शनिवार, 21 अगस्त 2010

भागवत: ५३ -ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न हुए ऋषि

नील लोहित के जाने पर ब्रह्माजी ने अपने दस अंगों से दस पुत्र उत्पन्न किए। उनकी गोद से प्रजापति, अंगुष्ट से दक्ष, प्राण से वशिष्ठ, त्वचा से भृगु, हस्थ से ऋतु, नाभि से पुलक, कर्णों से पुलस्त्य मुख से अंगिरा, नेत्रों से अत्रि, मन से मरीची और इसके अतिरिक्त भी ब्रह्माजी के हृदय से काम, भोहों से क्रोध, अदरोष्ठ से लोभ, वाक से सरस्वती, लिंग से समुद्र, गुदा से निरूक्ति, छाया से कर्दम, दक्षिण स्तन से धर्म ओर वाम स्तन से अधर्म उत्पन्न हुए।

जब मरीची आदि से भी प्रजा बढ़ी तो ब्रह्माजी ने पुन: भगवान का स्मरण किया। भगवान का ध्यान करते ही ब्रह्माजी के शरीर के दो भाग हो गए। एक भाग पुरूष बना और दूसरा भाग स्त्री। जो पुरूष बना वही स्वयंभू मनु और जो स्त्री बनीं वे शतरूपा नाम की रानी बनी। मनु व शतरूपा से दो पुत्र व तीन कन्याएं उत्पन्न हुईं। पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद व कन्याओं के नाम हैं आकूति, देवहूति, और प्रसूति थे। इन्हीं तीन कन्याओं का क्रमश: रूचि, कर्दम और दक्ष प्रजापति के साथ विवाह किया। फिर इन तीन दंपत्तियों से ही आगे की समस्त सृष्टि का विस्तार हुआ।
जब हिरण्याक्ष को इस बात का ज्ञान हुआ तो उसने संपूर्ण पृथ्वी को पानी में छुपा दिया। तब ब्रह्मा की नासिकाओं से वराह भगवान प्रकट हुए। उन्होंने पृथ्वी को पानी से बाहर निकाला। हिरण्याक्ष को मारा। और पृथ्वी का शासन मनु के हाथों सौंपकर भगवान स्वधाम लौट गए।