मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

भागवत: ९१: भगवान अपने भक्तों का ध्यान रखते हैं



पिछले अंक में हमने पढ़ा जड़भरत को भील नरबलि देने ले गए। जड़भरत भीलों के साथ चले और जैसे ही भीलों के राजा ने जड़भरत की बलि देने की कोशिश की तो वहां भद्रकाली प्रकट हुई और भद्रकाली ने उन लोगों का वध किया। यह प्रसंग हमको बता रहा है कि जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता ही है। इस घटना के बाद भी जड़भरत वैसे के वैसे ही रहे।
एक बार सौवीर देश का राजा रघुगण पालकी में बैठकर कपिल मुनि के यहां आत्मज्ञान प्राप्त करने जा रहा था। कहार उसकी पालकी उठाए हुए थे। एक कहार कुछ डगमगा रहा था, कमजोर था तो जो कहारों का प्रमुख था उसने विचार किया कि कोई अच्छा सा कहार मिल जाए। जड़भरत दिख गए बैठे हुए थे। इसको जोत लेते हैं। इनको कहा भई पालकी उठाओगे तो ये पालकी उठाने लगे।राजा को मालूम नहीं था कि आदमी बदल गया है और जड़भरत बार-बार ये सोच रहे थे कि मेरे पैर के नीचे छोटा कोई जंतु या जानवर दब न जाए। यदि कोई चींटी दिखती तो जड़भरत छलांग लगा लेते।
कभी एक पैर इधर रखते, कभी एक पैर उधर रखते। उस चक्कर में पालकी हिलने लगी और पालकी हिली तो राजा को लगा ये कैसी पालकी चल रही है। राजा ने वहीं से डांट लगाई कौन है ये? ठीक से चल भई कहार, नहीं तो दंड दूंगा।जड़भरत तो वैसे ही चलते रहे और राजा बहुत क्रोधित हुआ। पालकी रुकवाई, नीचे उतरकर आए कहा कौन मूर्ख है ये? इसको कहां से लाए, तो बताया गया कोई आदमी नहीं था, यह बैठा था जोत लिया। राजा ने उस जड़भरत को डांट लगाई। तू जानता नहीं मैं राजा हूं और तुझे इतनी अक्ल नहीं पालकी ऐसे चलाते हैं कूद-फांदकर। जड़भरत ने उत्तर दिया कि पालकी चलाना देह का काम है मेरी आत्मा को इससे कोई लेना-देना नहीं है कि आप राजा हो या कोई और।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें