मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

कौन है नवरात्र की प्रमुख देवियां?

- अरुण कुमार बंछोर
नवरात्र वह पर्व है, जिसमें देवी अपनी शक्ति का संचार अपने भक्तों में करती हैं। यह पर्व प्रकृति में स्थित शक्ति को समझने तथा उसकी आराधना का है। प्रकृति में विभिन्न रूपों में मां शक्ति स्थित है। उसी की आराधना हम नवरात्र में करते हैं-
नवरात्र की पहली शक्ति हैं शैलपुत्री। हिमाचल के यहां जन्म लेने के कारण देवी का यह नाम पड़ा। यह देवी प्रकृति स्वरूपा हैं। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।

देवी भगवती का दूसरा चरित्र ब्रह्मïचारिणी का है। ब्रह्मï को अपने अंतस में धारण करने वाली देवी भगवती ब्रह्मï को संचालित करती हैं। ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे का महामंत्र ब्रह्मïचारिणी देवी ने ही प्रदान किया है।
देवी की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा देवी हैं। असुरों के साथ युद्ध में देवी ने घंटे की टंकार से असुरों को चित कर दिया। यह नाद की देवी हैं। स्वर विज्ञान की देवी हैं।
देवी का चौथा स्वरूप कूष्मांडा देवी हैं। संसार में जितनी भी प्रकार की अभिलाषा है वह देवी कूष्मांडा की पूजा करने मात्र से प्राप्त हो जाती है। इन देवी को ही तृष्णा और तृप्ति का कारण माना गया है।
देवी भगवती का पांचवा स्वरूप स्कंदमाता का है। स्कंदकुमार को पुत्र के रूप में पैदा करने और तारकासुर का अंत करने में कारक सिद्ध होने के कारण वह जगतमाता कहलाईं।
देवी का छठा स्वरूप कात्यायनी का है। कात्यायन गोत्र में जन्म लेने के कारण ही उनका यह नाम पड़ा। कात्यायन ऋषि ने कामना की कि देवी भगवती उनके यहां पुत्री बन कर आएं। देवी ने इसको स्वीकारा और उनके यहां पुत्री बन कर आईं।
देवी का सातवां स्वरूप मां काली का है। संसार जिन-जिन चीजों से दूर भागता है, देवी को वह प्रिय हैं। श्मशान, नरमुंड, भस्म आदि आदि। काली देवी की आराधना से सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं।
और जिसने काल अर्थात मृत्यु को जीत लिया वह देवी के आठवें स्वरूप महागौरी को प्राप्त कर लेता है। जिसने महागौरी को प्रसन्न कर लिया वह सभी सिद्धियों का मालिक बन जाता है।
यही भगवती का नौंवा स्वरूप सिद्धिदात्री है।

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