऋषि ने क्रोधित होकर अपने पुत्रों से रेणुका का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दे दिया। परंतु किसी भी पुत्र ने माता रेणुका के विरुद्ध पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया। तब ऋषि जमदग्नि ने परशुराम को आदेश दिया कि वह माता सहित सभी भाइयों को तुरंत मार डाले। परशुराम ने अक्षरश: पिता की आज्ञा पालन किया और अपने फरसे से माता सहित सभी भाइयों के सिर धड़ से अलग कर दिए। इससे पिता जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम को वर मांगने की आज्ञा दी। परशुराम जानते थे कि जमदग्नि मृत व्यक्ति को जीवित करने की विद्या जानते है अत: उन्होंने पुन: माता और भाइयों को जीवित करने का वर मांग लिया और उनकी स्मृति से यह बात भी भुलवा दी कि परशुराम ने उन्हें मार डाला था।
उसी काल में एक क्षत्रिय राजा था सहस्रार्जुन जिसने कामधेनु गाय के लालच में ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। पिता के वध से क्रोधित हो परशुराम ने सत्रह बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया।

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