सोमवार, 12 जुलाई 2010

कौन हंसता है कौन रोता है.


एक आदमी साइकोलॉजिस्ट से मशविरा लेने आया था। वह अपनी बारी के इंतज़ार में चेंबर के बाहर बैठा था। उसकी शक्ल से ही लग रहा था कि वह महादुखी मानव है। चेहरा लटका हुआ, होंठों पर हंसी का एक निशान तक न था।

वह औरों से बोलना तो दूर, उनकी तरफ़ देख भी नहीं रहा था। कुछ देर बाद उसका भी नंबर आया। साइकोलॉजिस्ट अनुभवी था। वह उसे देखते ही पहचान गया कि यह अवसाद का केस है। फिर भी उसने समस्या पूछी। आदमी ने बोलना शुरू किया,‘डॉक्टर साहब, मैं हमेशा हताशा में ही डूबा रहता हूं। चाहे कुछ भी कर लूं, मन में उत्साह जागता ही नहीं।

अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं!’ मनोचिकित्सक ने कहा, ‘मेरे साथ उस खिड़की तक आओ।’ जब वह उसके पीछे वहां तक पहुंचा, तो मनोचिकित्सक ने खिड़की से बाहर इशारा करते हुए कहा, ‘तुम दूर वो तंबू देख रहे हो? वह सर्कस का तंबू है। मैंने वह सर्कस देखा है, बहुत शानदार है। वहां तुम्हें ढेर सारे करतब देखने को मिलेंगे,ख़ासतौर पर एक जोकर के कारनामे देखकर तो हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाओगे।

वह जब तक तुम्हारी नज़रों के सामने रहेगा, तुम हंसी नहीं रोक पाओगे। मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि एक बार उस जोकर की कलाकारी देख लेने के बाद अवसाद ज़िन्दगी में दुबारा तुम्हारे पास नहीं फटकेगा।’
यह सब सुनकर भी उस आदमी के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई। उसका लटका मुंह देखकर साइकोलॉजिस्ट ने कहा, ‘तुम वहां जाकर तो देखो।’ वह आदमी बोला, ‘साहब, वह जोकर मैं ही हूं।’

सबक: इस दुनिया में हर कोई अभिनय कर रहा है। हंसी-मजाक की ओट में कोई ग़म छिपा रहा है, तो कोई बेवजह आंसू बहाकर औरों से सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहा है।

मौत के सामने भी अक्ल दौड़ती रही
जंगल घना था। पेड़-झाड़ इतने थे कि राह नहीं सूझती थी। ऐसे में एक बेचारी लोमड़ी के रास्ते में अचानक शेर आ गया। अब लोमड़ी भागे भी तो किधर। उसे डर तो लग रहा था, पर वह थी पक्की लोमड़ी। सो, तेजी से दिमाग़ के घोड़े दौड़ाने लगी। उधर शेर निश्चिंत था कि शिकार कहीं भागकर नहीं जा सकता।
वह लोमड़ी पर झपटने की तैयारी कर ही रहा था कि अचानक लोमड़ी ने डपटकर पूछा, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मेरी राह में आने की? क्या तुम्हें उस भगवान का डर नहीं, जिसने मुझे भेजा है?’ शेर ने ऐसे किसी सवाल के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था। एक पल के लिए तो वह किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया। फिर जब उसके भीतर का शेर जागा, तो उसने हिम्मत करके सवाल किया, ‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो? क्या सबूत है कि तुम्हें ईश्वर ने भेजा है?’
लोमड़ी तो इस सवाल के लिए तैयार ही खड़ी थी। उसने कहा, ‘इसमें कौन-सी बड़ी बात। तुम मेरे साथ जंगल में घूमो और ख़ुद ही देख लेना। तुम बस मेरे पीछे-पीछे चलो और अपनी आंखों से देख-जान लो कि जंगल के बाक़ी प्राणी मेरी कितनी इज्जत करते हैं। यहां तक कि वे मेरे रास्ते में भी नहीं आते।’
सो, शेर लोमड़ी के पीछे-पीछे चलने लगा। और वाक़ई, उसने देखा कि राह में आने वाले छोटे-मोटे जानवर तो काफ़ी दूर से ही दुम दबाकर भाग जाते थे और बड़े जानवर भी उसके रास्ते में आने की बजाय राह बदलकर निकल जाते थे। Êाहिर है, बाक़ी जानवर लोमड़ी के पीछे चल रहे शेर को देखकर डर रहे थे। पर इस उपाय से लोमड़ी की जान बच गई।
सबक : संकट के समय भी दिमाग़ ठंडा होना होना चाहिए और अक्ल के घोड़े दौड़ते रहने चाहिए, क्योंकि अक्सर ऐसे मौक़ों पर सिर्फ़ अक्लमंदी ही होती है, जो हमें उबार सकती है। बुद्धि ही असली मित्र है।

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