मंगलवार, 14 सितंबर 2010

जैनियों का प्रधान तीर्थ स्थल

महावीर स्वामी द्वारा लोगों को अपने जीवन को सफल बनाने के लिए जो शिक्षाप्रद मार्ग बतलाया गया था, उसने बढ़ते-बढ़ते एक धर्म का रूप ले लिया था। जैन धर्म महावीर स्वामी की इन्हीं शिक्षाओं पर आधारित है। जैनियों का प्रधान तीर्थ क्षेत्र है- पारसनाथ।

जैन संप्रदाय के मानने वाले इसे सम्मेतशिखर या शिखरजी भी कहते हैं। यह सिद्ध क्षेत्र माना गया है। कहते हैं यहां से 20 तीर्थंकर और अनेक मुनि मोक्ष गए थे। आदिनाथ भगवान ऋषभदेव भी यहीं से मोक्ष को प्राप्त हुए थे। जैनों के सभी संप्रदाय इस पर्वत शिखर को परम पवित्र क्षेत्र मानते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस पर्वत की वन्दना करता है उसे नरक में नहीं जाना पड़ता। दरअसल पारसनाथ पहाड़ी का नाम है। इसके नीचे जो बस्ती है, उसे मधुवन कहते हैं।
पारसनाथ दर्शन- मधुवन से 10 किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई है, 10 किलोमीटर पर्वतों पर घूमना है और 10 किलोमीटर की उतराई है। इस प्रकार लगभग 30 किलोमीटर की पैदल यात्रा है।
मधुबन से 3 किलोमीटर जाने पर गन्धर्वनाला मिलता है, उससे ड़ेढ किलामीटर आगे दो रास्ते मिलते हैं। इनमें से बायीं ओर के रास्ते से जाना चाहिए। इससे सीधी परिक्रमा हो जाती है। दाहिनी ओर का रास्ता सीधे पारसनाथ शिखर गया है। यात्री इस रास्ते से लौटते हैं।
पर्वत के ऊपर पहले गौतम स्वामी की टोंक मिलती है। टोंकों यानि शिखरों पर जैन मुनियों के चरणों के निशान हैं। यहां सबसे ऊंचा शिखर पाश्र्वनाथ टोंक है। यहां का मंदिर भी बहुत सुंदर है।
कैसे पहुचें- पूर्वी रेलवे की हावड़ा-गया लाइन पर गोमो से बारह मील दूर पारसनाथ स्टेशन है। इस स्टेशन के सबसे पास गांव का नाम ईसरी है। गया से ईसरी तक बस चलती है। पारसनाथ जाने वालों को ईसरी से मधुवन तक जाने के लिए बसें आसानी से मिल जाती हैं।
कहां रुकें- मधुवन में रुकने के लिए जैन धर्मशालाएं हैंं।

जैन धर्म की प्रमुख शाखाएं

जैन धर्म की प्रमुख शाखाएंजैन धर्म की दो प्रमुख शाखाएं हैं। पहली शाखा है दिगंबर और दूसरी शाखा श्वेतांबर कहलाती है। दिगंबर:'दिगंबर' का अर्थ है दिक् (दिशा) है अंबर (वस्त्र) जिसका अर्थ है नग्न। अपरिग्रह और त्याग का यह चरम उदाहरण है। दिगंबर स्वरूप के पीछे का दर्शन संपूर्ण त्याग है। संपूर्ण त्याग अर्थात् किसी भी प्रकार का संग्रह, यहां तक कि शरीर के वस्त्रों का भी त्याग। जैनियों की दिगंबर शाखा की मान्यता है कि स्त्रियों को मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता क्योंकि वे वस्त्र का पूर्णत: त्याग नहीं कर सकती। दिगंबरों के तीर्थंकरों की मूर्तियां पूर्णत: नग्न होती है। दिगंबर शाखा के अनुयायी श्वेतांबरों द्वारा मानित अंग साहित्य को भी प्रमाणिक नहीं मानते। श्वेतांबरश्वेतांबर का अर्थ है 'श्वेत (वस्त्र) है आवरण जिसकाÓ। श्वेतांबर शाखा के अनुयायी वस्त्रों के पूर्ण त्याग अर्थात् नग्नता को अधिक महत्वपूर्ण नहीं मानते। श्वेतांबरों द्वारा स्थापित मूर्तियां नग्न नहीं होती बल्कि वे कच्छ धारण करती है। जैन धर्म में एक तीसरी उपशाखा सुधारवादी स्थानकवासियों की है, जो मूर्ति पूजा की विरोधी है। यह शाखा आदिम सरल स्वच्छ व्यवहार तथा सादगी की समर्थक है। इन्हीं की एक शाखा तेरह पंथियों की है जो इनसे उग्र सुधारक है।