रविवार, 10 अक्तूबर 2010

स्माइली बनी प्रिंसेस


रोजी और स्माइली एक ही गार्डन में रहती थीं। रोजी फूलों के राजा गुलाब की बेटी थी। स्माइली सूरजमुखी की बेटी थी। वैसे तो दोनों ही सुंदर और प्यारी दिखती थी। लेकिन रोजी अपने आपको कुछ ज्यादा ही सुंदर समझती थी। आखिर वह फूलों के राजा की बेटी थी, तो घमंड तो होना ही था। वह बड़ी ही कोमल और गुलाबी गुलाबी सी दिखती थी।

वह अपने आपको प्रिंसेस समझती थी। उधर उसकी सहेली स्माइली उसकी तरह गुलाबी तो नहीं थी, हाँ उसके होठों पर हमेशा खिली-खिली सी हँसती जरूर रहती थी। वह हमेशा हँसती रहती। उसे न तो अपने आप पर घमंड होता था, न ही उसे कभी गुस्सा आता था। इससे उसकी सुंदरता और बढ़ जाती थी। वह बस अपने में ही झूमती रहती। उसका खिला चेहरा देखकर रोजी को गुस्सा आता था। फिर वह सोचती, चाहे कुछ भी हो इस गार्डन की राजकुमारी तो मैं ही हूँ। पूरी दुनिया जानती है कि गुलाब जैसा कोई फूल नहीं। फिर मैं ही तो हुई न प्रिंसेस। यही सोचकर वह इतराती रहती थी।

एक दिन तो उसने हद ही कर दी। उसने स्माइली से कहा, 'चलो हम कुछ खेल खेलते हैं।' बस फिर क्या था। स्माइली तैयार हो गई। दोनों लुकाछिपी खेलने लगे। हवा का झोंका आता और रोजी पत्तों में छिप जाती, तो दूसरी बार स्माइली। स्माइली के पत्ते बड़े-बड़े थे, तो वह आसानी से छिप जाती थी। रोजी उसे ढूँढ नहीं पाती और उसे गुस्सा आता।

वह सोचती कि जरूर स्माइली उसे परेशान करने के लिए ऐसा कर रही है, वह उससे ज्यादा सुंदर है इसलिए। लेकिन स्माइली क्या करती। भगवान ने ही उसके पत्ते बड़े-बड़े बनाए थे तो उसमें उसका क्या दोष। हाँ, उसे मजा बहुत आ रहा था उस खेल में। जैसे ही हवा चलती, वह अपने पत्तों के बीच न जाने कहाँ गुम हो जाती और रोजी उसे ढूँढ़ती रह जाती। न मिलने पर वह गुस्से से लाल हो जाती। उसका गुलाबी चेहरा लाल होता देख स्माइली को हँसी आती और वह जोर-जोर से खिलखिलाकर हँस पड़ती। उसकी हँसी रोजी को ज्यादा देर तक बर्दाश्त ना हो सकी। उसने सोचा, 'मैं इससे ज्यादा सुंदर हूँ। मैं प्रिंसेस हूँ इसलिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ। मैं अभी इसे मजा चखाती हूँ।' बस फिर क्या था। इस बार जैसे ही स्माइली पत्ते से बाहर आई, रोजी ने उसे अपने काँटों से जकड़ लिया। गुलाब के तने में तो काँटे होते ही हैं। फिर क्या था।

रोजी ने इसका ही फायदा उठाया। उसने अपने नुकीले काँटें स्माइली के चेहरे में चुभो दिए। स्माइली दर्द से कराह उठी। उसका चेहरा लहूलुहान हो गया था। बेचारी कुछ बोल नहीं पाई। वह कुछ कर भी नहीं सकती थी। फिर रोजी ने उसे छोड़ा और घमंड से हँसते हुए बोली, 'स्माइली क्या तुझे पता नहीं। मैं इस गार्डन की प्रिंसेस हूँ। तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे हराने की। मैं कभी किसी से हार नहीं सकती। आखिर मैं इतनी सुंदर भी तो हूँ।'स्माइली बेचारी चुपचाप अपनी जगह पर खड़ी रही। घमंडी रोजी के आगे वह क्या कर पाती।

कुछ दिन बीते। उस गार्डन का जो मालिक था, उसके बेटे का बर्थडे आने वाला था। बर्थडे में बड़े-बड़े मेहमान भी आने वाले थे। इसलिए घर को सजाया जा रहा था। उस बगीचे के जितने भी फूल पौधे थे, सभी को सजावट में लगाया जा रहा था। रोजी खुश थी। वह सोच रही थी, 'अरे वाह कितना मजा आएगा। मैं तो फूलों के राजा की बेटी हूँ। सभी लोगों को अच्छी लगती हूँ। वहाँ पार्टी में मुझे कितना सम्मान मिलेगा। घर के गुलदस्ते में जब मुझे सजाया जाएगा, तो सभी आने वाले लोग मुझे ही देखेंगे। मुझे प्यार करेंगे। फिर तो मान और भी बढ़ जाएगा। ये सोचकर वह और भी घमंडी बन गई थी।

बर्थडे वाले दिन सुबह-सुबह कुछ लोग गार्डन में आए और फूलों को तोड़कर ले जाने लगे। रोजी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी। मन ही मन वह खुशी से पागल हुई जा रही थी लेकिन ये क्या। जैसे ही उन लोगों ने उसे तोड़ना चाहा, उसके नुकीले काँटे उनकी उँगली में चुभ गए। उनके मुँह से चीख निकल पड़ी। उन लोगों में से एक ने कहा, 'अरे इस गुलाब के फूल में तो ढेर सारे काँटे हैं। इसे कैसे तोड़ेंगे और तोड़ भी लें, तो इसे रखेंगे कहाँ। इसके काँटे अगर बच्चे को चुभ गए तो। अगर किसी बच्चे ने इसे छू लिया, तो उसका बुरा हाल हो जाएगा। नहीं, नहीं, ये फूल ठीक नहीं रहेगा, चलो दूसरे फूल देखते हैं।' फिर वे आगे बढ़ गए।

उन्होंने रोजी को तोड़ा ही नहीं। ये देखकर रोजी तो गुस्से से पागल ही हो गई। वह क्या सोच रही थी और क्या हो गया। उसने सोचा, मैं इतनी सुंदर हूँ, फिर मुझे ये लोग पार्टी में सजाने के लिए क्यों नहीं ले गए?' उसका इतना बड़ा अपमान आज तक किसी ने नहीं किया था। लेकिन अभी वह कुछ कर नहीं सकती थी। अपमानित होकर उसके आँसू निकल आए थे।

दूसरी ओर फूल तोड़ने वाले लोग जब कुछ दूर आगे बढ़े तो देखा, स्माइली अब भी मीठी-मीठी स्माइल कर रही थी। सुबह की खिली खिली धूप में उसकी सुंदरता और बढ़ गई थी। उन लोगों ने सोचा, पार्टी की सजावट में ये सूरजमुखी का फूल बहुत काम आएगा। उन्होंने स्माइली को प्यार से देखा। उसे देख उनके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी। उन्होंने उसे बड़े प्यार से तोड़ा और अपने साथ ले जाने लगे। स्माइली तो खुशी से झूम ही उठी। उसने सोचा, चलो वह किसी के काम तो आई। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और ज्यादा फैल गई थी। लेकिन ये मुस्कुराहट रोजी की तरह घमंड वाली मुस्कुराहट नहीं थी। उसे इस तरह सम्मानित देखकर रोजी का घमंड चूर-चूर हो गया था। वह जोर-जोर से रोने लगी।

उसे रोते देख स्माइली ने उससे कहा, 'इस दुनिया में भगवान ने सबको कुछ अच्छाई के साथ कुछ बुराई भी दी है। इसलिए सभी बराबर हैं। तुम्हारी सुंदरता के साथ तुम्हारे काँटे भी हैं। इसलिए तुम भी सबकी तरह हो। कभी अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा नहीं समझना चाहिए। ना ही कभी अपने ऊपर घमंड करना चाहिए।'

रोजी यह सुनकर सोचने लगी, सचमुच आज प्रिंसेस वह नहीं बल्कि स्माइली बन चुकी है। हाँ, उस दिन स्माइली प्रिंसेस बन गई थी।

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