रविवार, 10 अक्तूबर 2010

भागवत: 89: जीवन में अनुशासन होना आवश्यक है


एक बात आप ध्यान में रखें कि हम सात दिन में सात सूत्र दाम्पत्य के देख रहे हैं। हमने पहले दिन संयम देखा। दूसरे दिन संतुष्टि देखी। अब हम अपने दाम्पत्य के प्रमुख सूत्र संतान से परिचित होंगे। फिर हम आगे बढ़ेंगे। आइए अब हम प्रवेश कर रहे हैं भागवत के साथ तीसरे दिन के प्रसंगों में। भागवत तीसरे दिन के प्रसंगों में बताएगी कि जो भी करना होश में करना। याद रखिए ये दाम्पत्य के तीसरे सूत्र संतान का दिन है और सबसे पहला काम करना संतान पैदा करना तो होश में करना। जिनकी संतानें उनकी बेहोशी में पैदा हुईं जीवनभर पछताएंगे ।

आइए आपको छोटा सा उदाहरण दे दूं, होश में कैसे जिया जाता है। अगर आपके पास ये पात्र हो तो आप इनसे समझ सकते हैं कि कुंती पांडवों की मां थी जीवनभर होश में रही। कुंती के जीवन में इतना विपरीत समय आया कि उनके पति का देहांत हो गया। पांच छोटे-छोटे बच्चे उनके हवाले थे। तीन उनके युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन और दो पांडु की सहपत्नी माद्री के नकुल और सहदेव। जब पांडु का निधन हुआ तब प्रश्न उठा कि पांडु के साथ किसको सती होना है। कुंती ने कहा मैं ही हो जाती हूं सती, तो माद्री ने कहा -कुंती बहन। सती तो होना है किसी को, तो मैं होऊंगी। मेरे दो बच्चे हैं और आपके तीन। मैं जीवित रही तो आपके बच्चों को वैसे नहीं पाल पाऊंगी जैसे आप मेरे दो बच्चों को पालेंगी, मैं आपको जानती हूं। इसलिए आप ही रहिए। मेरे बच्चे पल जाएंगे।
कुंती ने जंगल में उन छोटे-छोटे बच्चों को पाला और वो बच्चे पांडव बने। जंगल में, सारे अभाव में, उनके पास कुछ नहीं था। जबकि राजमहल में सारी सुविधाएं थीं कौरवों के पास और फिर भी कौरव, कौरव रह गए तो सुविधा का लालन-पालन से कोई लेना-देना नहीं है। लालन-पालन का सीधा संबंध अनुशासन से है। आत्मानुशासन, परिवार का अनुशासन, समाज का अनुशासन और विद्या का अनुशासन।

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