बहुत पुराने जमाने की बात है। कहीं शहीदुल्ला नाम का एक आदमी रहता था। एकदम आलसी और कामचोर। शहीदुल्ला की बीवी जब कामचोरी के लिए उसे डाँटती फटकारती तो वह कहता - तुम कोई फिक्र, कोई गम न करो। बेशक हम आज गरीब हैं, मगर जल्दी ही अमीर हो जाएँगे।' उसकी बीवी हैरान होकर पूछती, 'जब तक तुम कुछ नहीं करोगे और इस तरह निठल्ले बैठे दिन गुजारते रहोगे, यह कैसे होगा? मगर शहीदुल्ला अपनी बात दोहरा देता।
बीवी-बच्चे इंतजार करते रहते मगर कोई बदलाव नहीं आया और वे गरीब ही बने रहे। चुनांचे एक मर्तबा बीवी की बातों से तंग आकर शहीदुल्ला ने किसी अक्लमंद आदमी के पास जाकर यह पूछने का फैसला किया कि मैं गरीबी से कैसे अपना पीछा छुड़ा सकता हूँ।
उसने सफर की तैयारी की और रवाना हो गया। शहीदुल्ला तीन दिन और रातों तक चलता रहा। रास्ते में उसे एक भेड़िया मिला, जो मरियल था और हड्डियाँ बाहर आ रही थी। कहाँ जा रहे हो भले मानस?' भेड़िये ने पूछा। 'किसी अक्लमंद आदमी के पास यह जानने के लिए जा रहा हूँ कि मैं अमीर कैसै बन सकता हूँ।'
शहीदुल्ला ने जवाब दिया। 'तुम जा तो रहे ही हो, मेहरबानी कर उस अक्लमंद आदमी से यह भी पूछ लेना कि मेरे पेट में पिछले तीन सालों से दर्द है। मैं क्या करूँ 'मैं पूछ लूँगा।' कहकर शहीदुल्ला फिर से तीन दिन और तीन रातों तक चलता रहा। आखिर उसे सड़क के किनारे एक सेब का पेड़ नजर आया। 'कहाँ जा रहे हो, भले मानस?' सेब के पेड़ ने पूछा।
शहीदुल्ला के बताने पर सेब के पेड़ ने कहा, 'जरा हो सके तो उस अक्लमंद आदमी से यह भी पूछ लेना कि मैं क्या करूँ, हर बसंत में मुझ पर फूल आते हैं मगर फौरन ही मुरझाकर गिर जाते हैं और मुझ पर कभी फल नहीं लगते। 'मैं पूछ लूँगा' कहते हुए शहीदुल्ला आगे बढ़ गया। वह एक गहरी झील के तट पर पहुँचा। अचानक पानी से एक बड़ी सी मछली बाहर निकलकर बोली - तुम किस ओर जा रहे हो राही?' शहीदुल्ला के बताने पर मछली ने कहा - मेहरबानी होगी अगर तुम मेरे लिए पूछ लो कि पिछले सात साल से मेरे गले में सख्त दर्द रहता है। वह कैसे दूर होगा?'
'मैं पूछ लूँगा।' कहकर शहीदुल्ला आगे तीन दिन और तीन रातों तक चलता रहा। एक जगह उसे लंबी सफेद दाढ़ी वाला बुजुर्ग बैठा दिखाई दिया। शहीदुल्ला को देखने ही उसने पूछा - 'तुम क्या चाहते हो शहीदुल्ला? शहीदुल्ला हक्का-बक्का रह गया।
'आप मेरा नाम कैसे जानते हैं? शायद आप ही वह अक्लमंद आदमी हैं, मैं जिनकी तलाश में आया हूँ।'
'हाँ, मैं ही हूँ वह आदमी। जल्दी से बताओ तुम मुझसे क्या चाहते हो?' शहीदुल्ला ने सब कुछ बता दिया तब अक्लमंद आदमी ने कहा - 'मछली के गले में एक बड़ा हीरा फँस गया है। हीरा निकाल देने से मछली का दर्द दूर हो जाएगा। सेब के पेड़ के नीचे चाँदी से भरा एक बर्तन दबा है। इस बर्तन को जैसे ही वहाँ से निकाल दिया जाएगा पेड़ पर फल लगना शुरू हो जाएँगे। जहाँ तक भेड़िए का प्रश्न है, तो उसे उस कामचोर को हड़प जाना चाहिए जो सबसे पहले उसके सामने आए। तभी उसके पेट का दर्द दूर होगा।'
'और मेरी प्रार्थना?' शहीदुल्ला ने पूछा। 'सो तो स्वीकार की जा चुकी है। अब जाओ' बुजुर्ग ने जवाब दिया। शहीदुल्ला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने कुछ और नहीं पूछा। चलाचल, चलाचल वह उस नदी के किनारे पहुँचा जहाँ वह मछली बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी, शहीदुल्ला ने उसका इलाज बताया, तो मछली ने विनती की कि मेरे गले में फँसा हीरा निकाल दो। ओह मुझे क्या लेना-देना है, इस पचड़े में पड़कर। मैं तो बिना कुछ किए ही अमीर होने जा रहा हूँ।'
यह कहकर वह चल निकला। वह सेब के पेड़ के पास पहुँचा। पेड़ ने कहा - 'कहो तो अक्लमंदी आदमी ने मेरी तकलीफ का क्या इलाज बताया है?' शहीदुल्ला, मेहरबानी कर मेरी जड़ों से चाँदी भरा बर्तन निकाल दो। इस तरह तुम्हारा भी भला हो जाएगा, तुम्हें चाँदी मिल जाएगी।'
'ओह नहीं, मैं यह मुसीबत उठाने को तैयार नहीं हूँ। अक्लमंद आदमी ने कहा कि मैं तो हर हाल में अमीर हो जाऊँगा।' शहीदुल्ला इतना कहकर चलता गया, चलता गया और आखिर मरियल भेड़िये से उसकी मुलाकात हुई। वह तो शहीदुल्ला को देखते ही बेसब्री से काँपने लगा।
हाँ, तो अक्लमंद आदमी ने मेरे लिए क्या सलाह दी है? मुझे झटपट बता दो, इंतजार न कराओ। जो कामचोर सबसे पहले तुम्हारे सामने आए उसे खा जाओ। तुम्हारे पेट का दर्द फौरन गायब हो जाएगा। शहीदुल्ला ने कहा। भेड़िये ने शहीदुल्ला को धन्यवाद दिया और फिर यह पूछा कि रास्ते में उसने क्या कुछ देखा, क्या कुछ सुना। शहीदुल्ला ने मछली और सेब के पेड़ के साथ हुई मुलाकातों का जिक्र किया और यह बताया कि मछली और पेड़ ने उससे क्या प्रार्थना की। फिर शहीदुल्ला ने कहा - 'मगर मैंने उनकी बातों पर कान नहीं दिया।
कारण कि मैं तो हर सूरत में अमीर हो जाऊँगा।' भेड़िये ने यह सुना और बहुत खुश हो गया। वह बोला - 'अब मुझे कामचोर की तलाश करने की जरूरत नहीं। वह तो खुद ही मेरे पास आ गया है। दुनिया में तुमसे बढ़कर बेवकूफ और कामचोर ढूँढे नहीं मिलेगा।' और शहीदुल्ला का किस्सा खत्म हुआ। कामचोर शहीदुल्ला के साथ तो यही होना था।
बीवी-बच्चे इंतजार करते रहते मगर कोई बदलाव नहीं आया और वे गरीब ही बने रहे। चुनांचे एक मर्तबा बीवी की बातों से तंग आकर शहीदुल्ला ने किसी अक्लमंद आदमी के पास जाकर यह पूछने का फैसला किया कि मैं गरीबी से कैसे अपना पीछा छुड़ा सकता हूँ।
उसने सफर की तैयारी की और रवाना हो गया। शहीदुल्ला तीन दिन और रातों तक चलता रहा। रास्ते में उसे एक भेड़िया मिला, जो मरियल था और हड्डियाँ बाहर आ रही थी। कहाँ जा रहे हो भले मानस?' भेड़िये ने पूछा। 'किसी अक्लमंद आदमी के पास यह जानने के लिए जा रहा हूँ कि मैं अमीर कैसै बन सकता हूँ।'
शहीदुल्ला ने जवाब दिया। 'तुम जा तो रहे ही हो, मेहरबानी कर उस अक्लमंद आदमी से यह भी पूछ लेना कि मेरे पेट में पिछले तीन सालों से दर्द है। मैं क्या करूँ 'मैं पूछ लूँगा।' कहकर शहीदुल्ला फिर से तीन दिन और तीन रातों तक चलता रहा। आखिर उसे सड़क के किनारे एक सेब का पेड़ नजर आया। 'कहाँ जा रहे हो, भले मानस?' सेब के पेड़ ने पूछा।
शहीदुल्ला के बताने पर सेब के पेड़ ने कहा, 'जरा हो सके तो उस अक्लमंद आदमी से यह भी पूछ लेना कि मैं क्या करूँ, हर बसंत में मुझ पर फूल आते हैं मगर फौरन ही मुरझाकर गिर जाते हैं और मुझ पर कभी फल नहीं लगते। 'मैं पूछ लूँगा' कहते हुए शहीदुल्ला आगे बढ़ गया। वह एक गहरी झील के तट पर पहुँचा। अचानक पानी से एक बड़ी सी मछली बाहर निकलकर बोली - तुम किस ओर जा रहे हो राही?' शहीदुल्ला के बताने पर मछली ने कहा - मेहरबानी होगी अगर तुम मेरे लिए पूछ लो कि पिछले सात साल से मेरे गले में सख्त दर्द रहता है। वह कैसे दूर होगा?'
'मैं पूछ लूँगा।' कहकर शहीदुल्ला आगे तीन दिन और तीन रातों तक चलता रहा। एक जगह उसे लंबी सफेद दाढ़ी वाला बुजुर्ग बैठा दिखाई दिया। शहीदुल्ला को देखने ही उसने पूछा - 'तुम क्या चाहते हो शहीदुल्ला? शहीदुल्ला हक्का-बक्का रह गया।
'आप मेरा नाम कैसे जानते हैं? शायद आप ही वह अक्लमंद आदमी हैं, मैं जिनकी तलाश में आया हूँ।'
'हाँ, मैं ही हूँ वह आदमी। जल्दी से बताओ तुम मुझसे क्या चाहते हो?' शहीदुल्ला ने सब कुछ बता दिया तब अक्लमंद आदमी ने कहा - 'मछली के गले में एक बड़ा हीरा फँस गया है। हीरा निकाल देने से मछली का दर्द दूर हो जाएगा। सेब के पेड़ के नीचे चाँदी से भरा एक बर्तन दबा है। इस बर्तन को जैसे ही वहाँ से निकाल दिया जाएगा पेड़ पर फल लगना शुरू हो जाएँगे। जहाँ तक भेड़िए का प्रश्न है, तो उसे उस कामचोर को हड़प जाना चाहिए जो सबसे पहले उसके सामने आए। तभी उसके पेट का दर्द दूर होगा।'
'और मेरी प्रार्थना?' शहीदुल्ला ने पूछा। 'सो तो स्वीकार की जा चुकी है। अब जाओ' बुजुर्ग ने जवाब दिया। शहीदुल्ला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने कुछ और नहीं पूछा। चलाचल, चलाचल वह उस नदी के किनारे पहुँचा जहाँ वह मछली बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी, शहीदुल्ला ने उसका इलाज बताया, तो मछली ने विनती की कि मेरे गले में फँसा हीरा निकाल दो। ओह मुझे क्या लेना-देना है, इस पचड़े में पड़कर। मैं तो बिना कुछ किए ही अमीर होने जा रहा हूँ।'
यह कहकर वह चल निकला। वह सेब के पेड़ के पास पहुँचा। पेड़ ने कहा - 'कहो तो अक्लमंदी आदमी ने मेरी तकलीफ का क्या इलाज बताया है?' शहीदुल्ला, मेहरबानी कर मेरी जड़ों से चाँदी भरा बर्तन निकाल दो। इस तरह तुम्हारा भी भला हो जाएगा, तुम्हें चाँदी मिल जाएगी।'
'ओह नहीं, मैं यह मुसीबत उठाने को तैयार नहीं हूँ। अक्लमंद आदमी ने कहा कि मैं तो हर हाल में अमीर हो जाऊँगा।' शहीदुल्ला इतना कहकर चलता गया, चलता गया और आखिर मरियल भेड़िये से उसकी मुलाकात हुई। वह तो शहीदुल्ला को देखते ही बेसब्री से काँपने लगा।
हाँ, तो अक्लमंद आदमी ने मेरे लिए क्या सलाह दी है? मुझे झटपट बता दो, इंतजार न कराओ। जो कामचोर सबसे पहले तुम्हारे सामने आए उसे खा जाओ। तुम्हारे पेट का दर्द फौरन गायब हो जाएगा। शहीदुल्ला ने कहा। भेड़िये ने शहीदुल्ला को धन्यवाद दिया और फिर यह पूछा कि रास्ते में उसने क्या कुछ देखा, क्या कुछ सुना। शहीदुल्ला ने मछली और सेब के पेड़ के साथ हुई मुलाकातों का जिक्र किया और यह बताया कि मछली और पेड़ ने उससे क्या प्रार्थना की। फिर शहीदुल्ला ने कहा - 'मगर मैंने उनकी बातों पर कान नहीं दिया।
कारण कि मैं तो हर सूरत में अमीर हो जाऊँगा।' भेड़िये ने यह सुना और बहुत खुश हो गया। वह बोला - 'अब मुझे कामचोर की तलाश करने की जरूरत नहीं। वह तो खुद ही मेरे पास आ गया है। दुनिया में तुमसे बढ़कर बेवकूफ और कामचोर ढूँढे नहीं मिलेगा।' और शहीदुल्ला का किस्सा खत्म हुआ। कामचोर शहीदुल्ला के साथ तो यही होना था।