पूर्व मीमांसा के बाद इस उत्तर मींमासा का आरंभ किया गया है। उत्तर मीमांसा में ज्ञान प्रकरण है। मैत्रेयजी कहते हैं कपिल ब्रह्मज्ञान के स्वरूप हैं। कर्दम अर्थात इंद्रियों का दमन करने वाला, अर्थात जितेंद्रीय। उनके तप से भगवान प्रसन्न हुए और भगवान ऋषि के घर पधारे।भगवान ने कर्दम ऋषि से कहा- दो दिन बाद मनु महाराज तुम्हारे पास आएंगे, अपनी पुत्री देवहुति तुम्हें देंगें। भगवान ने कहा कि मैं पुत्र रूप में तुम्हारे यहां आऊंगा। जगत को सांख्य शास्त्र का उपदेश करना है। ऐसा कहकर श्रीहरि वहां से विदा हुए।
मनु-शतरूपा अपनी पुत्री देवहुति को लेकर आए कर्दम से कहा विवाह कर लो। कर्दम ने विवाह स्वीकार किया। मनु महाराज ने विधि पूर्वक कन्यादान किया और देवहूति तथा कर्दम ऋषि का विवाह हो गया। पूर्व मीमांसा में वाराह नारायण की कथा कही गई है और उत्तर मीमांसा में कपिल नारायण का चरित्र है।हर माता-पिता को चिंता होती है कि अपनी पुत्री का विवाह करना है। तो मनु-शतरूपा को भी लगा कि हमारी तीन बेटियां हैं और तीनों को ठीक घर में दें। उनको मालूम था आकुति हर किसी से मिल जाती है तो आकुति का विवाह रूचि से कर दिया।
अब बचीं देवहुति। हुति मतलब बुद्धि, जिसकी बुद्धि देव भगवान में लगी हो तो उन्होंने उसे कर्दम को सौंप दिया। तीसरी बेटी थीं प्रसूति जो सती की मां थीं। प्रसूति को माता-पिता जानते थे कि इसका विवाह ऐसे घर में करना पड़ेगा जो युवक इसे प्रसन्न रख सके। माता-पिता सोच रहे हैं कि प्रसूति का विवाह किससे करें तो उन्होंने दक्ष से विवाह कर दिया। दक्ष मतलब जो बहुत ही टेलेंटेड हो, दक्ष मतलब सक्षम हो, वह संभाल लेगा हमारी बेटी को।
दाम्पत्य जीवन में संयम रखें
भागवत महापुराण की जब सात दिवसीय कथा की जाती है तो सप्ताह पारायण के सात विश्राम स्थल होते हैं। पहला विश्राम तीसरे स्कंध के 22वें अध्याय तक रहता है। हम कल वहां तक पढ़ चुके थे जहां मनु और शतरूपा के वंश की चर्चा आई है। कर्दम का विवाह मनु महाराज की पुत्री देवहुति से हुआ। अब इसके बाद भगवान कपिल का जन्म होगा। यहां कथा 22वें अध्याय पर आकर खत्म हो रही है।
हमने तृतीय स्कंध में पढ़ा था इसके दो भाग थे पूर्वनिमांसा, उत्तरनिमांसा। आगे भगवान कपिल का वर्णन होगा। अपनी स्मृति में दो-तीन बातें बनाए राखिएगा कि पहले दिन संयम की कथा की जाएगी। संयम चूक गए दिति और कश्यप और उनके घर हिरण्याक्ष और हिरण्यकषिपु का जन्म हुआ। संयम बना हुआ था तो कर्दम और देवहुति के जीवन में तो कपिल भगवान का जन्म हुआ। आइए विश्राम स्थलों के अनुसार भागवतजी के इस अनुष्ठान के दूसरे दिन में प्रवेश करते हैं। आप लोग पुन: स्मरण कर लें सूतजी शौनकादि ऋषियों को कथा सुना रहे हैं। कथा सुना रहे हैं शुकदेवजी, परीक्षितजी को। पिछले प्रसंगों में मैत्रेयजी विदुरजी को कथा सुना रहे थे।
तो एक श्रोता एक वक्ता, एक श्रोता एक वक्ता। बहुत सारी कथा फ्लैशबैक में चल रही हैं लेकिन हमें स्मरण रखना है कि इसके मुख्य वक्ता शुकदेवजी हैं और मुख्य श्रोता राजा परीक्षित हैं। अब हम गीता से निश्कामता को जानते हुए प्रसंगों को पढ़ेंगे। दूसरी बात इसमें भगवान का वाड्मय स्वरूप है। भगवान अपने स्वरूप के साथ स्थापित हुए हैं। इसलिए इसका महत्व है। दूसरे स्कंध से आठवें स्कंध तक की जो कथा अब आएगी इसमें गीता कर्म करना सीखाती है।
जीवन में जरुरी है पारदर्शिता
हम जिस तरह का जीवन जीते हैं इसमें चार तरह का व्यवहार होता है। हमारा पहला जीवन होता है सामाजिक जीवन, दूसरा व्यावसायिक , तीसरा पारिवारिक और चौथा हमारा निजी जीवन। हमारा सामाजिक जीवन पारदर्शिता पर टिका है। व्यावसायिक जीवन परिश्रम पर, पारिवारिक जीवन प्रेम पर तथा निजी जीवन पवित्रता पर टिका है। हमारे जीवन के ये चार हिस्से भागवत के प्रसंगों में बार-बार झलकते मिलेंगे।
हमारे सामाजिक जीवन में पारदर्शिता बहुत जरुरी है। महाभारत में जितने भी पात्र आए उनके जीवन की पारदर्शिता खंडित हो चुकी थी। भागवत में भी चर्चा आती है कि दुर्योधन, दुर्योधन क्यों बन गया। दुर्योधन, दुर्योधन इसलिए बन गया क्योंकि दुर्योधन जब पैदा हुआ तो उसके मन में जितने प्रश्न थे उसके उत्तर उसको नहीं दिए गए। जब उसने होश संभाला तो सबसे पहले उसने ये पूछा कि मेरी मां इस तरह से अंधी क्यों है। राजमहल में कोई जवाब नहीं देता था क्योंकि सब जानते थे कि गांधारी ने अपने स्वसुर भीष्म के कारण पट्टी बांधी थी।
भीष्म ने दबाव में गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करवाया था। भीष्म ने सोचा योग्य युवती अंधे के साथ बांधेंगे तो गृहस्थी, राज, सिंहासन अच्छा चलेगा। जैसे ही गांधारी को पता लगा कि मेरा पति अंधा है और मुझे इसलिए लाया गया तो उसने भी आजीवन स्वैच्छिक अंधतत्व स्वीकार कर लिया। ये प्रश्न हमेशा दुर्योधन के मन में खड़ा होता था कि मेरी मां ने ये मूर्खता क्यों की? तो महाभारत ने कहा गया है कि पारदर्शिता रखिए अपने सामाजिक जीवन में।
मनु-शतरूपा अपनी पुत्री देवहुति को लेकर आए कर्दम से कहा विवाह कर लो। कर्दम ने विवाह स्वीकार किया। मनु महाराज ने विधि पूर्वक कन्यादान किया और देवहूति तथा कर्दम ऋषि का विवाह हो गया। पूर्व मीमांसा में वाराह नारायण की कथा कही गई है और उत्तर मीमांसा में कपिल नारायण का चरित्र है।हर माता-पिता को चिंता होती है कि अपनी पुत्री का विवाह करना है। तो मनु-शतरूपा को भी लगा कि हमारी तीन बेटियां हैं और तीनों को ठीक घर में दें। उनको मालूम था आकुति हर किसी से मिल जाती है तो आकुति का विवाह रूचि से कर दिया।
अब बचीं देवहुति। हुति मतलब बुद्धि, जिसकी बुद्धि देव भगवान में लगी हो तो उन्होंने उसे कर्दम को सौंप दिया। तीसरी बेटी थीं प्रसूति जो सती की मां थीं। प्रसूति को माता-पिता जानते थे कि इसका विवाह ऐसे घर में करना पड़ेगा जो युवक इसे प्रसन्न रख सके। माता-पिता सोच रहे हैं कि प्रसूति का विवाह किससे करें तो उन्होंने दक्ष से विवाह कर दिया। दक्ष मतलब जो बहुत ही टेलेंटेड हो, दक्ष मतलब सक्षम हो, वह संभाल लेगा हमारी बेटी को।
दाम्पत्य जीवन में संयम रखें
भागवत महापुराण की जब सात दिवसीय कथा की जाती है तो सप्ताह पारायण के सात विश्राम स्थल होते हैं। पहला विश्राम तीसरे स्कंध के 22वें अध्याय तक रहता है। हम कल वहां तक पढ़ चुके थे जहां मनु और शतरूपा के वंश की चर्चा आई है। कर्दम का विवाह मनु महाराज की पुत्री देवहुति से हुआ। अब इसके बाद भगवान कपिल का जन्म होगा। यहां कथा 22वें अध्याय पर आकर खत्म हो रही है।
हमने तृतीय स्कंध में पढ़ा था इसके दो भाग थे पूर्वनिमांसा, उत्तरनिमांसा। आगे भगवान कपिल का वर्णन होगा। अपनी स्मृति में दो-तीन बातें बनाए राखिएगा कि पहले दिन संयम की कथा की जाएगी। संयम चूक गए दिति और कश्यप और उनके घर हिरण्याक्ष और हिरण्यकषिपु का जन्म हुआ। संयम बना हुआ था तो कर्दम और देवहुति के जीवन में तो कपिल भगवान का जन्म हुआ। आइए विश्राम स्थलों के अनुसार भागवतजी के इस अनुष्ठान के दूसरे दिन में प्रवेश करते हैं। आप लोग पुन: स्मरण कर लें सूतजी शौनकादि ऋषियों को कथा सुना रहे हैं। कथा सुना रहे हैं शुकदेवजी, परीक्षितजी को। पिछले प्रसंगों में मैत्रेयजी विदुरजी को कथा सुना रहे थे।
तो एक श्रोता एक वक्ता, एक श्रोता एक वक्ता। बहुत सारी कथा फ्लैशबैक में चल रही हैं लेकिन हमें स्मरण रखना है कि इसके मुख्य वक्ता शुकदेवजी हैं और मुख्य श्रोता राजा परीक्षित हैं। अब हम गीता से निश्कामता को जानते हुए प्रसंगों को पढ़ेंगे। दूसरी बात इसमें भगवान का वाड्मय स्वरूप है। भगवान अपने स्वरूप के साथ स्थापित हुए हैं। इसलिए इसका महत्व है। दूसरे स्कंध से आठवें स्कंध तक की जो कथा अब आएगी इसमें गीता कर्म करना सीखाती है।
जीवन में जरुरी है पारदर्शिता
हम जिस तरह का जीवन जीते हैं इसमें चार तरह का व्यवहार होता है। हमारा पहला जीवन होता है सामाजिक जीवन, दूसरा व्यावसायिक , तीसरा पारिवारिक और चौथा हमारा निजी जीवन। हमारा सामाजिक जीवन पारदर्शिता पर टिका है। व्यावसायिक जीवन परिश्रम पर, पारिवारिक जीवन प्रेम पर तथा निजी जीवन पवित्रता पर टिका है। हमारे जीवन के ये चार हिस्से भागवत के प्रसंगों में बार-बार झलकते मिलेंगे।
हमारे सामाजिक जीवन में पारदर्शिता बहुत जरुरी है। महाभारत में जितने भी पात्र आए उनके जीवन की पारदर्शिता खंडित हो चुकी थी। भागवत में भी चर्चा आती है कि दुर्योधन, दुर्योधन क्यों बन गया। दुर्योधन, दुर्योधन इसलिए बन गया क्योंकि दुर्योधन जब पैदा हुआ तो उसके मन में जितने प्रश्न थे उसके उत्तर उसको नहीं दिए गए। जब उसने होश संभाला तो सबसे पहले उसने ये पूछा कि मेरी मां इस तरह से अंधी क्यों है। राजमहल में कोई जवाब नहीं देता था क्योंकि सब जानते थे कि गांधारी ने अपने स्वसुर भीष्म के कारण पट्टी बांधी थी।
भीष्म ने दबाव में गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करवाया था। भीष्म ने सोचा योग्य युवती अंधे के साथ बांधेंगे तो गृहस्थी, राज, सिंहासन अच्छा चलेगा। जैसे ही गांधारी को पता लगा कि मेरा पति अंधा है और मुझे इसलिए लाया गया तो उसने भी आजीवन स्वैच्छिक अंधतत्व स्वीकार कर लिया। ये प्रश्न हमेशा दुर्योधन के मन में खड़ा होता था कि मेरी मां ने ये मूर्खता क्यों की? तो महाभारत ने कहा गया है कि पारदर्शिता रखिए अपने सामाजिक जीवन में।