मंगलवार, 14 सितंबर 2010

भागवत: 68 ; जब त्रिदेव बन गए बच्चे

ब्रह्मा, विष्णु व शिव तीनों देव अत्री के आश्रम में आए और तीनों ने विचार किया कि इनकी क्या परीक्षा ली जाए? त्रिदेव वेश बदलकर गए और भिक्षा मांगी। उन्होंने कहा हम आपसे भिक्षा तो लेंगे पर आपको निर्वस्त्र होकर भिक्षा देनी पड़ेगी।
अनुसूइया ने बोला ऐसे तो मेरा पतिव्रत भंग हो जाएगा। ये कैसी मांग कर रहे हैं साधु लोग। उन्होंने कहा ठीक है, मेरे द्वार पर आए हो और आपकी वाणी से ऐसा निकला है तो मैं आपको ऐसे ही भिक्षा दूंगी जैसे आप चाहते हैं। उन्होंने हाथ में जल लिया, संकल्प लिया कि ये तीनों छोटे-छोटे बच्चे बन जाएं, छह-छह महीने के। बस तीनों ब्रह्मा, विष्णु, महेश छोटे-छोटे बच्चे बन गए। उठाकर अंदर ले आई और भिक्षा करा दी।

तीनों भगवान छोटे-छोटे हो गए। पहुंचे ही नहीं वापस, न कैलाश में, न वैकुण्ठ में, न ब्रह्मलोक में। तो माताएं परेशान हो गईं। दौड़ी चली आईं तीनों आश्रम में। यहां आकर देखा तो उनके पति बच्चे बने पड़े हैं। तब नारदजी आए तो तीनों देवियों ने कहा नारदजी,हमारे पति तो बच्चे बन गए।
नारदजी ने बोला ये तो बनने ही थे। पतिव्रता का प्रताप देख लिया आपने। तीनों बोलीं हमने तो देख लिया। अब इनको वापस तो बड़ा कराओ आप। नारदजी ने कहा आप अनुसूइया से ही मांग लीजिए। तीनों देवियों ने कहा क्या बात कर रहे हैं, यदि अनुसूइया को ये बता दिया कि ये त्रिदेव हैं और हम तीनों आईं हैं तो ये तो जीवनभर कभी इनको हमें नहीं देंगी और अपराध भी क्षमा नहीं करेंगी। तब नारद ने कहा इनका नाम अनुसूइया है। ये असूइया वृत्ति से निवृत्त हैं। आप मांगिए तो सही, ये क्षमा कर देंगी।
तीनों माताओं ने अपना परिचय दिया। तब तक तो अत्री आ गए। अत्री ने पूछा, देवी ये तीन संतानें? उन्होंने अत्रीजी से सारी बात कही। अत्री ने कहा अनुसूइयाजी ये तो त्रिदेव हैं, भगवान हैं इनको मुक्त करिए।