एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। उसकी बेटी की शादी उसने दूसरे गाँव में की थी। अपनी बेटी से मिले बुढ़िया को बहुत दिन हो गए। एक दिन उसने सोचा कि चलो बेटी से मिलने जाती हूँ।
यह बात मन में सोचकर बुढ़िया ने नए-नए कपड़े, मिठाइयाँ और थोड़ा-बहुत सामान लिया। और चल दी अपनी बेटी के गाँव की ओर।
चलते-चलते उसके रास्ते में जंगल आया। उस समय तक रात होने को आई और अँधेरा भी घिरने लगा। तभी उसे सामने से आता हुआ बब्बर शेर दिखाई दिया।
बुढ़िया को देख वह गुर्राया और बोला- बुढ़िया कहाँ जा रही हो? मैं तुम्हें खा जाऊँगा।
बुढ़िया बोली- शेर दादा, शेर दादा तुम मुझे अभी मत खाओ। मैं अपनी बेटी के घर जा रही हूँ। बेटी के घर जाऊँगी, खीर-पूड़ी खाऊँगी। मोटी-ताजी हो जाऊँगी फिर तू मुझे खाना।
शेर ने कहा- ठीक है, वापसी में मिलना।
फिर बुढ़िया आगे चल दी। आगे रास्ते में उसे चीता मिला। चीते ने बुढ़िया को रोका और वह बोला- ओ बुढ़िया कहाँ जा रही हो?
बुढ़िया बड़ी मीठी आवाज में बोली- बेटा, मैं अपनी बेटी के घर जा रही हूँ। चीते ने कहा- अब तो तुम मेरे सामने हो और मैं तुम्हें खाने वाला हूँ।
बुढ़िया गिड़गिड़ाते हुए कहने लगी- तुम अभी मुझे खाओगे तो तुम्हें मजा नहीं आएगा। मैं अपनी बेटी के यहाँ जाऊँगी वहाँ पर खीर-पूड़ी खाऊँगी, मोटी-ताजी हो जाऊँगी, फिर तू मुझे खाना।
चीते ने कहा- ठीक है, जब वापस आओगी तब मैं तुम्हें खाऊँगा।
फिर बुढ़िया आगे बढ़ी। आगे उसे मिला भालू। भालू ने बुढ़िया से वैसे ही कहा जैसे शेर और चीते ने कहा था। बुढ़िया ने उसे भी वैसा ही जवाब देकर टाल दिया।
सबेरा होने तक बुढ़िया अपनी बेटी के घर पहुँच गई। उसने रास्ते की सारी कहानी अपनी बेटी को सुनाई।बेटी ने कहा कि माँ फिक्र मत करो। मैं सब संभाल लूँगी।
बुढ़िया अपनी बेटी के यहाँ बड़े मजे में रही। चकाचका खाया-पिया, मोटी-ताजी हो गई। एक दिन बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि अब मैं अपने घर जाना चाहती हूँ।
बेटी ने कहा कि ठीक है। मैं तुम्हारे जाने का बंदोबस्त कर देती हूँ।
बेटी ने आँगन की बेल से कद्दू निकाला। उसे साफ किया। उसमें ढेर सारी लाल मिर्च का पावडर और ढेर सारा नमक भरा।
फिर अपनी माँ को समझाया कि देखो माँ तुम्हें रास्ते में कोई भी मिले तुम उनसे बातें करना और फिर उनकी आँखों में ये नमक-मिर्च डालकर आगेबढ़ जाना। घबराना नहीं।
बेटी ने भी अपनी माँ को बहुत सारा सामान देकर विदा किया। बुढ़िया वापस अपने गाँव की ओर चल दी। लौटने में फिर उसे जंगल से गुजरना पड़ा। पहले की तरह उसे भालू मिला।
उसने बुढ़िया को देखा तो वह खुश हो गया। उसने देखा तो मन ही मन सोचा अरे ये बुढ़िया तो बड़ी मुटिया गई है।
भालू ने कहा- बुढ़िया अब तो मैं तुम्हें खा सकता हूँ?
बुढ़िया ने कहा- हाँ-हाँ क्यों नहीं खा सकते। आओ मुझे खा लो।
ऐसा कहकर उसने भालू को पास बुलाया। भालू पास आया तो बुढ़िया ने अपनी गाड़ी में से नमक-मिर्च निकाली और उसकी आँखों में डाल दी।
इतना करने के बाद उसने अपने कद्दू से कहा- चल मेरे कद्दू टुनूक-टुनूक। कद्दू अनोखा था, वह उसे लेकर बढ़ चला।
बुढ़िया आगे बढ़ी फिर उसे चीता मिला। बुढ़िया को देखकर चीते की आँखों में चमक आ गई।
चीता बोला- बुढ़िया तू तो बड़ी चंगी लग रही है। अब तो मैं तुम्हें जरूर खा जाऊँगा और मुझे बड़ी जोर की भूख लग रही है।
बुढ़िया ने कहा- हाँ-हाँ चीतेजी आप मुझे खा ही लीजिए। जैसे ही चीता आगे बढ़ा बुढ़िया ने झट से अपनी गाड़ी में से नमक-मिर्च निकाली और चीते की आँखों में डाल दी।
चीता बेचारा अपनी आँखें ही मलता रह गया। बुढ़िया ने कहा- चल मेरे कद्दू टुनूक-टुनूक। आगे उसे शेर मिला।
बुढ़िया और कद्दू ने उसके साथ भी ऐसी ही हरकत की। इस तरह बुढ़िया और उसकी बेटी की चालाकी ने उसे बचा लिया। वह सुरक्षित अपने घर पहुँच गई।
यह बात मन में सोचकर बुढ़िया ने नए-नए कपड़े, मिठाइयाँ और थोड़ा-बहुत सामान लिया। और चल दी अपनी बेटी के गाँव की ओर।
चलते-चलते उसके रास्ते में जंगल आया। उस समय तक रात होने को आई और अँधेरा भी घिरने लगा। तभी उसे सामने से आता हुआ बब्बर शेर दिखाई दिया।
बुढ़िया को देख वह गुर्राया और बोला- बुढ़िया कहाँ जा रही हो? मैं तुम्हें खा जाऊँगा।
बुढ़िया बोली- शेर दादा, शेर दादा तुम मुझे अभी मत खाओ। मैं अपनी बेटी के घर जा रही हूँ। बेटी के घर जाऊँगी, खीर-पूड़ी खाऊँगी। मोटी-ताजी हो जाऊँगी फिर तू मुझे खाना।
शेर ने कहा- ठीक है, वापसी में मिलना।
फिर बुढ़िया आगे चल दी। आगे रास्ते में उसे चीता मिला। चीते ने बुढ़िया को रोका और वह बोला- ओ बुढ़िया कहाँ जा रही हो?
बुढ़िया बड़ी मीठी आवाज में बोली- बेटा, मैं अपनी बेटी के घर जा रही हूँ। चीते ने कहा- अब तो तुम मेरे सामने हो और मैं तुम्हें खाने वाला हूँ।
बुढ़िया गिड़गिड़ाते हुए कहने लगी- तुम अभी मुझे खाओगे तो तुम्हें मजा नहीं आएगा। मैं अपनी बेटी के यहाँ जाऊँगी वहाँ पर खीर-पूड़ी खाऊँगी, मोटी-ताजी हो जाऊँगी, फिर तू मुझे खाना।
चीते ने कहा- ठीक है, जब वापस आओगी तब मैं तुम्हें खाऊँगा।
फिर बुढ़िया आगे बढ़ी। आगे उसे मिला भालू। भालू ने बुढ़िया से वैसे ही कहा जैसे शेर और चीते ने कहा था। बुढ़िया ने उसे भी वैसा ही जवाब देकर टाल दिया।
सबेरा होने तक बुढ़िया अपनी बेटी के घर पहुँच गई। उसने रास्ते की सारी कहानी अपनी बेटी को सुनाई।बेटी ने कहा कि माँ फिक्र मत करो। मैं सब संभाल लूँगी।
बुढ़िया अपनी बेटी के यहाँ बड़े मजे में रही। चकाचका खाया-पिया, मोटी-ताजी हो गई। एक दिन बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि अब मैं अपने घर जाना चाहती हूँ।
बेटी ने कहा कि ठीक है। मैं तुम्हारे जाने का बंदोबस्त कर देती हूँ।
बेटी ने आँगन की बेल से कद्दू निकाला। उसे साफ किया। उसमें ढेर सारी लाल मिर्च का पावडर और ढेर सारा नमक भरा।
फिर अपनी माँ को समझाया कि देखो माँ तुम्हें रास्ते में कोई भी मिले तुम उनसे बातें करना और फिर उनकी आँखों में ये नमक-मिर्च डालकर आगेबढ़ जाना। घबराना नहीं।
बेटी ने भी अपनी माँ को बहुत सारा सामान देकर विदा किया। बुढ़िया वापस अपने गाँव की ओर चल दी। लौटने में फिर उसे जंगल से गुजरना पड़ा। पहले की तरह उसे भालू मिला।
उसने बुढ़िया को देखा तो वह खुश हो गया। उसने देखा तो मन ही मन सोचा अरे ये बुढ़िया तो बड़ी मुटिया गई है।
भालू ने कहा- बुढ़िया अब तो मैं तुम्हें खा सकता हूँ?
बुढ़िया ने कहा- हाँ-हाँ क्यों नहीं खा सकते। आओ मुझे खा लो।
ऐसा कहकर उसने भालू को पास बुलाया। भालू पास आया तो बुढ़िया ने अपनी गाड़ी में से नमक-मिर्च निकाली और उसकी आँखों में डाल दी।
इतना करने के बाद उसने अपने कद्दू से कहा- चल मेरे कद्दू टुनूक-टुनूक। कद्दू अनोखा था, वह उसे लेकर बढ़ चला।
बुढ़िया आगे बढ़ी फिर उसे चीता मिला। बुढ़िया को देखकर चीते की आँखों में चमक आ गई।
चीता बोला- बुढ़िया तू तो बड़ी चंगी लग रही है। अब तो मैं तुम्हें जरूर खा जाऊँगा और मुझे बड़ी जोर की भूख लग रही है।
बुढ़िया ने कहा- हाँ-हाँ चीतेजी आप मुझे खा ही लीजिए। जैसे ही चीता आगे बढ़ा बुढ़िया ने झट से अपनी गाड़ी में से नमक-मिर्च निकाली और चीते की आँखों में डाल दी।
चीता बेचारा अपनी आँखें ही मलता रह गया। बुढ़िया ने कहा- चल मेरे कद्दू टुनूक-टुनूक। आगे उसे शेर मिला।
बुढ़िया और कद्दू ने उसके साथ भी ऐसी ही हरकत की। इस तरह बुढ़िया और उसकी बेटी की चालाकी ने उसे बचा लिया। वह सुरक्षित अपने घर पहुँच गई।