भगवान गणेश आदि देवता माने जाते हैं। सरल अर्थों में हर युग में भगवान गणेश जगत के कष्टों और दु:खों को हरने वाले देवता के रुप में पूजा होती रही है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में चार युग बताए जाते हैं - कृत या सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग। हर युग में भगवान गणेश अलग-अलग मंगल रुप में प्रगट हुए और अशांत, पीडि़त और दु:खी जगत को सुख, शांति और आनंद दिया। यहां बताए जा रहे हैं भगवान गणेश के चारों युगों के अलग-अलग अवतार
भगवान गणेश कृत या सतयुग में विनायक रुप में पूजे गए। जिनकी दस भुजाएं थी और उनका वाहन चूहा नहीं बल्कि शेर था। इस युग में भगवान गणेश ने नरान्तक और देवान्तक दानवों का अंत किया।
त्रेतायुग में भगवान गणेश मयूरेश्वर रुप में प्रगट हुए। जिनकी छ: भुजाएं थी। इस रुप में उनका वाहन मोर था। इस युग में श्री गणेश ने सिन्धु राक्षस का संहार किया।
द्वापर युग में श्री गणेश गजानन रुप लेकर सिन्धूर राक्षस दैत्य का अंत किया। गजानन रुप का शरीर लाल रंग का था। उनकी चार भुजाएं थी और उनका वाहन चूहा था।
कलियुग में भगवान गणेश का धूम्रकेतु रुप में पूजा जाता है। धूम्रकेतु गणेश दो भुजा वाले हैं। उनके शरीर का रंग धुंए की तरह है। इस युग में श्री गणेश का वाहन घोड़ा माना जाता है।