शनिवार, 25 सितंबर 2010

पितृभक्ति देख निर्दयी जेलर पिघला


हारूं रशीद बगदाद का बहुत नामचीन बादशाह था। एक बार किसी कारण से वह अपने वजीर पर नाराज हो गया। उसने वजीर और उसके लड़के फजल को जेल में डलवा दिया।
वजीर को ऐसी बीमारी थी कि ठंडा पानी उसे हानि पहुंचाता था। उसे सुबह हाथ-मुंह धोने को गर्म पानी आवश्यक था। किंतु जेल में गर्म पानी कौन लाए? वहां तो कैदियों को ठंडा पानी ही दिया जाता था।
फजल रोज शाम लौटे में पानी भरकर लालटेन के ऊपर रख दिया करता था। रातभर लालटेन की गर्मी से पानी गर्म हो जाता था। उसी से उसके पिता सुबह हाथ-मुंह धोते थे। उस जेल का जेलर बड़ा निर्दयी था। जब उसे ज्ञात हुआ कि फजल अपने पिता के लिए लालटेन पर पानी गर्म करता है, तो उसने लालटेन वहां से हटवा दी।
फजल के पिता को ठंडा पानी मिलने लगा। इससे उनकी बीमारी बढऩे लगी। फजल से पिता का कष्ट नहीं देखा गया। उसने एक उपाय किया। शाम को वह लौटे में पानी भरकर अपने पेट से लोटा लगा लेता था। रात भर उसके शरीर की गर्मी से लौटे का पानी थोड़ा बहुत गर्म हो जाता था। उसी पानी से वह सुबह अपने पिता का हाथ-मुंह धुलाता था। किंतु रातभर पानी भरा लोटा पेट पर लगाए रहने के कारण फजल सो नहीं सकता था। क्योंकि नींद आने पर लोटा गिर जाने का भय था। कई राते उसने बिना सोये ही गुजार दी। इससे वह अति दुर्बल हो गया। किंतु पितृभक्त फजल ने उफ तक नहीं की।
जब जेलर को फजल की इस पितृभक्ति का पता चला तो उसका निर्दयी हृदय भी दया से पिघल गया और उसने फजल के पिता के गर्म पानी का प्रबंध करा दिया। पिता के लिए फजल की यह त्याग भावना सिखाती है कि अपने जनक के प्रति हमारे मन में वैसा ही समर्पण होना चाहिए। जैसा उनका हमारे लिए होता है। पितृ ऋण चुकाने का यही सही तरीका है।

आवाज ने खोला भेद
किसी नगर में एक धोबी रहता था। अच्छा चारा न मिलने के कारण उसका गधा बहुत कमजोर हो गया था। एक दिन धोबी को जंगल में बाघ की एक खाल मिल गई। उसने सोचा कि रात में इस खाल को ओढ़ाकर मैं गधे को खेतों में छोड़ दिया करुँगा।
गाँववाले इसे बाघ समझेंगे और डर से इसके पास नहीं आएँगे। खेतों में चरकर यह खूब मोटा-ताजा हो जाएगा। एक रात गधा बाघ की खाल ओढ़े खेत में चर रहा था। तभी उसने दूर से किसी गधी का रेंकना सुना। उसकी आवाज सुनकर गधा प्रसन्न हो उठा और मौज में आकर स्वयं भी रेंकने लगा।
गधे की आवाज सुनते ही खेतों के रखवालों ने उसे घर लिया और पीट-पीटकर जान से मार डाला। इसलिए कहते हैं अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए। कभी-कभी यह खतरनाक भी साबित होता है।

चंचलता से बुद्धि का नाश
किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। तालाब के किनारे रहने वाले संकट और विकट नामक हंस से उसकी गहरी दोस्ती थी। तालाब के किनारे तीनों हर रोज खूब बातें करते और शाम होने पर अपने-अपने घरों को चल देते। एक वर्ष उस प्रदेश में जरा भी बारिश नहीं हुई। धीरे-धीरे वह तालाब भी सूखने लगा।
अब हंसों को कछुए की चिंता होने लगी। जब उन्होंने अपनी चिंता कछुए से कही तो कछुए ने उन्हें चिंता न करने को कहा। उसने हंसों को एक युक्ति बताई। उसने उनसे कहा कि सबसे पहले किसी पानी से लबालब तालाब की खोज करें फिर एक लकड़ी के टुकड़े से लटकाकर उसे उस तालाब में ले चलें।
उसकी बात सुनकर हंसों ने कहा कि वह तो ठीक है पर उड़ान के दौरान उसे अपना मुंह बंद रखना होगा। कछुए ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह किसी भी हालत में अपना मुंह नहीं खोलेगा।कछुए ने लकड़ी के टुकड़े को अपने दांत से पकड़ा फिर दोनो हंस उसे लेकर उड़ चले। रास्ते में नगर के लोगों ने जब देखा कि एक कछुआ आकाश में उड़ा जा रहा है तो वे आश्चर्य से चिल्लाने लगे।
लोगों को अपनी तरफ चिल्लाते हुए देखकर कछुए से रहा नहीं गया। वह अपना वादा भूल गया। उसने जैसे ही कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला कि आकाश से गिर पड़ा। ऊंचाई बहुत ज्यादा होने के कारण वह चोट झेल नहीं पाया और अपना दम तोड़ दिया। इसीलिए कहते हैं कि बुद्धिमान भी अगर अपनी चंचलता पर काबू नहीं रख पाता है तो परिणाम काफी बुरा होता है।

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