एक बार महर्षि कश्यप की पत्नी व देवताओं की माता अदिति ने भगवान श्रीगणेश को पुत्र रूप में पाने के लिए उनकी घोर तपस्या की। तब प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें दर्शन दिए तथा उनके घर पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान भी दिया।
जब अदिति ने यह बात अपने पति महर्षि कश्यप को बताई तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उधर देवान्तक व नरान्तक नामक राक्षसों के अत्याचार से जब देवता, पृथ्वी व ब्राह्मण भयभीत हो गए तो ब्रह्माजी के आदेश पर उन्होंने श्रीगणेश की आराधना की। तभी आकाशवाणी हुई-
कश्यपस्य गृहे देवोवतरिष्यति साम्प्रतम्।
करिष्यत्यद्भुतं कर्म पदानि व: प्रदास्यति।।
दुष्टानां निधनं चैव साधूनां पालनं तथा।
अर्थात- भगवान गणेश महर्षि कश्यप के घर में अवतार लेंगे और वे ही दुष्टों का संहार कर साधुओं का पालन करेंगे।निश्चित समय के बाद कश्यप पत्नी अदिति के घर भगवान गणेश ने जन्म लिया। उनकी दस भुजाएं, कानों में कुण्डल, ललाट पर कस्तूरी तिलक से सुसज्जित रूप देखकर अदिति बहुत प्रसन्न हुई। तब अदिति ने श्रीगणेश को बालक के रूप में दर्शन देने को कहा। भगवान गणेश उसी क्षण बालक बन गए। यह जानकर ऋषि-मुनि आदि महर्षि कश्यप के घर आए। उन्होंने उस बालक का नाम रखा महोत्कट। जब राक्षसों को इस बात ज्ञात हुई तो वे महोत्कट को मारने का प्रयास करने लगे लेकिन वे असफल हुए। कुछ समय पश्चात महोत्कट रूपी श्रीगणेश ने सभी असुरों को यमपुरी पहुंचा दिया। इसके पश्चात श्रीगणेश काशी में ढुण्ढिविनायक के नाम से प्रतिष्ठित हो गए।