रविवार, 11 जुलाई 2010

पिटाई में हिस्सेदारी

स्कूल की छुट्टी हुई। एक बालक अपने कंधे पर बस्ता लटकाए हुए बाहर निकला तो उसने देखा कि एक मज़बूत कद-काठी वाला नौजवान एक दुबले-पतले लड़के को बेंत से मार रहा है। उसने मधुर शदों में उस बलशाली युवक से पूछा, ‘‘भाई साहब, आप इस लड़के को कितनी बेंत मारना चाहते हैं?’’
युवक ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘इससे तुम्हें या मतलब?’’
उस बालक ने धीरे से कहा, ‘मैं इतना ताकतवर तो नहीं हूं कि इस बालक के पक्ष में आप से लड़ सकूं।

किन्तु मैं इतना अवश्य कर सकता हूं कि इसकी पिटाई में हिस्सेदार बन जाऊं।’

‘‘ क्या मतलब?’’
‘‘मेरा मतलब है कि आप इस लड़के को जितने बेंत मारना चाहते हो, उसके आधे मेरी पीठ पर मार लीजिए।’’
युवक ने उस साहसी बालक को आश्चर्य से देखा। उसे अपने आप पर शर्म आई कि वह कमजोर लड़के को बुरी तरह से पीट रहा है और एक यह लड़का है, जो उसके बदले मार खाने के लिए तैयार है। उसने उसी क्षण बेंत को तोड़ कर फेंक दिया।

उस कमजोर लड़के को बचाने वाला वह साहसी बालक आगे चलकर अंग्रेजी साहित्य में कवि ‘लार्ड बायरन’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
बोलने वाला तोता
कालू एक आठ वर्षीय बालक है, जिसे चिड़ियों और पशुओं से बहुत प्रेम है। इसलिए वह रोज़ अपनी मां से विनती करता कि वे उसे कोई कुत्ता या बिल्ली पालने दें।‘उसकी देखभाल कौन करेगा?’ मां ने पूछा।
‘मैं करूंगा, वचन देता हूं, मैं देखभाल करूंगा’ कालू ने कहा।‘पर जब तुम स्कूल गए होगे?’ मां ने फिर पूछा।‘मैं जाने से पहले उसके सब काम करूंगा और आने के बाद बाकी काम भी कर लूंगा।’ कालू ने ज़ोर देकर कहा।‘नहीं, ‘हमारे पास अपने खाने को है नहीं, कुत्ता कैसे पाल सकते हैं।’ कह कर मां ने विवाद समाप्त कर दिया।
यह बात सही थी। कालू के पिताजी एक दुकान में सहायक का काम करते थे और उनकी कमाई अधिक न थी। कालू यह जानता था। जब भी उसके स्कूल की फीस भरनी होती, उसके पिताजी को उधार मांगना पड़ता। कोई पालतू पशु न पाल पाने पर कालू बहुत निराश था, पर उसने बहस नहीं की। वह जानता था कि मां सही हैं।
एक दिन आम के पेड़ पर चढ़ कर कालू अपनी कमीज़ में कच्चे आम ठूंस रहा था। वह बड़े ध्यान से बूढ़े बदरुद्दीन पर आंखें लगाए था ?योंकि यह पेड़ बदरुद्दीन के अहाते में था। यदि वह कालू को आम के पेड़ पर देख लेता था तो वह उसे गालियां देता हुआ उसकी ओर छड़ी हिलाता था।
अपनी नुकीली नाक और लाल दाढ़ी की वजह से वह बूढ़ा आदमी बड़ा मज़ेदार लगता था और कालू को उसे चिढ़ाना बहुत भाता था।जब कालू पेट के बल, एक लेटी हुई टहनी पर लेटा हुआ धीरे-से चार आमों के एक गुच्छे की ओर बढ़ रहा था तभी अचानक उसके हाथ में जोर से दर्द हुआ। न जाने कहां से एक तोता वहां आ गया और बिना उसके छेड़े, अपनी मुड़ी हुई लाल चोंच झुका कर उसने कालू के हाथ पर काट लिया। कालू दर्द से चीख उठा और धड़ाम से नीचे आ गिरा।
इस झटके की वजह से कुछ देर वहीं बिना हिले पड़ा रहा। वह टमाटरों की एक ?यारी में गिरा था और ये निश्चित था कि इसपर तो बदरुद्दीन उसे मार ही डालेगा। कालू को अपनी पतलून पर कुछ चिपचिपा व गीला-सा लगा और उसने मुड़ कर उसे देखा। उसी समय चिल्लाता और पंख फड़फड़ाता वह तोता उसके पास आ बैठा और पिचके हुए टमाटर पर चोंच मारने लगा। कालू ने शू..शू.. किया। वह अब भी तोते की तीखी चोंच से डरा रहा। पर तोते ने एक न सुनी। इस डर से कि कोई उसकी आवाज़ न सुन ले, कालू उठकर अपने घर की ओर दौड़ा। अचानक ज़ोर से टें-टें करता तोता कालू के कंधे पर आ बैठा। सिर घुमाते ही कालू की आंखें तोते की आंखों से मिलीं। अगर तोते हंस सकते, तो कहना होगा कि यह तो निश्चय ही खीसें निपोर रहा था। और कालू ने उसे भगाने की कितनी ही कोशिश की पर तोता नहीं हिला।
अब तोता कालू के ही घर में रहने लगा। कालू सदा तोते से सावधान रहता ?योंकि तोता हमेशा उसे चिढ़ाता रहता था। जब कालू मेज पर पढ़ाई करता, तोता उसकी कॉपी पर आ बैठता और कोरे पन्ने पर बीट कर देता। कभी उसका रबड़ लेकर उड़ जाता और रबड़ वापस लेने के लिए कालू को पूरे कमरे में उसका पीछा करना पड़ता।
कालू की मां को तोते से बहुत प्यार था। वे उसे अमरूद और हरी मिर्च देतीं। उसके खाते समय वे सुर में बोलतीं, ‘राम-राम, सीता-राम’। वह लालची खाना तो खा लेता, पर वे तोते से कितनी भी जबरदस्ती करें, वह बोलता कुछ नहीं। बस जोर से टें करके अपने पंख फड़फड़ा कर उड़ जाता।
कई दिन बीत गए और कालू बदरुद्दीन के बाग में पके आमों को खाने का लालच रोक न पाया। बदरुद्दीन को अड़ोस-पड़ोस के लड़कों से नफरत थी। वह कालू से भी चिढ़ता था ?योंकि कालू उसके आम चुराता था।जिस दिन कालू उसके टमाटरों की ?यारी में गिरा था, बदरुद्दीन ने उसके पिता से उसकी शिकायत की थी, जिससे कालू की पिटाई भी हुई थी। फिर भी कालू रसीले आम देख कर ललचा उठा।
गर्मी की तपते दुपहरी में जब सब सो रहे थे, कालू छिप कर घर से बाहर आया और पलक झपकते ही आम के पेड़ पर चढ़ गया। लेकिन आम बहुत ऊंचाई में लगे थे और कालू उन तक पहुंच नहीं पा रहा था। तभी तोता वहां प्रकट हो गया और चीख कर विरोध करता उसके कंधे पर बैठ गया। क्रोध के आवेश में कालू ने तोते को उसके पंख से पकड़ कर नीचे पटक दिया।तोते को बहुत चोट लगी। वह दर्द से टिटियाने लगा ?योंकि उसका एक पंख बिल्कुल नहीं हिल रहा था। पेड़ पर से कालू ने बूढ़े बदरुद्दीन को घर से बाहर आते, घायल तोते को उठाते और घर के भीतर ले जाते देखा। कालू पेड़ से नीचे उतरा और झट से घर को दौड़ा।
बदरुद्दीन ने तोते का घायल पंख धोया और कोमल उंगलियों से मरहम लगाया। फिर वह तोते से बोलने लगा, ‘मिट्ठू बोल, अल्लाह-अल्लाह.’तोते ने जरा सी आवाज़ से गला साफ किया और मोटी-भारी आवाज़ में बोला, ‘राम-राम’।
फिर बदरुद्दीन तोते को सहलाने और पुचकारने लगा। तोते ने अपना सिर उचकाया और जल्दी से बदरुद्दीन की नाक पर चोंच मार दी। अगले पांच मिनट तक तो जैसे वहां नरक बन गया। तोता कभी उड़ कर मेज पर बैठे जाता कभी पलंग के पाए पर। बदरुद्दीन गालियां देता उसे पकड़ने की कोशिश में उसके पीछे दौड़ा। उसकी नाक लाल हो गई थी और जलन हो रही थी। वह मेजों के ऊपर और चारपाइयों के आस-पास तोते को पकड़ने के लिए उछलता कूदता रहा।
‘ठहर मैं तेरी गरदन मरोड़ दूं। ठहर मैं तुझे अभी पकड़ता हूं।’ बदरुद्दीन सचमुच बहुत गुस्से में था।तोता बदरुद्दीन के कान में जोर से चीख कर उड़ गया और अलमारी के ऊपर जा बैठा। बदरुद्दीन जोर से उसपर झपटा और धड़ाम से एक कुर्सी पर गिर पड़ा। उसकी टोपी आगे आ गिरी और कुर्सी उसकी गोद में आ पड़ी।‘?या है, यहां ?या हो रहा है?’ बदरुद्दीन की बहू महरुन्निसा कमरे में आई।
‘यह मूर्ख तोता। इसने मुझे काट लिया।’ अपनी टोपी सीधी करते हुए तोते की ओर संकेत करते हुए बदरुद्दीन न कहा।उसी क्षण तोता बोलने लगा ‘मज़ा आया, मज़ा आया।’‘बोलने वाला तोता!!‘ मेहरुन्निसा ने आश्चर्य से कहा। ‘कितना सुंदर है!’‘सुंदर! देखो मेरी नाक पर ?या किया इसने।’‘जाने दीजिए अ?बा। आखिर एक तोता ही तो है।’
उस दिन से तोता बदरुद्दीन के घर में रहने लगा, यद्यपि वह बदरुद्दीन से कुछ दूरी ही रहता था।एक दिन कालू फिर से बदरुद्दीन के बाग में लगी लंबी, पतली भिंडी चुरा रहा था। तभी बदरुद्दीन और वह तोता आपस में झगड़ने लगे। कालू दौड़ कर खिड़की पर गया। यद्यपि कालू को तोता पसंद नहीं था फिर भी उसकी हंसी की कमी उसे खलने लगी थी।
जैसे ही कालू ने अपना तोता बदरुद्दीन के पास देखा। वह तुरंत चीखा, ‘वह मेरा तोता है। अभी मुझे वापस दो।’ ‘तो ले जाओ इस मूर्ख को यहां से और निकल जाओ। अगली बार मैंने तुम्हें यहां देखा तो पुलिस बुला लूंगा’, बदरुद्दीन गुस्से से भड़क उठा।तोते को पकड़ने की बात कहना आसान था पर करना कठिन। कालू बदरुद्दीन से अधिक फुर्तीला था पर तोता कहीं अधिक चतुर था। जब कालू तोते के समीप जाता, वह अपने हरे-हरे पंख फड़फड़ाता और कालू के कान के पास से उड़ जाता और कालू के हाथ बस हवा आती।
अंत में दोनों ने मिलकर तोता पकड़ लिया। कालू ने तोते की चोंच पर कपड़े का एक टुकड़ा बांधा और उसे घर ले आया। एक सुतली से उसका पैर खिड़की से बांध दिया। तुरंत उसकी मां एक हरी मिर्च ले आईं।‘राम, राम। मिट्ठू, राम, राम’, वे बोलीं।तोते ने बड़े स्वाद से हरी मिर्च खाई, बिल्कुल कालू की तरह डकार ली और गहरी, भारी आवाज़ में बोला, ‘अल्लाह..’कालू और उसकी मां चकित थे। ‘शायद यह बदरुद्दीन को अपना स्वामी समझता है’, कालू की मां बोली। इसे उस बूढ़े को भूलने का समय दो। पर कई दिन बाद भी तोता वही कहता रहा। ‘लगता है इसे अपने मालिक से ज्यादा लगाव है’, कहकर कालू की मां ने कालू से तोते को उसके मालिक को लौटा देने को कहा।कालू अपनी मां की कहे को पूरा करने के लिए बदरुद्दीन के घर गया।
‘यह तोता आपको अपना मालिक समझता है’, कालू बोला। यह अल्लाह का नाम लेता रहता है।‘अल्लाह.!!’ बदरुद्दीन हैरान रह गया। ‘पर इतने दिन तो यह राम-राम कहता रहा।’मेहरुन्निसा उनकी बातें सुन रही थी। उसने कालू से पूछा कि ?या तोते ने सचमुच उनके घर अल्लाह का नाम लिया था।‘आओ देखो’, कालू चिल्लाया और तीनों का दल वापस कालू के घर गया।
‘बोल, मिट्ठू’, कालू की मां ने फुसलाया, ‘राम, राम।’‘अल्ला-आ-आह.’ तोते ने गहरे भारी स्वर से कहा। सबके मुंह आश्चर्य से खुले रह गए। यह चतुर पक्षी कालू के घर में अल्लाह को पुकारता था और बदरुद्दीन के घर पर राम-नाम का स्मरण किया करता था।‘हम सबको इससे शिक्षा लेनी चाहिए’, मेहरुन्निसा बोली, ‘सचमुच एक अमूल्य शिक्षा’। ‘इस छोटे से जीव ने हमें एकता और ईश्वर की एकरूपता का अर्थ समझा दिया है। हमें इस पर अवश्य विचार करना चाहिए।’
(कथा कुंज के साभार)



पांच दोस्तों की सीख
एक बार पांच दोस्त थे। वे पांचों जंगल में घूमने गए। घूमते-घूमते पांचो दोस्त राह भटक गए। जंगल में उन्हें एक कुआं दिखाई दिया। वे कुएं के पास बैठकर खाना खाने लगे। तभी उन्हें एक बौना दिखाई दिया। बौना बहुत भूखा था।
इसलिए उसने उनसे रोटी मांगी और कहा-
‘भूखा हूं मैं, रोटी दे दो,
बड़ी नहीं तो छोटी दे दो।’
बौने की बात सुनकर सभी दोस्त हंसने लगे। और वे दूसरी तरफ मुंह करके फिर से खाने लगे।
बौने ने फिर चने मांगे और कहा-
‘भूखा हूं मैं, चने दे दो,
थोड़े दो या ज्यादा दे दो।’
यह बात सुनकर सारे दोस्त फिर से हंसने लगे।
लेकिन एक दोस्त को दया आ गई और उसने बौने को रोटी और चने दे दिए। बौना खुश हो गया। हकीकत में वह बौना और कोई नहीं, राजा इन्द्र थे। बौने ने अपना असली रूप ले लिया और लड़के से कहा-
‘राजा इन्द्र हमारा नाम,
दया परखना अपना काम,
दुखियों पर जो दया दिखाते,
देता हूं मैं उन्हें इनाम।’
और राजा इन्द्र ने उस लड़के को एक मोती दे दिया और वह वहां से चला गया।
जा इन्द्र के जाने के बाद पांचो दोस्तों ने कसम खाई कि वो हमेशा गरीबों तथा ज़रूरतमंदों की सहायता करेंगे। इसके बाद सभी दोस्त खुशी-खुशी जंगल में रास्ता ढूंढने के लिए निकल पड़े।

हीरा की समझदारी
‘चाय वाला, चाय वाला, गरमा-गरम चाय’, एक हाथ में चाय की केतली पकड़े व दूसरे हाथ में प्लास्टिक के छोटे गिलासों को पकड़े हीरा चलती ट्रेन में आवाज़ लगा रहा था। ‘ओए छोटू! एक चाय देना’, पर्स में से पांच रुपए निकालते हुए एक महिला ने कहा। हीरा ने गर्म चाय गिलास में डाली तथा महिला को चाय देकर, पैसे लेकर उन्हें जेब में डाल लिए। आगे बढ़कर वह फिर आवाज़ें लगाने लगा ‘चाय चाय, गर्म चाय।’

रोज़ सुबह से लेकर देर शाम तक वह ट्रेनों में चाय बेचता था और बदले में ठेकेदार उसे 50 रुपए दिहाड़ी दिया करता था।
हीरा का परिवार बहुत गरीब था। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। ज्यादा शराब पीने से उसके पिता के दोनों गुर्दे खराब हो गए थे। ईलाज करवाने में उसके परिवार पर कर्ज़ भी काफी चढ़ गया था।

हीरा की मां लोगों के घरों में काम करके मुश्किल से परिवार का गुज़ारा करती थी। हीरा के दो भाई-बहन भी थे, उससे छोटे। परिवार को सहारा देने के लिए हीरा ने पढ़ाई बीच में ही छोड़कर चाय बेचने का काम शुरू कर दिया था। लेकिन उसका पढ़ने का मन बहुत करता था।
रोजमर्रा की तरह हीरा ट्रेन में आवाज़ें लगा रहा था।
‘चाय गरम, चाय पी लो, गरमा-गरम चाय।’ डिब्बे में बहुत भीड़ थी। लोग भेड़-बकरियों की तरह ठूंसे हुए थे। दूसरा स्टेशन आने में अभी वक्त था। ‘ओए छोटू, दो चाय देना’। एक लंबे कद व दाढ़ी वाले युवक ने कहा। उसने काला चश्मा पहना हुआ था। उसके साथ एक अधेड़ आयु का दूसरा व्यक्ति भी था, जिसके हाथ में एक लैदर का बैग था। ‘अभी लो साहब’, कहते हुए हीरा ने गिलासों में चाय उड़ेलनी शुरू कर दी।

चाय लेकर उस युवक ने सौ रुपये का नोट उसे पकड़ाया। ’खुले पैसे दो साहब, सुबह-सुबह बोहनी का टाईम है’, हीरा ने कहा। ‘खुले पैसे तो मेरे पास भी नहीं हैं’ युवक ने लापरवाही से कहा। ‘ठीक है साहब मैं पैसे खुले करवा कर लाता हूं’ कहकर हीरा अपने दूसरे साथी से पैसे खुलवाने के लिए डिब्बे में पिछली तरफ चला गया। दोनों आदमी चाय पीने लगे। अब तक ट्रेन की रफ्तार भी काफी धीमी हो चुकी थी।

स्टेशन नजदीक ही था। ब्रेड-पकौड़े वाले से पैसे खुले कराकर जब हीरा उन्हें पैसे वापस देने आया तो उसने देखा कि दरवाज़े के पास खड़े दोनों आदमी गायब थे। हीरा ने उन्हें सारे डिब्बे में तलाशा, लेकिन सब व्यर्थ। बिना पैसे वापस लिए आखिर दोनों कहां गायब हो गए, यह सोचते हुए हीरा अभी वापस मुड़ा ही था कि उसकी नज़र सीट के साथ रखे बैग पर पड़ी।

यह वही बैग था, जो उन आदमियों के पास था।
हीरा समझ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। बिना पैसे लिए बैग ट्रेन में ही छोड़कर उन दोनों का गायब होना, कही इस बैग में बम तो नहीं- यह सोचकर वह भीतर तक सिहर उठा। उसकी टांगे कांपने लगीं। वह समझ गया कि दोनों आदमी धीमी ट्रेन से पहले ही कूद कर भाग चुके हैं।

एक बार उसने सोचा कि शोर मचा दे लेकिन दूसरे ही पल उसने समझदारी से काम लिया कि शोर मचाने से डिब्बे में अफरा-तफरी मच सकती है। यात्री व बच्चे घायल हो सकते हैं। और यदि बम न हुआ तो लफड़ा अलग से। अब तक स्टेशन भी आ चुका था।

ट्रेन अभी पूरी तरह रुकी नहीं थी कि हीरा ने बाहर छलांग लगा दी। संतुलन बिगड़ने से वह गिर गया तथा उसकी कोहनियां व घुटने छिल गए। केतली व गिलास भी गिर गए। बिना चोट की परवाह किए वह स्टेशन पर बने पुलिस कार्यालय की तरफ भागा और वहां बैठे पुलिस इंस्पेक्टर को जल्दी से सारी बात बताई। सभी पुलिस वाले तुरंत उसके साथ डिब्बे की ओर दौड़े।

स्टेशन मास्टर ने भी सूचना दी। थोड़ी ही देर में जिला प्रशासन व पुलिस के अधिकारी स्टेशन पर पहुंची उनके साथ खोजी कुत्ते व बम निरोधक दस्ता भी था।
खोजी कुत्तें डिब्बे में चढ़े तथा सामान को सूंघने लगे।

उस बैग को सूंघकर कुत्ते भौंकने लगे। बम निरोधक दस्ते वाले समझ गए कि इसमें विस्फोटक सामग्री है। उन्होंने बड़ी सावधानी से बम को डिफ्यूज़ कर दिया। स्टेशन पर खड़े सभी लोगों की सांसे अटकी हुई थी।

अब तक टी.वी. चैनल व समाचार पत्रों के पत्रकार व कैमरामैन भी स्टेशन पर पहुंच चुके थे। लगभग दस मिनट के बाद जब बम निरोधक दस्ता डिफ्यूज़ बम व बैग को लेकर डिब्बे ले बाहर आया, तो सभी की जान में जान आई।

अफसरों ने हीरा की पीठ थपथपाई और उसे शाबाशी दी। एक डॉक्टर ने हीरा की मरहम पट्टी की। सभी टीवी चैनलों पर हीरा की बहादुरी की खबरें प्रसारित हो रही थीं। मुख्यमंत्री ने भी हीरा की बहादुरी से खुश होकर उसे दो लाख रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की।

अगले दिन सभी समाचार पत्रों में पहले पन्ने पर उसकी फोटो छपी थी। शहर के एक पब्लिक स्कूल ने हीरा की मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की। हीरा अब स्कूल जाने लगा। वह खुश था कि उसकी थोड़ी-सी समझदारी से बहुत से लोगों की जानें बच गईं और उसकी पढ़ाई भी दोबारा शुरू हो गई।

एक किसान जरा हटके
दुनिया में तरह-तरह के जीव हैं, और इन सब जीवों के भोजन ग्रहण करने की आदतें भी भिन्न-भिन्न हैं। ज्यादातर जीव अपना भोजन अपने आस-पास से प्राप्त करते हैं, लेकिन कुछ जीव ऐसे हैं, जो अपना भोजन खुद उगाते हैं। जी हां, चौंकिए मत, आपने सही पढ़ा। वे जीव मेहनत कर खेती करते हैं और अपना भोजन खुद उगाते हैं।
जानते हैं, वे कौन से जीव हैं? ये मेहनती जीव हैं, दक्षिण अमेरिका के जंगलों में पाई जाने वाली चीटियां। ये चीटियां जमीन के नीचे खेती करती हैं, इसलिए ये खेत दिखाई नहीं देते।
ये चींटियां जमीन की सतह के नीचे सावधानीपूर्वक साफ की गई सुरंगों में, पत्तियों- फूलों आदि की कतरन या कैटरपिलर के मल को एकत्रित कर कवक उगाती हैं।
वे यह काम बहुत ही निपुणता से करतीं हैं। एक खेत में एक ही प्रकार का सामान एकत्रित किया जाता है। अगर कोई समूह पत्तियों के टुकड़ों का इस्तेमाल कर रहा है, तो वह समूह केवल एक ही प्रकार के पेड़ की पत्तियों का संग्रह करता है। अगर पंखुड़ियों का उपयोग किया जा रहा है, तो केवल एक ही प्रकार के फूलों का संग्रहण किया जाता है।
यह माना जाता है कि अलग-अलग कवक उगाने के लिए वे अलग-अलग पदार्थ का उपयोग करतीं हैं। ये खेत कोई छोटे-मोटे खेत नहीं होते, इनमें लगभग तीस लीटर तक खाद का उपयोग होता है।
खाद इकठ्ठा करने के बाद चीटियां पहले खुद की साफ-सफाई करती हैं, फिर लाए हुए सामान की साफ-सफाई में जुट जाती हैं। उसके बाद वे इन कतरनों को चबा-चबा कर नरम बनाती हैं और खेत में एक परत बिछाती हैं।


वे चीटियां जो खेतों में काम करती हैं, वे बाहर कम ही जाती हैं। अगर वे बाहर गई तो खेतों में आने से पहले खुद को फिर से साफ करती हैं। समय-समय पर वे खेतों में अपने लावे आदि का छिड़काव भी करती हैं और खरपतवाररूपी बैक्टीरिया तथा कवकों को भी चुन कर साफ करतीं हैं। यानि हमारे लिए अनाज उगाने वाले किसानों की तरह वे भी अपने खेतों में दिन-रात कमर तोड़ मेहनत करती हैं।
यह काम इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि किसी भी एक तरह के सूक्ष्म जीव को उगाने के लिए वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में तरह-तरह के उपकरणों का उपयोग करते हैं, जबकि चींटियों के पास ऐसा कुछ नहीं होता।
चीटियों को यह भी पता होता है कि किस बिछावत पर कौन सा कवक उगेगा। सूक्षम खरपतवारों को वो बिना माइक्रोस्कोप के देख लेती हैं और हटा भी देती हैं। फसल तैयार होने पर चीटियां और उनके लावी जम कर दावत उड़ाते हैं। बाकी बची फसल को रानी चींटी के पास सुरक्षित रख दिया जाता है। इस तरह से ये चीटियां पत्तियों के सेल्युलोस या काबरेहाइड्रेट को प्रोटीन में बदल देती हैं और अपना पेट भरती हैं।
उनके इस काम से हमें भी फ़ायदा होता है। वे ज्यादातर उन पत्तियों का उपयोग करती हैं, जो आसानी से नहीं सड़तीं, जैसे नीबू की पत्ती। मगर इन चीटियों के कारण वे आसानी से सड़ जाती हैं और खाद बनकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है। हुआ न आम के आम गुठलियों के दाम।

ज्ञान की बात
यह माना जाता है कि अलग-अलग कवक उगाने के लिए वे अलग-अलग पदार्थ का उपयोग करतीं हैं। ये खेत कोई छोटे-मोटे खेत नहीं होते, इनमें लगभग तीस लीटर तक खाद का उपयोग होता है।
खाद इकठ्ठा करने के बाद चीटियां पहले खुद की साफ-सफाई करती हैं, फिर लाए हुए सामान की साफ-सफाई में जुट जाती हैं। उसके बाद वे इन कतरनों को चबा-चबा कर नरम बनाती हैं और खेत में एक परत बिछाती हैं।
वे चीटियां जो खेतों में काम करती हैं, वे बाहर कम ही जाती हैं। अगर वे बाहर गई तो खेतों में आने से पहले खुद को फिर से साफ करती हैं। समय-समय पर वे खेतों में अपने लावे आदि का छिड़काव भी करती हैं और खरपतवाररूपी बैक्टीरिया तथा कवकों को भी चुन कर साफ करतीं हैं। यानि हमारे लिए अनाज उगाने वाले किसानों की तरह वे भी अपने खेतों में दिन-रात कमर तोड़ मेहनत करती हैं।
यह काम इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि किसी भी एक तरह के सूक्ष्म जीव को उगाने के लिए वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में तरह-तरह के उपकरणों का उपयोग करते हैं, जबकि चींटियों के पास ऐसा कुछ नहीं होता।
चीटियों को यह भी पता होता है कि किस बिछावत पर कौन सा कवक उगेगा। सूक्षम खरपतवारों को वो बिना माइक्रोस्कोप के देख लेती हैं और हटा भी देती हैं।
फसल तैयार होने पर चीटियां और उनके लावी जम कर दावत उड़ाते हैं। बाकी बची फसल को रानी चींटी के पास सुरक्षित रख दिया जाता है। इस तरह से ये चीटियां पत्तियों के सेल्युलोस या काबरेहाइड्रेट को प्रोटीन में बदल देती हैं और अपना पेट भरती हैं।
उनके इस काम से हमें भी फ़ायदा होता है। वे ज्यादातर उन पत्तियों का उपयोग करती हैं, जो आसानी से नहीं सड़तीं, जैसे नीबू की पत्ती। मगर इन चीटियों के कारण वे आसानी से सड़ जाती हैं और खाद बनकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है। हुआ न आम के आम गुठलियों के दाम।

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