जब माता ने सती ने देह त्याग किया तो ऐसा कहते हैं कि अगले जन्म में वो पार्वती कहलाईं। इस जन्म में वे हिमाचल के यहां बेटी बनीं। मनुष्य के अंतिम समय में जो उसकी अंतिम इच्छा होती है वह अगले जन्म का कारण बन जाती है। पार्वती बनकर नया दाम्पत्य शंकरजी का आरंभ हुआ। शंकर और पार्वती का दिव्य दाम्पत्य था तभी तो उनके यहां कार्तिकेय व गणेश जैसी संतानें पैदा हुईं। ''भवानीशंकरोवंदे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ'' अर्थात पार्वती श्रद्धा हैं शंकर विश्वास हैं। जीवन में श्रद्धा और विश्वास का जब मिलन होता है तब कार्तिकेय व गणेश पैदा होते हैं।
सूतजी शौनकादि से कह रहे हैं, परीक्षित को समझा रहे हैं शुकदेवजी। अपने दाम्पत्य को ऐसे बचाकर रखो। मां देवहुति ने भी अपने पुत्र कपिल से यही प्रश्न पूछा था कि गृहस्थी में भक्ति कैसी हो। यहां भी यही प्रश्न आया। तो सती और पार्वती के माध्यम से हम ये सीख सकते हैं कि अपने दाम्पत्य को आपसी समझ व गइराई से कैसे चलाया जाए।आइए हम अगले दृश्य में प्रवेश करते हैं। ग्रंथकार बहुत सुंदर दृश्य बताते हैं। भगवान शंकर और पार्वती का विवाह हुआ और अभी-अभी दोनों कैलाश पर पहुंचे हैं। दोनों बैठे हैं पति-पत्नी और बैठकर बात कर रहे हैं।
पार्वतीजी, शंकरजी से पूछ रही है कि आप मुझे रामकथा सुनाइए जो मैं चूक गई सती जन्म में।तो शंकरजी उनको रामकथा सुना रहे हैं। अब देखिए पति-पत्नी अकेले में बैठे हों तो कामकथा फूटती है पर यहां रामकथा फूट रही है। दिव्यता का महत्व है जीवन में। परमात्मा उतरेगा तो शुद्धता को पसंद करके उतरता है। दोनों पति-पत्नी बैठकर बातचीत कर रहे हैं।
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