'विवेक कहाँ हो बेटा? नाश्ता कर लो।' माँ की आवाज सुनकर विवेक आया और नाश्ता करके सो गया। विवेक की माँ भी सारा काम निबटा कर बगीचे में चली गई, पर वहाँ का दृश्य देखकर विवेक की माँ के तो होश उड़ गए। फूल इधर बिखरे हुए थे और पत्तियाँ उधर बिखरी हुई थीं। विवेक के पिताजी कल एक पौधा लाए थे वह भी जमीन पर पड़ा था।

विवेक रोज स्कूल से आता और बगीचे में जाकर पेड़ों को रौंदने लगता। कभी कच्चे जामफलों को अच्छा न लगने पर बगीचे में फेंक देता तो कभी सुगंधित फूलों को बड़ी बेरहमी से तोड़कर सड़क पर फेंक देता। विवेक के पिताजी कभी कोई नया पौधा लगाते तो उसे भी पनपने न देता। विवेक की माँ इससे बहुत परेशान रहती थी। उन्होंने विवेक को कई बार समझाया था पर उसके कान पर जूँ तक नहीं रेंगती थी।
एक दिन विवेक थका-माँदा विद्यालय से आया और भोजन कर सो गया। उसने सपने में देखा कि वह एक बंजर जमीन पर खड़ा था। वहाँ पर कोई हरियाली नहीं थी, न पीने को पानी था। विवेक वहाँ इधर-उधर घूमने लगा पर उसे वहाँ कोई इंसान या पक्षी नजर नहीं आया। वहाँ घूमते हुए उसे कुछ हड्डियाँ और नरकंकाल मिले यह सब देखकर विवेक बहुत डर गया और वह भागने लगा।
भागते-भागते उसे एक जगह कुछ घास उगी हुई दिखी। थोड़ा और आगे जाने पर उसे कुछ लोग मिले। वे बुरी तरह तड़प रहे थे। विवेक के पूछने पर उन्होंने बताया कि लोगों के पेड़ काटने से वर्षा नहीं होती और वर्षा न होने के कारण पीने का पानी भी नहीं मिलता। पेड़ मिट्टी के कटाव को भी रोकते थे।
वर्षा होने के कारण तापमान में ठंडक आती है अब पेड़ खत्म हो जाने के कारण सूर्य की तेज गरमी से हम झुलस गए हैं।' इन लोगों की दशा देखकर विवेक को रोना आ गया और तभी एक संत आए और उन्होंने विवेक के सिर पर हाथ रखकर कहा - 'विवेक, जहाँ तुम सबसे पहले गए थे वो उस समय का भविष्यकाल है, जब धरती पर रहने वाले जीव खत्म हो गए थे और जहाँ तुम अभी हो ये वो जगह है जहाँ लोग धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं और ये सब उन पेड़ों के काटने के कारण हो रहा है। अगर तुम पेड़ों को लगाओगे और दूसरों को भी इसकी शिक्षा दोगे तो हमारी पृथ्वी हमेशा हरी भरी रहेगी।'
इतना कहकर संत गायब हो गए। यह देख विवेक जोर-जोर से रोने लगा। अचानक उसे ऐसा लगा कि मुझे कोई हिला रहा है और उसकी नींद खुल गई। वहाँ उसकी माँ खड़ी थी। विवेक अपनी माँ से लिपट गया और बोला - 'माँ मैं अब पेड़ लगाऊँगा।' यह सुनकर माँ आश्चर्य में पड़ गई।
संगठन में शक्ति है
उमराव सिंह तँवर
एक था नंदनवन। उस जंगल का राजा चीता था। इसके कुछ दिनों पहले जंगल का राजा शेर था। लेकिन शेर के जाने के बाद चीता जंगल का राजा बन बैठा। इनका आतंक जंगल में चारों ओर फैला हुआ था। एक दिन जंगल में एक नन्हा चूहा आया तथा उसे जब उन जानवरों के दुख का पता चला तो उसने कहा कि - संगठन में शक्ति है और सभी से मिलकर चोरी-चोरी चीते को बिना बताए शेर की खोज करने को कहा।'
चूहे को जंगल का सबसे बुद्धिमान प्राणी मानकर जंगल के सभी जानवरों ने उसे मुखिया बनाया तथा उसके बताए अनुसार कई टोलियाँ बनाईं। टोलियों के मुखिया बंदर, बिल्ली, भालू, जिराफ आदि को बनाकर चारों ओर शेर की खोज में लगा दिया।
कई दिनों तक शेर का कोई पता नहीं चला। इधर चीते का आतंक और भी अधिक फैल रहा था तथा पूरे जंगल के सभी जानवर दुखी थे। अब वे शेर की खोज करते-करते थक गए थे। सभी एक पेड़ के नीचे बैठकर निर्णय ले रहे थे कि क्या करें? इतने में आसमान से एक बाज उड़ता हुआ आया और कहा कि 'यहाँ से 20 कोस दूर मैंने शेर के नन्हे बच्चों को मस्ती करते हुए देखा था, शायद शेर वहीं रहता हो।'
बाज की इन बातों से जंगल के जानवरों को कुछ आशा बँधी तथा सभी जानवर शेर को खोजने निकल पड़े। आगे-आगे बाज था एवं सभी उसके पीछे-पीछे चलने लगे। वहाँ जाकर सभी जानवरों ने शेर के बच्चों द्वारा शेर को बाहर बुलाया। शेर ने अपने घर पर अपने ही जंगल के सभी जानवरों को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने आने का कारण पूछा, तो जानवरों ने अपनी व्यथा बताई। शेर को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। उसने सभी जानवरों को आश्वासन दिया और कहा कि - 'मैं जल्दी ही उस चीते को सबक सिखाऊँगा और तुम्हें उसके आतंक से मुक्त कराऊँगा। सभी जानवर शेर की बात सुनकर प्रसन्न हो वापस अपने जंगल में आ गए। दूसरे दिन शेर उस जंगल में आया। चीते को इस बात का पता चला कि यहाँ शेर आया है, तो उसने शेर से लड़ाई करनी चाही।
शेर दयालु स्वभाव का था उसने चीते से कहा - कि 'इस जंगल के राजा बेशक तुम्हीं रहो लेकिन इन जानवरों पर इतना अत्याचार मत करो।'
इस बात को सुनकर चीते ने घमंड के साथ कहा कि - 'तुम कौन हो, मेरे काम में दखल देने वाले। मैं जो भी करूँगा अपनी मर्जी से करूँगा क्योंकि मैं इस जंगल का राजा हूँ।'
शेर ने कहा कि - 'यह कहावत बरसों पुरानी है कि 'जंगल का राजा शेर होता है' लेकिन फिर भी मैं तुम्हें इस जंगल का राजा बनाना चाहता हूँ।'
तो चीता तपाक से बोला - 'पहले के जानवर मूर्ख थे, अब ऐसा नहीं होगा, अब इस जंगल का राजा मैं हूँ अगर तुम यहाँ के राजा बनना चाहते हो तो मुझसे लड़ो और जो जीतेगा वही यहाँ का राजा बनेगा।
इस प्रकार शेर ने बहुत समझाया लेकिन चीता नहीं माना और आखिर दोनों लड़ने लगे। बहुत देर तक लड़ने के पश्चात शेर ने चीते को मार गिराया। मरते-मरते चीते ने कहा कि - जंगल का राजा शेर है।
इतना कहने के पश्चात उसने प्राण त्याग दिए और सभी ने शेर से आग्रह किया कि आप यहीं रहें और हमारे जंगल की ऐसे दुष्टों से रक्षा करें।
उनका आग्रह स्वीकार कर शेर अपने बच्चों और पत्नी सहित उस जंगल में रहने लगा। उसी रात जंगल के सभी जानवरों ने मिलकर दावत दी और शेर को बुलाकर अनुरोध किया कि - 'आप अपने हाथों से बाज, नन्हा चूहा, बंदर, भालू, बिल्ली, जिराफ इन सभी जानवरों को पुरस्कार दें क्योंकि इन्हीं के नेतृत्व में हम यह कार्य कर पाए हैं।'
यह सुनकर शेर बोला - 'इस लड़ाई में इन्होंने तो योगदान दिया ही है, किंतु सबने भी चीते से छुपकर मेरी खोज की तथा चीते का आतंक सहा। बुरे कर्मों का फल बुरा होता है। तुम सभी के प्रयासों से ही मैं पुन: यहाँ आया हूँ और राजा बना हूँ अब सभी जानवर प्रसन्न हैं। कोई भी कार्य सभी को मिलकर करना चाहिए क्योंकि 'संगठन में शक्ति है।'
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