शनिवार, 11 सितंबर 2010

शिष्य की लगन

यह कहानी है एक साधारण से व्यक्ति के झेनमेन की जो कि इतना सीधा था कि कोई भी उसे मारे तो वह पलटकर उन्हें कोई जवाब नहीं देता था। उसके इसी स्वभाव से सभी उसे मारते रहते, इस वजह से वह बेहद परेशान था। वह एक सुप्रसिद्ध कराटे गुरु के पास गया और कहा - क्या आप मुझे कराटे सिखाएँगे। उन्होंने कहा - मैं किसी भी ऐसे-वैसे व्यक्ति को कराटे नहीं सिखाता। वैसे भी झेनमेन बहुत ही गरीब परिवार से था। उन्होंने झेनमेन को कहा कि - मैं तुम्हें कराटे नहीं सिखा सकता। परंतु झेनमेन ने बहुत प्रार्थना की कि मुझे सीखना है। उसके बहुत कहने पर उन्होंने उसे अपने घर में पानी लाने का काम सौंपा और कहा कि इस काम को लगन से करना। वह काम लगन से करता था।

एक दिन वह पानी लेकर आ रहा था, कि पीछे गुरुजी ने उसे जोर का धक्का दिया और चले गए। उसने फिर से पानी भरा और पानी रखकर गुरुजी के पास गया और बोला कि गुरुजी मुझसे क्या गलती हो गई? जो आपने मुझे धक्का दिया। गुरुजी ने कहा - आगे से सावधान रहना। एक बार जब वह कपड़े सुखा रहा था तभी गुरुजी आए और उसको एक बाँस मार दिया। वह नीचे गिर गया फिर जल्दी-जल्दी अपना सारा काम किया। वह यह सब काम मन लगाकर करता था। फिर गुरुजी ने उसे रसोई घर का काम सौंप दिया।

वह रसोई घर में भोजन बनाने का काम करता था। उस समय भी जब वह भात बना रहा था। तभी गुरुजी आए और झेनमेन को उन्होंने जोर से धक्का दिया। तभी झेनमेन ने खुद को बचा लिया लेकिन उसके हाथों से भात का पात्र नीचे गिर गया। गुरुजी तो चले गए पर उसका एक और काम बढ़ गया। उसके बात वह सोता भी तो इतना सतर्क कि कोई मारे तो वह बच जाए।

एक बार जब वह रसोई घर की ओर जा रहा था तभी गुरुजी ने उसे एक जोरदार थप्पड़ मारना चाहा परंतु नहीं मार पाए क्योंकि झेनमेन ने हवा की सरसराहट से यह जान लिया कि कोई है और नीचे बैठ गया। अब वह हमेशा सतर्क रहता व अब सारे शिष्य कराटे सीखते तब वह सिर्फ बचने का तरीका सीखता था ताकि गुरुजी से बच सके। ऐसे ही एक साल पूरे हो गए। जब सभी शिष्यों को प्रमाण पत्र देने का समय आया तो सभी को प्रमाण पत्र मिले। उसके बाद देखा गया कि सबसे बड़ा योद्धा कौन है?

तो गुरुजी ने वहाँ झेनमेन को लाकर खड़ा कर दिया कि यह है सबसे बड़ा योद्धा। सब देखकर आश्चर्यचकित हो गए। सारे शिष्यों ने कहा - कि यह कैसे महान योद्धा है यह तो हमारे रसोई घर का नौकर है। तब गुरुजी ने दावा किया कि मेरे प्रिय शिष्यों इसको तुम आजमा सकते हो जिसने भी इसके शरीर को या किसी के भी शस्त्र ने अगर, इसको छू लिया तो समझो वही महान योद्धा है। सबने आजमाया पर सब हार गए।
सौजन्य से - देवपुत्र


साधो और माधो

एक छोटे से शहर में एक लालची नाई साधो रहता था। उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। परंतु एक ही सपना देखता था कि वह किसी भी तरह अमीर बन जाए। उसी शहर में माधो नाम का एक गरीब व्यक्ति भी रहता था। वह प्रतिदिन नियम से भगवान शिव की पूजा करता था। माधो सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं करता था बल्कि वह अच्छा आदमी था। दूसरों की मदद के लिए वह हमेशा तैयार रहता था। एक बार उसे पैसों की बहुत सख्त जरूरत पड़ी। कहीं से भी पैसों का इंतजाम नहीं हो सका। माधो बड़ा परेशान रहने लगा। परेशानी वाले दिनों में ही एक रात सपने में माधो को भगवान शिव दिखाई दिए।

भगवान ने कहा कि माधो हम तेरे जैसे सच्चे भक्त से बड़े खुश हैं, कहो क्या चाहिए? माधो बोला- प्रभु मैं आनंद मैं हूँ, बस इन दिनों धन की ही थोड़ी जरूरत है। भगवान ने कहा- बस इतनी सी बात। कल सुबह तुम स्नान करके किसी नाई से अपना मुंडन करवाकर अपने घर के पास की झाड़ियों के पीछे छिप जाना। उस समय एक मोटा डंडा अपने हाथ में जरूर रखना। तुम्हारे पास से जो भी पहला व्यक्ति निकले उसे डंडा मार देना और वह सोने के ढेर में बदल जाएगा। सोने को पाकर तुम धनवान हो जाओगे और तुम्हारी तकलीफें दूर हो जाएँगी।

अगले दिन सुबह जागकर माधो ने वैसा ही किया। वह नहाकर पड़ोस में रहने वाले साधो नाई के पास गया और उससे मुंडन करवाकर अपने घर के पीछे झाड़ियों में छिप गया। लेकिन उसे पता नहीं था कि साधो नाई एक पेड़ के पीछे छुपकर उसे देख रहा है। दरअसल माधो को इतनी सुबह-सुबह मुंडन कराने आया देखकर साधो को आश्चर्य हुआ था। इसी का पता लगाने के लिए वह पेड़ के पीछे छुपकर माधो को देख रहा था। इधर जैसे ही पहला व्यक्ति वहाँ से गुजरा, माधो ने उसे डंडा मारा और वह व्यक्ति सोने के ढेर में बदल गया। यह सारी घटना लालची साधो ने देख ली।

डंडे की चोट से पहलवान के सिर में टेमला पड़ गया। पहलवान ने साधो के हाथ में डंडा देखा और उसकी हड्‍डी-पसली एक कर दी। पिटाई ऐसी उड़ी कि अगले महीने भर तक साधो बिस्तर पर पड़ा रहा। अगले दिन साधो नाई ने खुद ही अपना सिर मूँड लिया और अपने घर के पास ही एक मोटा डंडा लेकर खड़ा हो गया और उधर से गुजरने वाले किसी व्यक्ति का इंतजार करने लगा। अचानक किसी के आने की आवाज सुनाई दी और साधो तैयार हो गया। ठीक समय पर उसने निकलने वाले आदमी को जोर से डंडा मारा। डंडे की चोट जिसे लगी वह गाँव का पहलवान रामलाल था। डंडे की चोट से पहलवान के सिर में टेमला पड़ गया। पहलवान ने साधो के हाथ में डंडा देखा और उसकी हड्‍डी-पसली एक कर दी। पिटाई ऐसी उड़ी कि अगले महीने भर तक साधो बिस्तर पर पड़ा रहा। इस तरह लालची साधो को उसकी लालच का फल मल गया।