बुधवार, 29 सितंबर 2010

भागवत: ८०: सफलता परिश्रम से ही मिलती है


अब हम धर्म व अर्थ के बाद काम में प्रवेश कर रहे हैं यानि पुरुषार्थ में प्रवेश कर रहे हैं। ग्रंथ में आगे ध्रुव की संतानों का वर्णन किया गया है। ध्रुव का पहला बेटा था उत्कल, दूसरा बेटा था वत्सल। उसके बाद वेन पैदा हुआ और वेन के बाद उसके यहां पृथु नाम का राजा पैदा हुआ। ये संक्षेप में वंशावली है। पृथु अवतार हैं। पृथु ध्रुव के वंश में पैदा हुए, चार-पांच पीढ़ी बाद। पृथु का पृथ्वी से बड़ा संबंध रहा। आपने कथा सुनी होगी कि जब पृथु राजा बने तो उनके राज में अकाल पड़ा। पृथ्वी ने धन-धान्य, संपत्ति और औषधि देने से मना कर दिया तो त्राही-त्राही मच गई। जनता अपने राजा के पास पहुंची कि पृथ्वी हमें धन-धान्य आदि कुछ दे नहीं रही है आप कुछ करिए।
पृथु को बड़ा क्रोध आया कि पृथ्वी अपनी संपदा क्यों नहीं दे रही? राजा तीर कमान लेकर पृथ्वी के पीछे दौड़े, पृथ्वी गाय बनकर भागी। पृथ्वी भागते-भागते थक गई तो वापस पृथु की शरण में आई और कहा आप मुझे क्षमा कर दीजिए। आप मुझे क्यों मारना चाहते हैं, पृथु ने कहा तुमने सारी संपत्ति, सारी प्रकृति, सारी औषधियां, सारी वस्तुएं अपने गर्भ में छुपा रखी है। प्रजा को कुछ भी नहीं दे रही इसलिए मैं तेरा वध करूंगा। पृथ्वी ने कहा मैं देने को तैयार हूं। आप ले लीजिए लेकिन दुहना पड़ेगा मुझे।
पृथ्वी कहती है मुझे दुहे बिना, उद्यम किए बिना, मेरा मंथन किए बिना कुछ प्राप्त नहीं कर पाओगे।कहते हैं पृथु राजा ने पृथ्वी का दोहन किया और ये सारी संपत्ति फिर निकलकर आई। जब ये सब हो गया तो एक दिन पृथ्वी ने पृथु से पूछा राजा आप मेरे पीछे धनुष लेकर दौड़े मुझे मारने के लिए, मैं एक प्रश्न आपसे पुछूं। पृथ्वी ने जो प्रश्न पृथु से पूछा वो आज भी हमसे पूछा जा रहा है। पृथ्वी पृथु से पूछ रही है ''आपने मुझे मारने की तैयारी कर ली, मुझ पर आरोप लगाया कि मैंने गर्भ में सब वस्तु छिपा ली, कभी पूछा मैं ऐसा क्यों कर रही हूं? आप तो राजा हैं आप तो प्रजा का हाल जानते हैं मैं आपकी प्रजा हूं और प्रजा संतान समान होती है।

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