शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

जंगल जंगल बात चली है

जंगल और जंगली जीवन को देखने को हम सब का मन तो मचलता है, लेकिन ऐसा मौका निकालना आसान नहीं होता। कभी जंगल में घूमने का मौसम नहीं तो कभी समय का अभाव। अगर आप भी बाघों और अपनी दुनिया में मस्ती करते अन्य जंगली जीव-जंतुओं को देखना चाहते हैं तो मौसम आने ही वाला है। दिल्ली के आसपास अनेक वन अभयारण्य हैं, जहां आप अपने वीकएंड में भी जा सकते हैं। घूमने के इस खास मौके के बारे में बता रहे हैं नलिन चौहान।

घाना राष्ट्रीय उद्यान

केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान में प्रकृति और मानव इतिहास का नाता करीब 250 बरस पुराना है। सन्1745 में गंभीर और बाणगंगा नदी के मिलन स्थान पर बनी छिछली जगह में भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने बारिश के मौसम में बरसने वाले पानी पर अजान बांध बनवाया और प्रातिक गहराई में पानी भरने से यह स्थान विकसित हुआ। यहां पर बाढ़ के कारण छिछला आर्द्र पारिस्थितिकीय तंत्र बना, जो विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के लिए एक बेहतर निवास स्थान बन गया। नमभूमि वाला यह क्षेत्र रामसर स्थली भी है और इसे प्रातिक विश्व धरोहर भी घोषित किया गया है।

भरतपुर शहर से दो किलोमीटर दूर घाना पक्षी अभयारण्य पहले भरतपुर राजपरिवार की शिकारगाह था। इस स्थान को सन् 1956 में पक्षी अभयारण्य और सन् 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया, जबकि 1985 में इसे विश्व विरासत का दर्जा मिला।

यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान पक्षी संसार का स्वर्ग है तो पक्षी प्रेमियों का तीर्थ। यह राष्ट्रीय उद्यान सुंदर पक्षियों की 375 से अधिक प्रजातियों का बसेरा है। इनमें से 132 से अधिक यहीं पर अपने परिवार को बढ़ाते हैं। यहां न केवल देश से, बल्कि यूरोप, साइबेरिया, चीन और तिब्बत से भी पक्षी आते हैं। मानसून में यहां साइबेरियाई बार हेडेडगूंज, कोमन क्रेन, चीन का चायनाकूट, साइबेरियाई पिंकटेल, मंगोलियाई सोबलर, पेलिकन, श्रीलंकाई ब्लेकनेक स्टॉर्क सहित सांभर, हिरण और नीलगाय को भी देखा जा सकता है।

सिर्फ 29 वर्ग किलोमीटर में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान पूरे साल सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक खुला रहता है। विदेशी पर्यटकों के लिए 200 रुपए और भारतीयों के लिए 25 रुपए प्रति व्यक्ति का टिकट है। यहां उद्यान में वाहन से शांतिकुटीर तक जाने की व्यवस्था है, जो गेट से 17 किलोमीटर है। इसके लिए 50 रुपए प्रति वाहन शुल्क अलग से लगता है। इसके साथ ही वन विभाग की ओर से बिजली चालित वैन की सुविधा भी उपलब्ध है। वैसे, यहां पर पैदल घूमना ही सबसे बेहतर है। वैसे किराए पर साइकिल और साइकिल रिक्शा भी उपलब्ध है।

आसपास
भरतपुर जिले में डीग जाट नरेशों के भव्य महलों के लिए विख्यात है। भरतपुर शासक सूरजमल जाट ने 18वीं शताब्दी में यहां सुंदर राजप्रसाद बनवाए। डीग कस्बे के चारों ओर मिट्टी का बना किला है, जिसे गोपालगढ़ कहते हैं।

बयाना

भरतपुर जिले में स्थित बयाना का उल्लेख 13वीं-14वीं शताब्दी के इब्रेबतूता, जियाउद्यीन बरनी जैसे लेखकों ने भी किया है। आगरा के निकट होने के कारण बयाना का सामरिक महत्त्व था। मध्यकाल में बयाना नील की खेती के लिए प्रसिद्व था। बयाना में बड़ी संख्या में गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएं मिली हैं, जो तत्कालीन इतिहास पर प्रकाश डालती है। राणा सांगा एवं बाबर के मध्य खानवा में लड़ाई हुई थी, जो बयाना के निकट है।

भरतपुर

राजस्थान का पूर्वी प्रवेश द्वार भरतपुर की स्थापना 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जाट शासक बदनसिंह ने की थी। उसके उत्तराधिकारी सूरजमल ने भरतपुर राज्य का विस्तार किया और इसे शानदार महलों से अलंकृत किया। मिट्टी की मोटी दोहरी प्राचीरों से घिरा भरतपुर का किला अपनी अभेद्यता के कारण लोहागढ़ के नाम से विख्यात है। भरतपुर सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वी राजस्थान का एक समृद्ध नगर है। यहां के दर्शनीय स्थलों में गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर और जामा मस्जिद है।

कैसे पहुंचें

दिल्ली से 176 किलोमीटर की दूरी पर स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा आगरा है। आगरा से भरतपुर की दूरी 56 किलोमीटर है। रेल मार्ग से आप भरतपुर रेलवे स्टेशन तक पहुंच सकते हैं, जहां से पार्क की दूरी सिर्फ 6 किलोमीटर है। पार्क तक पहुंचने के लिए बस से लेकर छोटी गाड़ियों तक की व्यवस्था होती है।

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान

पूर्वी राजस्थान में सवाई माधोपुर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर अरावली और विंध्य पर्वतमालाओं के मध्य रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। रणथम्भौर अभयारण्य का नाम मूल रूप से रणथम्भौर दुर्ग के नाम पर है। पहले यह वनक्षेत्र जयपुर रियासत की शिकारगाह रहा है। यह सिलसिला आजादी के बाद भी जारी रहा, लेकिन 7 नवंबर, 1955 को यह जंगल राजस्थान सरकार के अधीन आने के बाद सवाई माधोपुर वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया गया और 1972 तक रहा। वर्ष 1973 में इसे टाइगर प्रोजेक्ट का दर्जा दिया गया। आज यहां 39 बाघ हैं। पर्यटक यहां खासकर बाघ के आकर्षण में खिंचे आते हैं, पर यहां विविध पक्षियों सहित लंगूर, तेंदुए, कैरकल, बिज्जू, सियार, जंगली बिल्ली, मगरमच्छ, जंगली सूअर, भालू जैसी विभिन्न प्रजातियां भी देखने को मिलती हैं।

रणथम्भौर अभयारण्य में कुल 257 प्राकृतिक और मानव निर्मित जलस्त्रोत है। पद्म तालाब और राजबाग ङील के जल पर इस अभयारण्य के वन्य जीवों का जीवन टिका हुआ है। रणथम्भौर बाघ अभयारण्य दो जिलों, सवाई माधोपुर जिले में 773 वर्ग किलोमीटर और करौली में 621 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

राजस्थान सरकार रणथम्भौर अभयारण्य के माध्यम से दूसरे बाघविहीन हुए अभयारण्यों को दोबारा बाघों से आबाद करने के लिए केंद्र सरकार की मदद से काम कर रही है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण सृजित करने के लिए रणथम्भौर को 93 लाख रुपए दिए हैं। रणथम्भौर का किला हम्मीर चौहान की वीरता का साक्षी रहा है। रणथम्भौर में सन् 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान राजपूत स्त्रियों द्वारा किया गया जौहर राजस्थान के पहले साके के रूप में विख्यात है। दुर्ग में त्रिनेत्र गणेशजी का मंदिर स्थित है। रणथम्भौर दुर्ग की प्रमुख विशेषता है कि इस किले में बैठ कर दूर-दूर तक देखा जा सकता है, परंतु शत्रु किले को निकट आने पर ही देख सकता है।

कैसे पहुंचे

रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क सवाई माधोपुर से 14 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां वायुमार्ग से पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर है, जो 132 किलोमीटर दूर है। सवाई माधोपुर दिल्ली-मुंबई के मुख्य रेल मार्ग पर पड़ता है, जबकि सड़क से जयपुर के रास्ते भी आया जा सकता है। सड़क मार्ग से जयपुर से सवाई माधोपुर में 162 किलोमीटर की दूरी है।

ऑनलाइन बुकिंग

राजस्थान टूरिज्म की वेबसाइट www.rajasthanwildlife.com पर लॉग ऑन करें। यहां आप पसंदीदा अभयारण्य का चयन कर अपनी बुकिंग करा सकते हैं।

सरिस्का अभयारण्य

राजस्थान की अरावली पर्वतमाला की संकरी घाटी और पहाड़ों से बना हुआ है सरिस्का अभयारण्य। दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं के उत्तर-पूर्वी भाग में 866 वर्ग किलोमीटर में स्थित है यह, जिसमें से करीब 500 किमी का मुख्य क्षेत्र है। इसमें बाघों को नए सिरे से आबाद करने की पहल की गई है। अलवर जिले में स्थित सरिस्का अपने प्राकृतिक परिवेश, विस्तृत क्षेत्रफल और घने जंगल के कारण बाघों के लिए अनुकूल स्थान है। सरिस्का क्षेत्र को सन् 1955 में अभयारण्य घोषित किया गया था, जबकि यह सन् 1979 में राष्ट्रीय उद्यान बना।

विश्व के गिने चुने पार्कों में से एक सरिस्का में राजस्थान सरकार ने 60 वर्ग किमी क्षेत्र को बाघों के लिए मानवरहित करवाया है। सरिस्का में पर्यटक सुबह-शाम पानी के अनेक स्रोतों पर वन्य जीवों को अपनी प्यास बुझाते हुए देख सकते हैं। यहां बाघ और तेंदुए समेत अनेक मांसाहारी जंतु हैं, जिनमें जंगली कुत्ते, बिज्जू, सियार आदि भी शामिल हैं। यहां मोर, तीतर, वुड पैकर, बाज और उल्लुओं की घनी बसावट है। सांभर, नीलगाय, चिंकारा, चार सींग वाला मृग, सुअर, खरगोश और पक्षी प्रजातियों और सरीसृप के बहुत सारे जीव भी देखने को मिलते हैं। उद्यान वर्ष भर खुला रहता है, परंतु वन्य जीवों को देखने का अनुकूल समय अक्तूबर से अप्रैल के बीच होता है।

आसपास

अलवर में सरिस्का महल, बाबा किला, सिटी पैलेस, रानी मूसि छतरी संग्रहालय, विजय मंदिर पैलेस भी दर्शनीय स्थल हैं, जबकि अलवर के पास सिलीसेढ़ झील, तलवकाश, भर्तृहरि मंदिर, पंदुपोल, भानगढ़ और नीमराना भी घूमा जा सकता है। राजस्थान के मेले यहां की संस्कृति के परिचायक हैं। यहां मेलों का आयोजन धर्म, लोकदेवता, लोकसंत और लोकसंस्कृति से जुड़ा हुआ है। प्रदेश के धर्मप्रधान मेलों में हिण्डोन के पास महावीरजी का और अलवर के पास भर्तहरि जी का मेला प्रमुख है। इन मेलों में लोग भक्तिभावना से स्नान एवं अराधना करते हैं।

कैसे पहुंचें

दिल्ली से 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरिस्का का नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर है। जयपुर हवाई अड्डा से सरिस्का की दूरी 110 किलोमीटर है। यहां के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन अलवर है, जो सिर्फ 36 किलोमीटर दूर है। अलवर से सरिस्का के लिए बसें भी हैं और छोटी गाड़ियां भी बड़ी आसानी से मिल जाती हैं।