ऐसा सुपर डांस है रासलीला
युग के बदलाव के कारण आज भगवान कृष्ण की रासलीला को कोई साधारण नृत्य मानकर उसके धार्मिक और दार्शनिक महत्व को नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि इस रासलीला के जीवन से जुड़े गहरे अर्थ है, जो धर्मशास्त्रों में बताए गए हैं। जानते हैं इस पहलू को -
रासलीला का धर्म दर्शन यही है कि भगवान श्रीकृष्ण परमात्मा हैं और राधा या अन्य गोपियां जीव आत्मा का रुप है। इस बात को सरल रुप मे समझें तो पूरा जगत भगवान श्रीकृष्ण का रुप और इसमें होने वाली समस्त क्रियाएं और हलचल जिसे प्रकृति नृत्य कहा जा सकता है, गोपियां हैं। इस तरह जगत में होने वाली हर घटना श्रीकृष्ण यानि पुरुष और प्रकृति यानि गोपियों के मिलन से होने वाला महारास ही है। इस प्रकार इसे आत्मा और परमात्मा का मिलन माना जाता है।
चूंकि हमारा जीवन भी इसी जगत का हिस्सा है। इसलिए जीवन में मिलने वाला शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक सुख और उस सुख के साधन उस महारास का ही एक रुप है। भगवान कृष्ण ने यही संदेश बचपन में ही गोपियों और गोपियों के माध्यम से जगत को दिया। रासलीला में हर गोपी को कृष्ण के उनके साथ ही नृत्य करने का एहसास होना भी इसी बात का प्रतीक है।
इसलिए श्रीकृष्ण की रासलीला साधारण नृत्य नहीं था। रासलीला का साधारण या यौन अर्थ निकालना भी धर्म की दृष्टि से हास्यास्पद और निरर्थक ही है।
युग के बदलाव के कारण आज भगवान कृष्ण की रासलीला को कोई साधारण नृत्य मानकर उसके धार्मिक और दार्शनिक महत्व को नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि इस रासलीला के जीवन से जुड़े गहरे अर्थ है, जो धर्मशास्त्रों में बताए गए हैं। जानते हैं इस पहलू को -
रासलीला का धर्म दर्शन यही है कि भगवान श्रीकृष्ण परमात्मा हैं और राधा या अन्य गोपियां जीव आत्मा का रुप है। इस बात को सरल रुप मे समझें तो पूरा जगत भगवान श्रीकृष्ण का रुप और इसमें होने वाली समस्त क्रियाएं और हलचल जिसे प्रकृति नृत्य कहा जा सकता है, गोपियां हैं। इस तरह जगत में होने वाली हर घटना श्रीकृष्ण यानि पुरुष और प्रकृति यानि गोपियों के मिलन से होने वाला महारास ही है। इस प्रकार इसे आत्मा और परमात्मा का मिलन माना जाता है।
चूंकि हमारा जीवन भी इसी जगत का हिस्सा है। इसलिए जीवन में मिलने वाला शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक सुख और उस सुख के साधन उस महारास का ही एक रुप है। भगवान कृष्ण ने यही संदेश बचपन में ही गोपियों और गोपियों के माध्यम से जगत को दिया। रासलीला में हर गोपी को कृष्ण के उनके साथ ही नृत्य करने का एहसास होना भी इसी बात का प्रतीक है।
इसलिए श्रीकृष्ण की रासलीला साधारण नृत्य नहीं था। रासलीला का साधारण या यौन अर्थ निकालना भी धर्म की दृष्टि से हास्यास्पद और निरर्थक ही है।