प्यार का तो दुश्मन जमाना हमेशा से रहा है पर अगर प्यार करने वालों को किसी से भी थोड़ा सा सपोर्ट मिल जाए तो वे उसके ही गुण गाने लग जाते हैं। कभी-कभी उनके हमदर्द कुछ ऐसे भी बन जाते हैं कि सहसा विश्वास ही नहीं होता। प्रेमियों के ऐसे ही एक हमदर्द हैं- स्वयंभू गणपति।कथा- इन्हें विक्रमादित्य कालीन कहा जाता है। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने अपने जीवनकाल में सारे देवताओं के मंदिर बनवाये थे पर गणपति का कोई मंदिर वे अब तक कोई मंदिर नहीं बनवा पाए थे।
एक बार गणपतिजी के प्रताप से आकाशवाणी हुई कि वे राजा को पार्वती नदी के तट पर कमल पुष्प के रूप में मिलेंगें। राजा अपनी पूरी सेना के साथ वहां पहुंचे तो वहां एक कमल पुष्प मिला। जब उसे तोड़ा गया तभी आकाशवाणी हुई कि अगर उन्हें सुबह होने तक स्थापित नहीं किया गया तो वे उसी जगह स्थापित हो जाएंगें।राजा अपनी पूरी सेना के साथ उन्हें लेकर वापस उज्जैन ले जाने लगे पर सुबह होते-होते वे सीहोर ही पहुंच पाए थे। इससे गणपतिजी वहीं स्थापित हो गए। ये भारत के चुनिंदा स्वयंभू गणपतियों में से एक हैं।अपने शुरुआती दौर में यहां प्रेमियों की भीड़ रहती थी। यहां वे अपने प्रेम की सलामती की दुआएं मांगते थे। बाद में यह मंदिर सभी लोगों की श्रद्धा का केन्द्र बन गया। यहां मन्नत मांगने के बाद सात परिक्रमाएं करने का रिवाज है।
विशेष आकर्षण- यहां मन्नत मांगने की प्रथा बड़ी अजीब है। जो भी यहां मन्नत मांगते हैं वे मंदिर में कहीं भी उल्टा स्वस्तिक बना देते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से गणपति मन्नतें जल्दी पूरी कर देते हैं। मन्नत पूरी होते ही उसी स्वस्तिक को सीधा बना दिया जाता है।
कैसे पहुचें- उज्जैन-भोपाल रेलवे लाइन पर भोपाल से 40 मिनट की दूरी पर सीहोर स्थित है। स्टेशन से मंदिर तक जाने के लिए आसानी से साधन मिल जाते हैं।