शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

खुसरो की प्रहेलिकाएं


भारत में पहेलियों की परम्परा बहुत पुरानी है। हमारे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में बहुत सी पहेलियां हैं। ब्राह्मणों, उपनिषदों और कहीं-कहीं काव्यों तक में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में पहेलियों के दर्शन हो जाते हैं। पहेलियां मूलत: आम जनता की चीज़ है। संस्कृत साहित्य में पहेलियां प्रहेलिका के नाम से मिलती हैं। पहेलियों के क्षेत्र में अमीर खुसरो का योगदान अविस्मरणीय है।

अमीर खुसरो ने बच्चों के लिए दो प्रकार की पहेलियां लिखीं-
(1) बूझ पहेली
(अंतर्लापिका)
यह वो पहेलियां हैं जिनका उत्तर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में पहेली में दिया होता है यानी जो पहेलियां पहले से ही बूझी गई हों। जैसे-
(क) गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा, जो न बूझे अकल का खोटा।।
उत्तर - लोटा। यहां पहली पंक्ति का आखिरी शब्द ही पहेली का उत्तर है। इन पहेलियों का उत्तर पहेलियों में ही होता है।
खुसरो की बूझ पहेलियों के भी दो वर्ग बनाए जा सकते हैं। कुछ में तो उत्तर एक ही शब्द में रहता है जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं। दूसरी

पहेली में कभी-कभी उत्तर के लिए दो शब्दों को मिलाना पड़ता है। जैसे-
(ख) श्याम बरन और दांत अनेक, लचकत जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री।।
उत्तर- आरी। यहां दूसरी पंक्ति के आखिरी शब्द ‘आ’ और ‘री’ को मिलाने से उत्तर मिलता है।
कुछ और उदाहरण देखते हैं। इनके उत्तर आप बताने की कोशिश करें।
(1) हाड़ की देही उज् रंग, लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया वाका सर क्यों काट लिया।
(2) बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गांव।।
(3) नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे कोइलो-कोइलो लोय।।
(4) एक नार तरवर से उतरी, सर पर वाके पांव
ऐसी नार कुनार को, मै ना देखन जांव।।
(5) सावन भादों बहुत चलत है माघ पूस में थोरी।
अमीर खुसरो यूं कहें तू बुझ पहेली मोरी।।
उत्तर- नाखून, दिया, कोयल, मैना, मोरी (नाली)

(2) बिन बूझ पहेली या
बहिर्लापिका
इसका उत्तर पहेली से बाहर होता है।
उदाहरण- एक जानवर रंग रंगीला, बिना मारे वह रोवे।
उस के सिर पर तीन तिलाके, बिन बताए सोवे।।
उत्तर- मोर।
एक और उदाहरण-
स्याम बरन की है एक नारी, माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले, कुत्ते की वह बोली बोले।।
उत्तर- भौं (भौंए आंख के ऊपर होती हैं।)

कुछ और उदाहरण देखते हैं। इनके उत्तर आप बताने की कोशिश करें।
(1) एक गुनी ने यह गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादूगर का हाल, डाले हरा निकाले लाल।

(2) एक थाल मोतियों से भरा, सबके सर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उससे एक न गिरे।
उत्तर- पान, आसमान

(3) दोहा पहेली
कुछ पहेलियां अमीर खुसरो ने ऐसी भी लिखीं जो साथ में आध्यात्मिक दोहे भी हैं।
उदाहरण-
(क) उज्जवल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है, पर निपट पार की खान।।
उत्तर- बगुला
(ख) आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।
दांत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।
उत्तर- भुट्टा

इसके अलावा साहित्यकार अमीर खुसरो ने आम लोगों को मनोरंजन, शब्द ज्ञान और साधारण जानकारी हेतु हिन्दी साहित्य में कुछ नई विधाएं भी ईजाद की हैं। ये पूर्णत: शुद्ध पहेलियां तो नहीं हैं परन्तु इनमें भी कुछ पहेलियों की भांति बुझौवल की प्रकृति विद्यमान है। ये नवीन विधाएं उनके पूर्व अन्यत्र कहीं नहीं मिलतीं। ये इस प्रकार है -

(1) निस्बतें
यह अरबी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ है सम्बंध या तुलना। यह भी एक प्रकार की पहेली या बुझौवल कही जा सकती है। इसमें दो चीजों में सम्बंध, तुलना या समानता ढूंढनी या खोजनी होती है।

गपोड़े अंकल

आदर्श चौथी कक्षा में पढ़ता है। उसके बहुत सारे दोस्त हैं। वह हमेशा अपने दोस्तों को अपने चाचा के बारे में बताता रहता है। उसके चाचा एक समुद्री जहाज में कप्तान हैं। जब भी आदर्श अपने चाचा के बहादुरी के किस्से या उनकी समुद्री लुटेरों से भिडं़त के बारे में बताता है, तो उसके दोस्त बड़े ध्यान से सुनते रहते हैं। इन किस्सों को सुनाते वक्त आदर्श को ऐसा लगता है कि वह खुद ही समुद्री लुटेरों से लड़ रहा है।
इस जोश में वह कई बार कुछ डीगें या यूं कहें कि गप्पें हांक जाता है। चूंकि दोस्तों का ध्यान बहादुरी के कारनामों को सुनने में रहता है, तो उसकी गप्प को कोई पकड़ नहीं पाता। आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। आज स्कूल में लंच के समय आदर्श ने अपने दोस्तों को बताया कि कल उसके चाचा और समुद्री लुटेरों के बीच देर तक लड़ाई होती रही।
उसके सारे दोस्त उसकी इस गप्प को सांस रोके सुन रहे हैं। हमेशा की तरह इस बार भी अंत में उसके चाचा लुटेरों को भगाने में सफल हो जाते हैं। तभी उसके एक दोस्त राजू ने पूछा- ‘अगर वो लुटेरे वापस आ गए तो?’ आदर्श- ‘अरे बुद्धू, मेरे चाचा बहुत समझदार हैं। वो हमेशा अपने दो आदमियों को जहाज के दो किनारों पर खड़ा रखते हैं। उनमें से एक पश्चिम की ओर, तो दूसरा पूर्व की ओर मुंह करके खड़ा रहता है।’
राजू- ‘यार वो लोग तो खड़े-खड़े बोर हो जाते होंगे न!!’
आदर्श- ‘अरे नहीं यार, वो लोग एक दूसरे को देखते रहते हैं और आपस में बातें करते रहते हैं।’ आदर्श के इस जवाब को सुनकर सभी चौंक गए। एक का मुंह पूर्व तो एक का मुंह पश्चिम की ओर, फिर भला वो एक दूसरे की ओर मुंह करके कैसे बात कर सकते हैं। उसके दोस्तों को तो समझ नहीं आ रहा है, क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है, या फिर यह भी आदर्श की एक कोरी गप्प है? सोचिए, सोचिए..

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