बुधवार, 8 सितंबर 2010

भागवत: ६६; जीवन में धर्म का महत्व

अब आगे चतुर्थ स्कंध आएगा जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों का वर्णन करता है। जीवन में धर्म का क्या महत्व है, यह चतुर्थ स्कंध बताएगा। धर्म शुद्धि से प्राप्त होता है। धर्म प्राप्ति के लिए शुद्धि चाहिए। देश की शुद्धि, काल की शुद्धि, मन की शुद्धि, देह की शुद्धि, विचार की शुद्धि, इंद्रियों की शुद्धि और द्रव्य की शुद्धि। सात तरह की शुद्धि हो तब जीवन में धर्म का अवतरण होता है।

तो पहला बताया धर्म। फिर बताया अर्थ। अब भागवत बता रही है अर्थ की प्राप्ति पांच प्रकार से होती है। पहली होती है माता-पिता के आशीर्वाद से, दूसरी गुरु की कृपा से, तीसरी अपने उद्यम से, चौथी अपने प्रारब्ध से और पांचवीं होती है प्रभु कृपा से। काम का अर्थ है पुरूषार्थ। मोक्ष की कैसे प्राप्ति है इसकी चर्चा अब ग्रंथकार करने जा रहे हैं। यहां से ग्रंथकार हमको एक घटना पढ़ाने जा रहे हैं।अब ग्रंथकार चौथे स्कंध के आरंभ में अत्री और अनुसूइया की चर्चा कर रहे हैं। अनुसूइया कपिल की बहिन और कर्दम-देवहुति की बेटी थीं। अनुसूइया के पति का नाम था अत्री।
अत्री और अनुसूइया का दाम्पत्य बड़ा दिव्य था। अत्री का अर्थ होता है अ, त्री जिसमें तीन न हो, त्री का भाव न हो। तीन कौन से? सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण इन तीनों का अभाव होने पर आदमी अत्री बन जाता है। उनकी पत्नी थीं अनुसूइया। अनुसूइया का अर्थ है जिसमें असूइया प्रवृत्ति का अभाव हो। असूइया को ईष्या कहते हैं। तो पत्नी में ईष्र्या का अभाव तथा पति निर्गुणी थे इसलिए उनका दाम्पत्य इतना दिव्य था। नारदजी इनके दाम्पत्य को देखकर बड़े प्रसन्न होते थे। कितना दिव्य दाम्पत्य है इनका।