रविवार, 11 जुलाई 2010

ट्रेनिंग के रोचक और ज़रूरी पहलू।

यहां फौलाद बनाए जाते है..
वर्दियां कोमल कंधों पर नहीं सजतीं। फौलाद पर जंचती हैं। अपने सपने को उस आंच में पकाकर, फौलाद बनाने ओटीए पहुंचे लेफ्टिनेंट संजेश, जो बता रहे हैं फौजी अफसर की ट्रेनिंग के रोचक और ज़रूरी पहलू।

लाल पट्टी का डर-
सड़क पर चलते, पीटी करते, कैडेट्स की हर हरकतों पर लाल पट्टी वालों की नज़र रहती है। ये ड्रिल उस्ताद होते हैं, जिन्होंने छाती पर लाल पट्टी बांध रखी होती है। रात को लाइट्स ऑफ होने के बाद ये इस बात की पुष्टि करते हैं कि कैडेट्स सो रहे हैं कि नहीं।
चपन में पापा के किसी दोस्त को आर्मी की वर्दी में देखा था, तो ऐसी ही वर्दी के लिए पापा से बहुत ज़िद की थी। जब थोड़ा बड़ा हुआ, तो फौज और फौजी का मतलब समझ में आया और उस वर्दी की ज़िद सपने में बदल गई। वह सपना सीडीएस के ज़रिए ओटीए के दरवाज़े तक ले गया। अब मेरा सपना, मेरी ज़िद, परिवार, मोहल्ले और देश की उम्मीदों में बदल चुके थे।


से न्ट थॉमस माउन्ट स्थित आफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी में एक नई दुनिया मेरा इंतज़ार कर रही थी। अकैडमी में प्रवेश करते के साथ ही दुनिया एक पल में बदल जाती है। अब आपको कैडेट कहा जाता है, आपसे एक ज़िम्मेदारी भरे व्यवहार की उम्मीद की जाती है।

सारे कैडेड्स को अलग-अलग कम्पनियों में बांट दिया जाता है। कैडेट्स की ट्रेनिंग उस क म्पनी के इन्स्ट्रक्टर और सीनियर कैडेड्स ही करवाते हैं। इस तरह सारे कैडेट्स दिनभर के लिए अलग-अलग हो कर, अपनी कम्पनी में ट्रेनिंग हासिल करते हैं, और फिर रात को खाने पर ही एक साथ मिल पाते हैं।

अकैडमी में कैडेड्स की मॉर्निग 6 बजे हूटर की आवाज़ से होती है। शुरुआती दिनों में थोड़ी दिक्कत आती है, लेकिन बहुत जल्दी ही सबको आदत हो जाती है। शायद सबके शरीर में ही कोई अलार्म सेट हो जाता है- बॉडी अलार्म, जो सबको 6 बजे से पहले ही बिस्तर से उठा देता है। उसके बाद शुरू होती है एक लम्बे दिन की कवायद। ओटीए की सुबह रोज़ अपने साथ कुछ नया लेकर आती है, लेकिन वो नया क्या है- कोई नहीं जानता। इस नए का इंतज़ार हर किसी को बेसब्री से रहता है, लेकिन किसी को पता नहीं होता कि यह नया क्या होने वाला है।

अकैडमी की सुबह कैडेट्स की भाग-दौड़ से शुरू होती है। कुछ पीटी ग्राउंड तो कुछ ड्रिल ग्राउंड की ओर भाग रहे होते हैं। उसके बाद डेढ़ घंटे ड्रिल ग्राउंड कैडेट्स के पैरों की थाप से कांपता रहता है या फिर पीटी ग्राउंड भारतीय सेना के भविष्य के अफसरों के पसीने से महक रहा होता है। ड्रिल ग्राउंड में 1-2-1 की आवाज़ गूंजती रहती है और जब सारे शहर की जनता नींद से जाग रही होती है, यह आवाज़ चलती ही रहती है।

इस डेढ़ घंटे की लगातार मेहनत के बाद एक घंटे का ब्रेक मिलता है। यह एक घंटे का ब्रेक भी बड़ा मज़ेदार होता है। अकैडमी में चारों और कैडेड्स भागते-दौड़ते नज़र आते हैं। अपनी सायकिल पर एक किलोमीटर दूर वापस कमरे पर पहुंचने की जल्दी, फटाफट नहाकर जल्दी कपड़े बदलना, और स्टडी मटिरियल पढ़ते हुए नाश्ता करना.रोज़ ब्रेक के समय यही हाल होता है। यह सारी हड़बड़ लेक्चर हॉल में टाइम पर पहुंचने की होती है, क्योंकि अगर वहां पहुंचने में थोड़ी भी देर हो गई, तो सज़ा मिलनी पक्की है।

सेना में समय की पाबंदी का बहुत महत्व होता है, यही वो बात है जो एक फौजी को एक आम इंसान से अलग करती है। अगर लेक्चर हॉल पहुंचने में एक मिनट की भी देरी हो गई, तो कई दिनों तक पांच किलोमीटर दौड़ लगानी पड़ती है। इस सज़ा में भी एक सीख होती है, एक अनुभव होता है, जो बाद में समझ में आता है। सुबह पीटी ग्राउंड में तो कैडेड्स शारीरिक रूप से तैयार होते हैं, लेकिन यहां लेक्चर हॉल में उनको मानसिक रूप से मज़बूत किया जाता है। दोपहर 1.30 बजे तक चलता है यह सिलसिला और इसके बाद शुरू हो जाती है अगले दौर की तैयारी.

हर दिन लंच के बाद जूनियर कैडेट्स की मुलाकात अपने सीनियर्स के साथ होती है। कैडेट्स का असली स्टैमिना तो इसी समय बनती है। लगातार एक घंटे तक सीनियर्स अपने जूनियर्स की शारीरिक क्षमताओं और धैर्य की परीक्षा लेते हैं। एक लड़के को फौजी बनाने में इस मुलाकात का खासा महत्व होता है।

इसके बाद कैडैट्स एंटीएरिया में गेम्स खेलते हैं। खेल कर वापस आने के बाद सीनियर्स की ज़ोर-अजमाइश फिर से शुरू होती है। अकैडमी में एक छोटी पहाड़ी है- पी हिल। इस पी हिल में हर समय कोई न कोई कैडेट नीचे से ऊपर और फिर ऊपर से नीचे दौड़ लगता हुआ नज़र आ ही जाता है। अब तक सुबह से रात हो चुकी होती है। और कैडैट्स की गतिविधियों में विराम के साथ ही शांत हो जाती हैं ऑफिसर्स टेनिंग अकैडमी की सड़कें और ग्राउंड से उठने वाला धूल का गुबार खुद को समेटने लगता है, कल फिर से कैडेट्स के जोश और जुनून का गवाह बनने के लिए..

रात को मुफ्ती पहनकर कैडैट्स मैस पहुंचते हैं। दिनभर की थकान के बाद ज़ोरदार भूख लगी होती है, लेकिन उस वक्त मैस में सीखाए जा रहे टेबल मैनर्स पर ध्यान देना ज़रूरी होता है। हाथों में कांटे-चम्मच पकड़े कैडेट्स सीनियर्स के सामने सिर झुकाए चुप-चाप खाना खाने की कोशिश करते हैं। पूरे दिन में यही एक समय होता है, जब सब फिर एक साथ मिलते हैं। रात के 9 बजे के बाद पढ़ने का समय होता है।

सुबह पांच बजे से लेकर जो भाग-दौड़ मची होती है, वो शांत हो चुकी होती है। और जब खूब देर तक मेहनत करने के बाद और अच्छा खाना खाने के बाद कोई पढ़ने को कहे तो क्या हाल होता होगा, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। कई कैडेट्स तो टेबल पर बैठे-बैठे सो जाते हैं।

और जो जाग रहे होते हैं, उनके हाथों में किताब तो होती है, लेकिन आंखों में समाई होती है एक उम्मीद। एक उम्मीद उस ज़िद के पूरा होने की, उस सपने के साकार होने की, कंधे पर टिकीं अनेक ज़िम्मेदारियों के पूरा होने की उम्मीद. रात 10 बजे हूटर बजते ही सारी लाइट्स ऑफ हो जाती हैं। दिन भर की थकान मिटाने के लिए सारे कैडेट्स अपने-अपने तकियों पर सिर रखते हैं, अगली सुबह हूटर की आवाज़ पर फिर से खड़े होने के लिए.

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