मंगलवार, 7 सितंबर 2010

भागवत: ६५; गृहस्थी के केंद्र में परमात्मा को रखें

देवहुति अपने बेटे कपिल से प्रश्न कर रही है- बेटे तू ये बता गृहस्थी कैसे चलाएं। गृहस्थी को कैसे बचाएं, गृहस्थी को कैसे हम केंद्र में रखकर भगवान की स्तुति कैसे करें? गृहस्थी के बारे में उन्होंने मां को बड़े विस्तार से वर्णन किया और मां से कहा- मां गृहस्थी बचाने के बहुत सारे सूत्र हैं पर चलो मैं आपको एक सूत्र बता देता हूं और बड़ी सुंदर बात बता रहे हैं भगवान कपिल । यह बात हमारे भी बड़े काम की है। बात वहीं से शुरू हुई जहां से भागवत लिखी गई थी।

महाभारत लिखने के बाद वेदव्यास दु:खी थे तो नारदजी ने उनसे कहा था केंद्र में परमात्मा को रखें और फिर कोई ग्रंथ लिखें। तो व्यासजी ने लिखी भागवत, जिसके केन्द्र में भगवान हैं। कपिल देव अपनी मां से कह रहे हैं मां, अपनी गृहस्थी के केंद्र में कौन है? यह बात गृहस्थी की शांति और अशांति को तय करेगी। यदि बहुत अधिक संसार है तो बहुत परेशानी है। परमात्मा को गृहस्थी के केंद्र में रखिएगा। यदि परमात्मा नहीं है केंद्र में संसार ही संसार है तो मां इस दु:ख का कोई अंत नहीं है।
जिन लोगों की गृहस्थी के केंद्र में परमात्मा नहीं होता उनकी गृहस्थी कैसी होती है? कपिल देव अपनी मां को बोल रहे हैं कि कितना ही बड़ा दु:ख हो जाए दाम्पत्य परमात्मा का प्रसाद है। कपिल देव ने अपनी से मां से कहा मां गृहस्थी को उदासी से मत लो। ये परमात्मा का प्रसाद है ये आपके जीवन में उतरा है।तो आज एक बेटे ने अपनी मां को ज्ञान दिया है। तीसरे स्कंध का यहां समापन कर रहे हैं ग्रंथकार।