मंगलवार, 10 अगस्त 2010

काल नहीं जीवनदाता है नाग

सावन माह में नागपंचमी का पर्व नाग पूजा को समर्पित है। धार्मिक दृष्टि से यह शिव का आभूषण है। जिसे शिव अपने गले में हार बनाकर पहनते हैं। वहीं व्यावहारिक जीवन में नाग को काल यानि मृत्यु का कारण बनने वाला जीव होने से भय या आत्मरक्षा के लिए मानव द्वारा मार भी दिया जाता है।

नागपंचमी पर्व यही सिखाता है कि स्वाभाविक रुप से नागजाति की उत्पत्ति मानव को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई। बल्कि वह मानव जाति के लिए जीवनदाता है। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। नाग खेती को नुकसान करने वाले चूहे एवं अन्य कीट आदि का भक्षण कर फसल की रक्षा ही करते हैं। इस तरह अदृश्य रुप से वह हमारे लिए अन्नदाता है। साथ ही पर्यावरण संतुलन में भी भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार यह हम पर नाग-जाति का उपकार होता है। हिन्दू माह के आषाढ़ और सावन माह में सर्पजाति का प्रजनन काल भी होता है। इसलिए इस काल में वह अधिक सक्रिय देखे जाते हैं। बारिश के मौसम में प्राकृतिक आवास के नष्ट होने से भी वह बाहर निकल आते हैं। न कि किसी मानव की हत्या के इरादे से। जीवन में ऐसे ही अवसरों से हर मानव भी गुजरता है। अत: ऐसे मौकों पर मानव एक-दूसरे से जो भावनात्मक व्यवहार करता है। ठीक उसी तरह की संवेदना हमें नाग जाति के लिए भी रखनी चाहिए। नाग-जाति को मारना या उनके प्रति हिंसा नहीं करना चाहिए।
वास्तव में नागपंचमी नाग जाति के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का पर्व है। यह पर्व नाग के साथ प्राणी जगत की सुरक्षा, प्रेम, अहिंसा, करुणा, सहनशीलता के भाव जगाता है। साथ ही प्राणियों के प्रति संवेदना का संदेश देता है।
साभार-भास्कर

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