बुधवार, 15 सितंबर 2010

क्या अंतर है मंत्र और श्लोक में?


धार्मिक क्रियाओं में दो शब्द हमेशा आते हैं, मंत्र और श्लोक। कई लोग इसे एक ही मानते हैं लेकिन दोनों में बहुत अंतर है। कई लोग यह नहीं जानते है कि हम किसे मंत्र कहें और किसे श्लोक। इन दोनों के बीच का अंतर केवल संस्कृत जानने वाला ही कर सकता है। मंत्र और श्लोक दोनों अलग-अलग विषय हैं, इन्हें एक नहीं माना जा सकता। आइए जानते हैं कि दोनों में क्या अंतर है, हम किसे मंत्र कहें या किसे श्लोक।

दरअसल मंत्र और श्लोक दोनों ही होते तो संस्कृत में ही हैं, इनकी भाषा और व्याकरण भी लगभग समान होते हैं। अंतर इनकी भाषा और शैली का नहीं है। इनके लिखे जाने को लेकर है। मंत्र वह हैं जो सीधे मन से उत्पन्न हुए, उन्हें लिखकर नहीं बनाया गया। जैसे वेदों की ऋचाएं। वेदों में आई सारी ऋचाएं मंत्र कहलाती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे स्वयं प्रकट हुई थीं, इन्हें किसी ने लिखा नहीं था। मन से उत्पन्न है इसलिए मंत्र कहलाते हैं।श्लोक का अर्थ ठीक इसके विपरीत है।
जो किसी के द्वारा लिखा गया हो, जिसे किसी ने रचा हो, उसे मंत्र कहते हैं। जैसे भागवत या वाल्मीकि रामायण, महाभारत, ये ग्रंथ धरती पर रहने वाले ऋषि-मुनियों ने लिखे हैं। इसलिए इनमें आने वाले पद्य मंत्र नहीं कहे जा सकते है, ये श्लोक हैं। इन्हें लिखा गया है, ये खुद प्रकट नहीं हुए हैं।