रविवार, 10 अक्तूबर 2010

क्या है विद्या, अविद्या और महाविद्या?


नवरात्रि नवदुर्गा के साथ दस महाविद्याओं की उपासना का भी महत्वपूर्ण समय माना जाता है। जैसा कि नाम से ही जाहिर होता है कि यह विद्या का ही एक रुप है। जानते हैं धर्मग्रंथों में बताए महाविद्या का अर्थ और अलग-अलग महाविद्याओं को।

वास्तव में मन शक्ति के अधीन होता है। इसी शक्ति का एक रुप है विद्या। विद्या के भी तीन रुप हैं- विद्या, अविद्या और महाविद्या। ये तीन शब्द भी प्रतीक रुप हैं। इनमें मुक्ति का रास्ता बताने वाली विद्या कहलाती है यानि विद्या ज्ञान रुपी है। इसी प्रकार अविद्या वह सांसारिक ज्ञान है, जो हमारे लौकिक व्यवहार से जुड़ा है यानि अविद्या मोह की जननी है।
महाविद्या उक्त दोनों विद्याओं से भी श्रेष्ठ मानी जाती है। क्योंकि जो भक्त जिस इच्छा से इसकी साधना करता है। उसकी वह इच्छा पूरी होती है। संतान, धन, ज्ञान और मोक्ष महाविद्या की साधना से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार महाविद्या सभी प्राणियों को भोग और मोक्ष प्रदान करती है।
शाक्त तंत्र में दस महाविद्याओं का महत्व बताया गया है। यह आदिशक्ति भगवती के ही रुप है, जो अपने स्वभाव के अनुसार लोक-परलोक दोनों तरह की सिद्धि देने वाली मानी जाती है। इसलिए नवरात्रि में महाविद्याओं की उपासना का धार्मिक महत्व है।
यह दस महाविद्याएं और उनके शिव रुप के नाम हैं - १. काली २. तारा ३. षोडशी त्रिपुरसुन्दरी ४. भुवनेश्वरी (श्रीविद्या/ललिता) ५. छिन्नमस्ता ६. भैरवी (त्रिपुर भैरवी) ७. धूमावती ८. बगला (बगुलामुखी) ९. मातंगी १०. कमला (लक्ष्मी)इन सभी विद्याओं के अलग-अलग शिव भी बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं - काली के शिव महाकाल, तारा के अक्षोभ्य, षोडशी के पंचवक्त्र, छिन्नमस्ता के कबंध, भैरवी के दक्षिणामूर्ति, बगला के एकमुख महारुद्र, मातंगी के मतंग और कमला के सदाशिव श्री विष्णु माने जाते हैं।
इस प्रकार आदिशक्ति मानकर भक्ति करने वाले लोगों को भगवती भौतिक सुखों के साथ जनम-मरण के बंधन से भी मुक्त करती है।

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