रविवार, 11 जुलाई 2010

सेवा करने का सपना

मैंने भी सपना देखा था..
किसी जवान को सेना की वर्दी में देखकर, मेरा सिर उसके सम्मान में अपने आप ही झुक जाता था। उसके प्रति मेरे मन में एक अलग ही भावना उत्पन्न होती थी। इसलिए बचपन से मैंने एक ही सपना देखा, सेना में शामिल होकर देश की सेवा करने का सपना।

भारतीय थलसेना में जवानों की भर्ती खुली रैलियों द्वारा होती है। रैली स्थल पर उम्मीदवारों की शारीरिक क्षमता की परीक्षा तथा मेडीकल जांच होती है। सफल अभ्यर्थियों की लिखित परीक्षा के बाद उन्हें सेना में शामिल कर लिया जाता है।

ऐसा नहीं कि मैंने सिर्फ सपना देखा है, इस सपने को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत भी की है। पिछले दो सालों से लगातार रोज़ सुबह चार बजे उठता रहा हूं मैं। चार बजे से लेकर सुबह सात बजे तक मैदान में पसीना बहाने के बाद मैं घर लौटता था। चूंकि पिताजी एक धोबी थे और उनका काम सुबह सात बजे शुरू होता था, इसलिए मैदान से आने के बाद मुझे उनकी मदद भी करनी होती थी। मुझे कपड़ों को पटक-पटक कर धोने में बहुत मज़ा आता था, क्योंकि मुझे लगता था कि मैं जितनी मेहनत करूंगा, मेरी ताकत उतनी ही बढ़ती जाएगी।

पिताजी की मदद करने के बाद बारी आती नाश्ता करने की। मैं हमेशा पौष्टिक नाश्ता ही करता हूं क्योंकि स्वाद से ज़्यादा सेहत ज़रूरी होती है। उस दिन जब मैंने अखबार में पढ़ा कि भिलाई (छत्तीसगढ़ का एक शहर) में रैली भर्ती होने वाली है, तो मैं भागा चला आया। अपने बचपन के सपने को पूरा जो करना था मुझे। सुबह पांच बजे जब में भर्ती वाली जगह पर पहुंचा, तो मेरे होश उड़ गए।

मुझे तो लगता था कि सेना में शामिल होना सिर्फ मेरा ही सपना है, लेकिन यहां तो मेरे जैसे हज़ारों लड़के आए हुए थे और उनका भी वही सपना था। इतनी भीड़ में खुद को सम्भालते हुए मैं जैसे-तैसे मैदान के अंदर पहुंचा। सूरज की पहली किरण के साथ ही भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गई। मुझे बाकी लड़कों के साथ एक लाइन में बैठा दिया गया। यहां पर हम सब के प्रमाण पत्रों, कागज़ात की जांच की जानी थी।

जांच के बाद, ऐसे लोग जिनके पास सारे सही कागज़ात थे और जो सारी निर्धारित योग्यताओं को पूरा करते थे, उन्हें शारीरिक परीक्षा के लिए आगे भेज दिया जा रहा था। दूसरी ओर ऐसे लोग जिनके पास कागज़ात नहीं थे, या जो उचित योग्यताओं को


पूरा नहीं करते थे, उन्हें वहीं से बाहर कर दिया जा रहा था। चूंकि मेरे पास सारे प्रमाण पत्र थे और मैं निर्धारित योग्यताओं को पूरा करता था, इसलिए मुझे दौड़ के लिए भेज दिया गया। अपने सपने को पूरा करने के लिए मैं पहला कदम तो बढ़ा चुका था और इस पहले कदम के, पहले चरण को पार भी कर चुका था।

पिछले दो सालों से मैदान में दौड़-दौड़कर मैं इतना पसीना बहा चुका था कि मुझे यह सबसे आसान चीज़ लगती थी, लेकिन जब मैं ट्रैक पर दौड़ने के लिए पहुंचा तो वहां दौड़ने के लिए तैयार खड़े कई सारे लोगों को देखकर तो मेरी हालत ही खराब हो गई। हम सब को एक साथ-एक ही ट्रैक पर दौड़ना था।

मुझे परेशान देखकर एक अनजान लड़के ने कहा- भाई, अभी से परेशान हो गए क्या? तुम यहां एक सैनिक बनने आए हो, कोई क्रिकेट खिलाड़ी नहीं। सच ही तो कहा था उसने, मुझे ऐसी मामूली बात पर परेशान नहीं होना चाहिए, यह सोचकर मैंने खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया।

मैं दौड़ के लिए लाइन में लग कर खड़ा हो गया। सीटी बजी और सबने एक साथ दौड़ना शुरू कर दिया। ऐसा लगा कि मैं किसी मैराथन में हिस्सा ले रहा हूं, लेकिन मैराथन में लोग एक-दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करते। यहां तो सब एक-दूसरे को धक्का देते आगे बढ़ रहे थे, जीतना जो ज़रूरी था।

शायद दूसरे को धक्का दिए बिना आगे बढ़ना सम्भव नहीं होता। मैं गिरते-गिरते बचा। अपने आप को सम्भाल कर मैंने धीरे-धीरे दौड़ना शुरू किया। जब स्थिति थोड़ी-सी ठीक हुई, तो अपनी रफ्तार बढ़ाते हुए मैं तेज़ी से दौड़ने लगा। दौड़ते हुए मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, मुझे अपनी मेहनत पर घमंड हो रहा था। हमसे ट्रैक के कुल आठ चक्कर लगाने को कहा गया था और मैं सात चक्कर बड़े आराम से लगा चुका था।

आठवें चक्कर के साथ ही मुझे सेना की वर्दी दिखाई देने लगी थी। जैसे ही मैंने आठवां चक्कर पूरा कर के दौड़ खत्म की, मुझे सेना के एक जवान ने पकड़कर ट्रैक की दूसरी तरफ धक्का दे दिया। वहां पहले से ही एक जवान खड़ा था, जो दौड़ पूरी कर चुके लोगों की शारीरिक क्षमता की परीक्षा ले रहा था।

उसने किसी को भी ज़रा भी आराम करने का मौका नहीं दिया। वह हम सब से बारी-बारी से उठक-बैठक, पुश-अप, पुश-डाउन, ऊंची कूद, लम्बी कूद करवाता रहा। इसके हर चरण में असफल लोगों को बारी-बारी से भर्ती से बाहर किया जा रहा था। मैं पूरे जोश के साथ हर बाधा को पार करता जा रहा था।

देखते-देखते मैंने सारी बाधाएं पार कर लीं। मैं थक कर चूर हो गया था। तभी एक जवान को मैंने कहते सुना- ‘यह लड़का पास हो गया है, अब इसे मेडिकल के लिए भेज दो।’ इस जवान ने मुझे एक तरफ इशारा करते हुए कहा उधर जाने को कहा। तुरंत मेरे कदम उसके बताई दिशा में चलने लगे।

आंख-कान-दांत से होते हुए मेरे सारे शरीर की अच्छी तरह जांच की गई। पूरी तरह से तंदरूस्त जानकर मुझे फिट घोषित कर दिया गया। शाम को मुझसे 10 दिनों के बाद होने वाली लिखित परीक्षा में शामिल होने को कहा गया। लिखित परीक्षा के लिए भी मैंने काफी मेहनत की। परीक्षा में वो ही सवाल पूछे गए थे, जिनकी जानकारी एक जागरुक इंसान को होनी ही चाहिए। इस लिहाज़ से सवाल ज़्यादा कठिन नहीं थे।

और फिर आखिरकर, 20 दिनों के बाद जब रिज़ल्ट आया, तो उसमें अपनी नाम चयनित छात्रों में देखकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अब मैं कोई आम इंसान नहीं, भारतीय सेना का एक जवान था। मेरा सपना लगभग पूरा हो चुका था बाकि था अब देश के लिए कुछ करना।

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