रविवार, 5 सितंबर 2010

भागवत: 64; भक्ति के तीन रूप होते हैं

कपिलजी अपनी मां देवहुति को योग की चर्चा सुना रहे हैं। फिर मां ने उनसे एक प्रश्न पूछा क्या भक्ति के रूप भी होते हैं? तो कपिलजी ने कहा- हां भक्ति के तीन रूप होते हैं। नौ तरह की भक्ति और तीन तरह के रूप । कौन-कौन से रूप होते हैं तो उन्होंने कहा एक तो सतरूप होता है, एक रजरूप होता है और एक तमरूप होता है इसको सतोगुण, तमोगुण और रजोगुण बोलते हैं।

कपिल भगवान मां से कह रहे हैं कि मां आप सतोगुणी भक्ति कर सकती हैं, आप रजोगुणी भक्ति कर सकती हैं और तमोगुणी भक्ति कर सकती हैं। परिणाम भी ऐसे ही मिलेंगे। अब मां ने एक प्रश्न पूछा कि चलो मुझे सब समझ में आ गया लेकिन तू तो ज्ञान का अवतार है तूने मुझे सब समझा दिया पर मैं आज तुझसे एक प्रश्न पूछना चाहती हूं कपिल। गृहस्थी में रहकर भक्ति कैसे की जाए? एक भक्त की गृहस्थी कैसी होना चाहिए।
देखिए एक स्त्री का प्रश्न एक पुरूष से। अभी मां के भीतर की नारी जाग गई। यदि गृहस्थी में कोई उल्टी-सीधी घटना घटे तो गृहस्थ अपनी भक्ति को कैसे बचाए? मां पूछ रही हैं।गृहस्थी में सदैव इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती। कुछ न कुछ उल्टा-सीधा चलता रहता है। उस समय भक्ति कैसे बचाएं कितना मौलिक प्रश्न पूछ रही है देवहुति अपने बेटे से।