सोमवार, 12 जुलाई 2010

मां

मां से छुपाओगे तो कहां जाओगे!
महानगरों की बात है, जहां आवास समस्या के चलते किसी लड़के और लड़की द्वारा फ्लैट साझा करने की बात ज्यादा अजीब नहीं समझी जाती। ऐसे में एक मां अपने बेटे से मिलने पहुंची थी, जो फ्लैट में एक लड़की के साथ ‘अलग-अलग’ रहता था। बेटे ने मां की बड़ी आवभगत की। मां ने देखा कि लड़की बड़ी ख़ूबसूरत है और उसके व बेटे के बीच आंखों-आंखों में ही काफ़ी बातें हो रही हैं।
मां क़स्बे से आई थी। उसे पहले से ही शक था। जब बेटे ने मां की निगाहों में संदेह देखा, तो उसने ख़ुद ही सफ़ाई दे दी कि तुम जैसा सोच रही हो, वैसा कुछ भी नहीं है। हम सिर्फ़ रसोई साझा कर रहे हैं, रहते अलग-अलग हैं। ख़ैर, मां ने कुछ नहीं पूछा और वह अगले दिन लौट आई। उसके लौटने के बाद लड़की ने ध्यान दिया कि रसोई में रखा चांदी का जार ग़ायब है। उसने यह बात लड़के से कही।

लड़के ने पहले तो कहा कि मां ऐसा नहीं कर सकतीं। लेकिन चूंकि घर में और कोई नहीं आया था, इसलिए उसने मां को ई-मेल किया- ‘प्रिय मां, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम जार ले गई हो। मैं यह भी नहीं कह रहा हूं कि तुम जार नहीं ले गई हो। पर सच यह है कि जार यहां से ग़ायब है।’ कुछ दिनों बाद उसे ई-मेल से ही मां का जवाब मिला- ‘प्रिय बेटे, मैं यह नहीं कह रही हूं कि तुम दोनों एक ही कमरे में रहते हो।

मैं यह भी नहीं कह रही हूं कि तुम लोग अलग-अलग कमरों में रहते हो। पर वास्तविकता यह है कि अगर तुम्हारी दोस्त अपने कमरे में रहती, तो उसे तुरंत पता चल जाता कि जिस जार को तुम लोग ग़ायब समझ रहे हो, वह उसके तकिए के नीचे रखा हुआ है।’

सबक
मां से कुछ भी नहीं छुपा है। मां से कुछ छुपाना भी नहीं चाहिए। बच्चे की सबसे अच्छी दोस्त मां होती है, इसलिए कोई दुविधा है, तो मां को वह बात बता देनी चाहिए।

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