रक्षाबंधन को रक्षा पूर्णिमा तथा श्रावणी के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन एक विशिष्ट त्योहार है, जिसकी पृष्ठभूमि पौराणिक काल से संदर्भित है। श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला यह त्योहार न केवल रक्षा बल्कि सूत्रबंधित कर्म के रूप में अनुबंध को दर्शाता है। प्राचीन काल में दो पक्षों के मध्य किसी विशिष्ट उद्देश्य, संकल्प व क्रिया के लिए तथा दोनों पक्षों की सहमति को संपादित करने के लिए यह कर्म प्रचलित था। सूत्रबंधन से अभिप्राय विषय पर आश्रित शर्तो का सविधि पालन करते हुए मूर्तरूप देना व उद्देश्य की पूर्ति करना होता था।
पौराणिक काल में राजा बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार से पाताल लोक को अपने राज्य के रूप में प्राप्त किया था। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर राजा बलि से वर मांगने के लिए कहा, जिस पर राजा बलि ने भगवान से अपने राज्य का रक्षक बनने की स्वीकृति प्राप्त की। बैकुंठ त्यागकर राजा बलि के पाताल लोक में विष्णु जी के नौकरी किए जाने से लक्ष्मीजी बेहद नाराज़ हुईं।
कुछ समय पश्चात लक्ष्मीजी ने राजा बलि के यहां पहुंचकर उनका विश्वास प्राप्त किया। तत्पश्चात राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर लक्ष्मीजी ने बहन का पद प्राप्त किया और राजा बलि से भाई के सम्बंध स्थापित होने पर भगवान विष्णु की सेवानिवृत्ति तथा स्वतंत्रता को वापस ले लिया।
इसी तरह द्वापर युग में द्रोपदी ने भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र से घायल हो जाने के कारण हो रहे रक्तपात को देख अपने वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर रक्तजनित स्थान पर बांधा था। महाभारत में प्रचलित कथा के अनुसार, पांडवों द्वारा द्रोपदी को द्यूत (जुआ) क्रीडा में हार जाने व दुशासन द्वारा घोर अपमानित कर चीरहरण किए जाने पर भगवान कृष्ण ने द्रोपदी की लज्जारक्षा करते हुए वस्त्र संवर्धन कर स्त्री के मान को संरक्षित किया था।
व र्तमान युग में पारिवारिक पृष्ठभूमि पर सम्बंधों का विशेष महत्व है। स्त्री का संरक्षण पुरुष की कर्तव्यशीलता से अनुबंधित है। स्त्री के संरक्षण का मूल उद्देश्य उसके आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को सुरक्षित रखना ही है। श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के नाम से भी प्रचलित है। इस त्योहार में बहनें, भाइयों के दाहिने हाथ पर रक्षासूत्र बांधकर अपनी रक्षा तथा भाई के पौरुष गुणों के वर्धन की कामना करती हैं।
शास्त्र कहता है..
ब्राह्मणों द्वारा किसी शुभ अवसर पर रक्षासूत्र यजमान के कल्याणार्थ बांधने की विधि शास्त्रों में उल्लेखित है। चूंकि श्रावण पूर्णिमा को रक्षा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए सामाजिक परम्पराओं का निर्वाह करते हुए कुल पुरोहित द्वारा यजमान और पारिवारिक सदस्यों को रक्षासूत्र का कलाई पर बांधा जाना, श्रेष्ठ जीवनशैली तथा धर्मनिष्ठा को दर्शाता है।
रक्षाबंधन के पूर्व श्रावणी पूजा करने का भी विशेष महत्व है। श्रावणी पूजा के अंतर्गत श्रवण कुमार को देवता मानकर घर के सभी दरवाज़ों के दोनों ओर शुभचिन्ह (श्री, शुभ-लाभ अथवा स्वास्तिक) अंकित कर पंचोपचार पूजन किया जाना चाहिए। इससे घर में सदा सुख, सौभाग्य और सम्पन्नता बनी रहती है। साथ ही पंचोपचार पूजा के दौरान द्वार पर रक्षासूत्र लगाने का भी उल्लेख है।
श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनों को व्रत रखकर शुभ श्रृंगार से युक्त होकर श्रवण पूजा करने के पश्चात भूमि को शुभ चिन्हित रंगोली आदि से सजाएं। तत्पश्चात काष्ठ (लकड़ी) की चौकी या पटा बिछाएं एवं आग्रहपूर्वक भाई को श्रेष्ठ पुरुष जानकर उस पर बैठाएं। तिलक आदि से सुसज्जित कर उनके सिर पर वस्त्र (रुमाल) आच्छादित करें। तत्पश्चात भाई की दाहिनी कलाई पर रक्षासूत्र (राखी) बांधें तथा उनके कानों पर नौरतें (नौ दिन पहले बोए हुए जौ के अंकुर) रखें।
दरअसल, ऋतुकाल के मुताबिक अंकुरित अन्न रखने के पीछे लम्बी उम्र की कामना और सदा रक्षा करने का मंतव्य होता है। हालांकि आजकल अन्न की जगह रुमाल ने ले ली है, जो मान्य भी है। इसके बाद मिष्ठान आदि से संतुष्ट करते हुए भाई के चरण वंदन किए जाने पर आशीर्वाद प्रदान करें। इस प्रकार शास्त्रोक्त रक्षाबंधन से भाई-बहन के बीच का रिश्ता सदा आत्मीय बना रहता है।
कलाई दाईं या बाईं?
पुरुष के दाहिने हाथ की कलाई पर सूत्र बंधन उत्तम प्रभावों को देने वाला होता है। इसलिए पुरुषों के दाहिने हाथ की कलाई पर रक्षासूत्र का बंधन किया जाता है। शुभ कार्य तथा अनुष्ठान आदि के आरम्भ में पुरुष की दाहिनी कलाई एवं स्त्री की बाईं कलाई पर मौली (कलावा) बांधे जाने का प्रचलन है।
पौराणिक काल में राजा बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार से पाताल लोक को अपने राज्य के रूप में प्राप्त किया था। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर राजा बलि से वर मांगने के लिए कहा, जिस पर राजा बलि ने भगवान से अपने राज्य का रक्षक बनने की स्वीकृति प्राप्त की। बैकुंठ त्यागकर राजा बलि के पाताल लोक में विष्णु जी के नौकरी किए जाने से लक्ष्मीजी बेहद नाराज़ हुईं।
कुछ समय पश्चात लक्ष्मीजी ने राजा बलि के यहां पहुंचकर उनका विश्वास प्राप्त किया। तत्पश्चात राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर लक्ष्मीजी ने बहन का पद प्राप्त किया और राजा बलि से भाई के सम्बंध स्थापित होने पर भगवान विष्णु की सेवानिवृत्ति तथा स्वतंत्रता को वापस ले लिया।
इसी तरह द्वापर युग में द्रोपदी ने भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र से घायल हो जाने के कारण हो रहे रक्तपात को देख अपने वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर रक्तजनित स्थान पर बांधा था। महाभारत में प्रचलित कथा के अनुसार, पांडवों द्वारा द्रोपदी को द्यूत (जुआ) क्रीडा में हार जाने व दुशासन द्वारा घोर अपमानित कर चीरहरण किए जाने पर भगवान कृष्ण ने द्रोपदी की लज्जारक्षा करते हुए वस्त्र संवर्धन कर स्त्री के मान को संरक्षित किया था।
व र्तमान युग में पारिवारिक पृष्ठभूमि पर सम्बंधों का विशेष महत्व है। स्त्री का संरक्षण पुरुष की कर्तव्यशीलता से अनुबंधित है। स्त्री के संरक्षण का मूल उद्देश्य उसके आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को सुरक्षित रखना ही है। श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के नाम से भी प्रचलित है। इस त्योहार में बहनें, भाइयों के दाहिने हाथ पर रक्षासूत्र बांधकर अपनी रक्षा तथा भाई के पौरुष गुणों के वर्धन की कामना करती हैं।
शास्त्र कहता है..
ब्राह्मणों द्वारा किसी शुभ अवसर पर रक्षासूत्र यजमान के कल्याणार्थ बांधने की विधि शास्त्रों में उल्लेखित है। चूंकि श्रावण पूर्णिमा को रक्षा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए सामाजिक परम्पराओं का निर्वाह करते हुए कुल पुरोहित द्वारा यजमान और पारिवारिक सदस्यों को रक्षासूत्र का कलाई पर बांधा जाना, श्रेष्ठ जीवनशैली तथा धर्मनिष्ठा को दर्शाता है।
रक्षाबंधन के पूर्व श्रावणी पूजा करने का भी विशेष महत्व है। श्रावणी पूजा के अंतर्गत श्रवण कुमार को देवता मानकर घर के सभी दरवाज़ों के दोनों ओर शुभचिन्ह (श्री, शुभ-लाभ अथवा स्वास्तिक) अंकित कर पंचोपचार पूजन किया जाना चाहिए। इससे घर में सदा सुख, सौभाग्य और सम्पन्नता बनी रहती है। साथ ही पंचोपचार पूजा के दौरान द्वार पर रक्षासूत्र लगाने का भी उल्लेख है।
श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनों को व्रत रखकर शुभ श्रृंगार से युक्त होकर श्रवण पूजा करने के पश्चात भूमि को शुभ चिन्हित रंगोली आदि से सजाएं। तत्पश्चात काष्ठ (लकड़ी) की चौकी या पटा बिछाएं एवं आग्रहपूर्वक भाई को श्रेष्ठ पुरुष जानकर उस पर बैठाएं। तिलक आदि से सुसज्जित कर उनके सिर पर वस्त्र (रुमाल) आच्छादित करें। तत्पश्चात भाई की दाहिनी कलाई पर रक्षासूत्र (राखी) बांधें तथा उनके कानों पर नौरतें (नौ दिन पहले बोए हुए जौ के अंकुर) रखें।
दरअसल, ऋतुकाल के मुताबिक अंकुरित अन्न रखने के पीछे लम्बी उम्र की कामना और सदा रक्षा करने का मंतव्य होता है। हालांकि आजकल अन्न की जगह रुमाल ने ले ली है, जो मान्य भी है। इसके बाद मिष्ठान आदि से संतुष्ट करते हुए भाई के चरण वंदन किए जाने पर आशीर्वाद प्रदान करें। इस प्रकार शास्त्रोक्त रक्षाबंधन से भाई-बहन के बीच का रिश्ता सदा आत्मीय बना रहता है।
कलाई दाईं या बाईं?
पुरुष के दाहिने हाथ की कलाई पर सूत्र बंधन उत्तम प्रभावों को देने वाला होता है। इसलिए पुरुषों के दाहिने हाथ की कलाई पर रक्षासूत्र का बंधन किया जाता है। शुभ कार्य तथा अनुष्ठान आदि के आरम्भ में पुरुष की दाहिनी कलाई एवं स्त्री की बाईं कलाई पर मौली (कलावा) बांधे जाने का प्रचलन है।