पहले हमने दाम्पत्य का पहला सूत्र देखा था संयम। अब हम देखेंगे दाम्पत्य का दूसरा सूत्र संतुष्टि। संतोष दाम्पत्य में बहुत आवश्यक है। देखिए कौशल्या की संतुष्टि के कारण अवध का कुल टूटा नहीं, कुंती की संतुष्टि के कारण पांडव एक बने रहे। अब दाम्पत्य का दूसरा सूत्र संतुष्टि पर विचार करेंगे। फिर आगे आएगा दाम्पत्य का तीसरा सूत्र संतान फिर संवेदनशीलता, फिर संकल्प, फिर सक्षम और अंतिम सूत्र है समर्पण। ध्यान रखिए अब दूसरे विश्राम स्थल यानि कथा आयोजन का जो दूसरा दिन होता है उसमें संतुष्टि के साथ हम प्रवेश करने जा रहे हैं।
तो भगवान कपिल का जन्म अब होने जा रहा है। इसी के साथ तीसरे स्कंध का 23वां अध्याय आरंभ हो रहा है। 22वें अध्याय में कर्दम और देवहुति का विवाह हुआ। कर्दम ऋषि ने कहा देखो देवी मुझसे विवाह तो कर रही हो। मैं तो संत हूं, तपस्वी हूं। संतान पैदा होने के बाद मैं तुम्हें यहीं छोड़कर अकेला जंगल में चला जाऊंगा। देवहुति क्या करतीं, उन्होंने कहा ठीक है। इनके संतानें हुईं, नौ पुत्रियां और उसके बाद भगवान कपिल का जन्म हुआ।
कर्दम जा ही रहे थे, लेकिन देवहुति ने बोला नौ कन्याएं हैं इनकी व्यवस्था तो कर जाओ आप। मैं अकेली कहां तक वर ढूंढ़ती रहूंगी तो कर्दम ने उन कन्याओं का विवाह किया। संतान के रूप में कपिल दिए और चले गए वन को। अब देवहुति अकेली, एक दिन बैठकर विचार कर रही थीं मेरे पति चले गए। मेरे घर कपिल का जन्म हुआ है। उन्होंने कपिल भगवान से कहा -तू गुरु बन जा, तू गुरु की श्रेणी में आ जा, तू ज्ञान का अवतार है। आज तू मुझे जीवन के कुछ प्रश्नों का उत्तर दे।
भक्तियोग का महत्व बताती है भागवत
भगवान मनु की पुत्री देवहुति अपने पुत्र से बात कर रही है। देवहुति ने जो प्रश्न पूछे अपने बेटे से, वो एक मां ने भी पूछे हैं और एक स्त्री ने भी। एक मां अपने बेटे से प्रश्न पूछ रही है और एक स्त्री पुरूष से प्रश्न पूछ रही है कि यह कैसा जीवन है हमारा। जब मैं पुत्री थी तो मेरे माता-पिता के अधीन थी। उन्होंने एक दिन लाकर कर्दम को सौंप दी तो मैं कर्दम की पत्नी बन गई। उसके बाद मेरे पति ने निर्णय लिया और वो चले गए तथा मुझे बेटे को सौंप गए।
कपिलजी ने उत्तर दिए अपनी मां को। मां अब सुनिए मैं आपको उत्तर दे रहा हूं, आध्यात्मिक, व्यावहारिक और सामाजिक पक्ष पर देवहुति अपने पुत्र से सत्संग कर रही है। उन्होंने प्रश्न पूछा कौन सी भक्ति की जाए। मन को कैसे नियंत्रित किया जाए? कपिल मुझे तुम बताओ । वे बता रहे हैं अपनी मां को। मां सुनिए दुनिया में यदि सबसे श्रेष्ठ कोई है तो भक्तियोग है। मां आप ज्यादा झंझट में न पड़ें। आप अपने जीवन में सबसे पहले भक्ति को आरंभ करें और उन्होंने बताया कि नवधा भक्ति को जीवन में उतारें। नौ तरह की भक्ति होती है श्रवण भक्ति, कीर्तन भक्ति, स्मरण भक्ति, पाद सेवन भक्ति , अर्चन, वंदन, सख्य, दास व आत्मनिवेदन। आप इतनी में से कोई एक भक्ति कर लो।
फिर मां ने पूछा कि तू ये सब बता तो रहा है पर मुझे यह समझ में नहीं आता कि भगवान का रूप क्या है? उन्होंने कहा भगवान तो बहुत विराट है मां। पूरी प्रकृति उसकी है। आप क्या सोच रही हैं मां। पृथ्वी से दस गुना जल, जल से दस गुना अग्नि, अग्नि से दस गुना आकाश, आकाश से दस गुना वायु, वायु से भी दस गुना प्राकृत तत्व और उसके बाद महत्व तत्व और वो सब मिलाकर भगवान का एक पैर है। इतना बड़ा भगवान का विराट स्वरुप है तो मां आप इस प्रकृति तत्व की अनुभूति करिए।
भक्ति के लिए मन को बांधना पड़ता है
भगवान का स्वरूप तथा भक्ति के विषय में जब भगवान कपिल ने अपनी माता को बताया तो उन्होंने कहा- यह बात तो ठीक है कि भक्ति करना चाहिए लेकिन जब भक्ति करने बैठूं तो मन नहीं लगता। कपिलजी ने बोला मां बिल्कुल ठीक कह रही हो, बिना मन के नियंत्रण में भक्ति नहीं उतरती। मन को बांधना ही पड़ेगा।
देवहुति ने अगला प्रश्न पूछा कि बेटा तू यह तो बता कि मन कैसे लगेगा ? अब कपिल देव समझा रहे हैं, मां वह भी बताता हूं। आपका मन अष्टांग योग से लगेगा। अब कपिलजी अष्टांग योग की चर्चा कर रहे हैं। भागवत में वे कह रहे हैं आठ प्रकार के योग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि। समाधि अंतिम अवस्था है। ध्यान उसके पहले की अवस्था है। पहले ध्यान रखो आप, फिर उसके बाद ध्यान करो। तो प्राणायाम की पूरी प्रक्रिया कपिलजी ने बतलाई। पूरी क्रिया भागवत में लिखी कि आप प्राणायाम कैसे करें? कपिल देव बताते हैं मां, ऐसे सांस का नियंत्रण करिए और सांस के नियंत्रण करते ही आपकी देह, आपकी आत्मा का ध्यान जाग जाएगा और मन गौण हो जाएगा। यह श्वास का नियंत्रण है। इस प्रकार कपिलजी ने प्रणायाम के तरीके बताए। मां, आप अष्टांग योग करिए। आपको अष्टांग योग से बहुत आनंद प्राप्त होगा। अष्टांग योग का विस्तार से वर्णन करते हुए योग के बारे में लिखा है कि योग करने से तीन बातें होती हैं आत्मा की शुद्धि, तन की शक्ति और मन की प्रसन्नता बढ़ जाती है। उन्होंने कहा आप योग करिए जैसे ही आप योग करेंगे आप स्वत: ही प्रसन्न हो जाएंगे और यदि कुछ न कर पाएं तो एक काम तो कर ही सकते हैं जरा मुस्कुराइए.....
तो भगवान कपिल का जन्म अब होने जा रहा है। इसी के साथ तीसरे स्कंध का 23वां अध्याय आरंभ हो रहा है। 22वें अध्याय में कर्दम और देवहुति का विवाह हुआ। कर्दम ऋषि ने कहा देखो देवी मुझसे विवाह तो कर रही हो। मैं तो संत हूं, तपस्वी हूं। संतान पैदा होने के बाद मैं तुम्हें यहीं छोड़कर अकेला जंगल में चला जाऊंगा। देवहुति क्या करतीं, उन्होंने कहा ठीक है। इनके संतानें हुईं, नौ पुत्रियां और उसके बाद भगवान कपिल का जन्म हुआ।
कर्दम जा ही रहे थे, लेकिन देवहुति ने बोला नौ कन्याएं हैं इनकी व्यवस्था तो कर जाओ आप। मैं अकेली कहां तक वर ढूंढ़ती रहूंगी तो कर्दम ने उन कन्याओं का विवाह किया। संतान के रूप में कपिल दिए और चले गए वन को। अब देवहुति अकेली, एक दिन बैठकर विचार कर रही थीं मेरे पति चले गए। मेरे घर कपिल का जन्म हुआ है। उन्होंने कपिल भगवान से कहा -तू गुरु बन जा, तू गुरु की श्रेणी में आ जा, तू ज्ञान का अवतार है। आज तू मुझे जीवन के कुछ प्रश्नों का उत्तर दे।
भक्तियोग का महत्व बताती है भागवत
भगवान मनु की पुत्री देवहुति अपने पुत्र से बात कर रही है। देवहुति ने जो प्रश्न पूछे अपने बेटे से, वो एक मां ने भी पूछे हैं और एक स्त्री ने भी। एक मां अपने बेटे से प्रश्न पूछ रही है और एक स्त्री पुरूष से प्रश्न पूछ रही है कि यह कैसा जीवन है हमारा। जब मैं पुत्री थी तो मेरे माता-पिता के अधीन थी। उन्होंने एक दिन लाकर कर्दम को सौंप दी तो मैं कर्दम की पत्नी बन गई। उसके बाद मेरे पति ने निर्णय लिया और वो चले गए तथा मुझे बेटे को सौंप गए।
कपिलजी ने उत्तर दिए अपनी मां को। मां अब सुनिए मैं आपको उत्तर दे रहा हूं, आध्यात्मिक, व्यावहारिक और सामाजिक पक्ष पर देवहुति अपने पुत्र से सत्संग कर रही है। उन्होंने प्रश्न पूछा कौन सी भक्ति की जाए। मन को कैसे नियंत्रित किया जाए? कपिल मुझे तुम बताओ । वे बता रहे हैं अपनी मां को। मां सुनिए दुनिया में यदि सबसे श्रेष्ठ कोई है तो भक्तियोग है। मां आप ज्यादा झंझट में न पड़ें। आप अपने जीवन में सबसे पहले भक्ति को आरंभ करें और उन्होंने बताया कि नवधा भक्ति को जीवन में उतारें। नौ तरह की भक्ति होती है श्रवण भक्ति, कीर्तन भक्ति, स्मरण भक्ति, पाद सेवन भक्ति , अर्चन, वंदन, सख्य, दास व आत्मनिवेदन। आप इतनी में से कोई एक भक्ति कर लो।
फिर मां ने पूछा कि तू ये सब बता तो रहा है पर मुझे यह समझ में नहीं आता कि भगवान का रूप क्या है? उन्होंने कहा भगवान तो बहुत विराट है मां। पूरी प्रकृति उसकी है। आप क्या सोच रही हैं मां। पृथ्वी से दस गुना जल, जल से दस गुना अग्नि, अग्नि से दस गुना आकाश, आकाश से दस गुना वायु, वायु से भी दस गुना प्राकृत तत्व और उसके बाद महत्व तत्व और वो सब मिलाकर भगवान का एक पैर है। इतना बड़ा भगवान का विराट स्वरुप है तो मां आप इस प्रकृति तत्व की अनुभूति करिए।
भक्ति के लिए मन को बांधना पड़ता है
भगवान का स्वरूप तथा भक्ति के विषय में जब भगवान कपिल ने अपनी माता को बताया तो उन्होंने कहा- यह बात तो ठीक है कि भक्ति करना चाहिए लेकिन जब भक्ति करने बैठूं तो मन नहीं लगता। कपिलजी ने बोला मां बिल्कुल ठीक कह रही हो, बिना मन के नियंत्रण में भक्ति नहीं उतरती। मन को बांधना ही पड़ेगा।
देवहुति ने अगला प्रश्न पूछा कि बेटा तू यह तो बता कि मन कैसे लगेगा ? अब कपिल देव समझा रहे हैं, मां वह भी बताता हूं। आपका मन अष्टांग योग से लगेगा। अब कपिलजी अष्टांग योग की चर्चा कर रहे हैं। भागवत में वे कह रहे हैं आठ प्रकार के योग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि। समाधि अंतिम अवस्था है। ध्यान उसके पहले की अवस्था है। पहले ध्यान रखो आप, फिर उसके बाद ध्यान करो। तो प्राणायाम की पूरी प्रक्रिया कपिलजी ने बतलाई। पूरी क्रिया भागवत में लिखी कि आप प्राणायाम कैसे करें? कपिल देव बताते हैं मां, ऐसे सांस का नियंत्रण करिए और सांस के नियंत्रण करते ही आपकी देह, आपकी आत्मा का ध्यान जाग जाएगा और मन गौण हो जाएगा। यह श्वास का नियंत्रण है। इस प्रकार कपिलजी ने प्रणायाम के तरीके बताए। मां, आप अष्टांग योग करिए। आपको अष्टांग योग से बहुत आनंद प्राप्त होगा। अष्टांग योग का विस्तार से वर्णन करते हुए योग के बारे में लिखा है कि योग करने से तीन बातें होती हैं आत्मा की शुद्धि, तन की शक्ति और मन की प्रसन्नता बढ़ जाती है। उन्होंने कहा आप योग करिए जैसे ही आप योग करेंगे आप स्वत: ही प्रसन्न हो जाएंगे और यदि कुछ न कर पाएं तो एक काम तो कर ही सकते हैं जरा मुस्कुराइए.....