रविवार, 3 अक्तूबर 2010

भागवत: ८३: चरित्र तराशने की कला है अध्यात्म

अध्यात्म व्यक्तित्व को तराशने की कला है, यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से हमने सीखा। चतुर्थ स्कंध में जो चार कथाएं आई हैं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की इसे अपने जीवन में संभालकर रखिए। धर्म बचाकर रखें, अर्थ के तरीके बचे रहें, काम पुरुषार्थ बचा रहे और मोक्ष की कामना को समझ लें ये चौथा स्कंध है।लेकिन हमारे जीवन से एक-एक करके सबसे पहले धर्म जाता है फिर अर्थ गलत तरीके से आने लगता है। अत: अर्थ जाता है तो हम कब इन चीजों को छोड़ देते हैं हमें खुद ही ध्यान नहीं रहता।

आइए पांचवें स्कंध में प्रवेश करते हैं। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कैसे हमसे छूट जाते हैं, कहां चले जाते हैं जरा विचार तो करिए। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को बचाना पड़ेगा। हमारी भागवत बताती है कि हमारे जीवन के चार व्यवहार हैं। उस व्यवहार को बचाने के लिए ही ये चार भाग कहे गए हैं। हम चौथे और पांचवें स्कंध की कथा पढ़ रहे हैं ये हमारे जीवन को बचाने के लिए, चार हिस्सों को बचाने के लिए कही गई कथा है।
इसीलिए सामाजिक जीवन में पारदर्शिता बनाए रखिएगा। आपके व्यवसायिक जीवन में परिश्रम बनाए रखिएगा। आपके पारिवारिक जीवन में प्रेम बनाए रखिएगा और आपके निजी जीवन में पवित्रता बनाए रखिएगा बस यहीं से मोक्ष घट जाएगा।धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार जीवन को पूरा कर देंगे इसलिए निजी जीवन में पवित्रता का बड़ा महत्व है।

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