सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

भागवत: ९४-९६: ऐसे बचें नर्क जाने से


शुकदेवजी राजा परीक्षित को स्वर्ग-नर्क का भेद बता रहे हैं। उन्होंने कहा- यदि आप पतित हो गए आचरण से तो आप नर्क में टपक गए और उठ गए सदाचरण से ऊपर तो यही स्वर्ग है। परीक्षित ने पूछा शुकदेवजी से- आप तो इस बात का उत्तर दो कि नर्क जाने से कैसे बचें ? उन्होंने बताया कि नर्क जाने से बचना हो तो तीन काम करो ध्यान करो, अर्चन करो और नाम लो। ये तीन काम करिए। थोड़ा सा ध्यान लगाइएगा, ध्यान लगाते ही आपकी ऊर्जा उपर उठने लगती है। ऊर्जा ऊपर उठी तो आपका चरित्र ऊपर उठेगा। यदि आप नाम, स्मरण, ध्यान ठीक से नहीं कर रहे हैं तो आप नीचे जा रहे हैं। आचरण से, क्रोध कर रहे हैं, काम कर रहे हैं, छल कर रहे हैं लोगों से तो आप नर्क में जा रहे हैं।

अब शुकदेवजी अजामिल की कथा सुना रहे हैं। अजामिल नाम का एक ब्राह्मण था, 80 वर्ष का। उसने अपना जीवन कैसे जिया अब ये बता रहे हैं।परीक्षित ने पूछा शुकदेवजी आपने साधक पुरूषों की मुक्ति और निवृत्ति का मार्ग मुझे बताया जिससे स्वर्ग मिलता है। स्वर्ग पाने पर फिर जन्म मरणमय संसार में आना पड़ता है। अब मुझे वे साधन बताइये कि जिससे मनुष्य नर्क जाने से बच जाए।शुकदेवजी बोले- हे राजन। जो पुरूष मन, वाणी और कर्म से किए इस जन्म में मनु आदि शास्त्रों में कहे अनुसार प्रायश्चित नहीं करेगा वह तो नर्क में जाएगा।
इसलिए मानव को चाहिए कि वह इस जन्म में किए पापों का प्रायश्चित इसी जन्म में कर ले।प्रायश्चित का अभिप्राय है पथ्य विचार। जिस प्रकार पथ्य करने वाले को रोग नहीं घेर पाता उसी प्रकार धर्मज्ञ, श्रद्धावान, धीर पुरुष अपनी तपस्या, ब्रह्मचर्य, इन्द्रिय दमन, मन की स्थिरता, दान, सत्य, भीतर-बाहर की पवित्रता तथा यम, नियम इन नौ साधनों से मन, वाणी और शरीर द्वारा किए गए बड़े से बड़े पापों को भी नष्ट कर देते हैं।

नेत्रों से प्रवेश करता है काम
Source: पं. विजयशंकर मेहता
भागवत के छठे स्कंध में तीन प्रकरण हैं। पहला है ध्यान प्रकरण, यह 14 अध्यायों में वर्णित है। 5 कर्ममेंद्रियां, 5 ज्ञानेंद्रियां, मन, बुद्धि चित्त और अहंकार। दूसरा प्रकरण है अर्चन प्रकरण। दो अध्यायों में सूक्ष्म, अर्चन, स्थूल अर्चन का वर्णन किया गया है। तीसरा प्रकरण है नाम। गुण संकीर्तन और नाम संकीर्तन का तीन अध्यायों में वर्णन किया गया है।
भागवत में शुकदेवजी अब अजामिल की कथा सुना रहे हैं। एक ब्राह्मण था अजामिल नाम का। जाति का ब्राह्मण पर कर्मों से दुष्ट था। लूटपाट करता, साधु-संतों को लूट लेता। एक दिन घूमने गया वो। एक जंगल में जाकर देखा कि एक कुंड में एक व्यक्ति, एक वैश्या के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। इसने उस वैश्या को भीगा हुआ देखा तो इसकी आंख में काम आ गया और कामांध हो गया। उसने सोचा ये वैश्या मुझे प्राप्त हो जाए और उसने उसको प्राप्त कर लिया और घर ले आया। फिर उससे उसकी संतानें हुईं और जो सबसे छोटी संतान थी उसका नाम उसने नारायण रखा।
देखिए हमें समझने की यह बात है कि अजामिल वन में गया उसने किसी को नहाते देखा और उसको काम जाग गया। काम जीवन में जब भी आएगा नेत्रों से आएगा। काम नेत्रों से प्रवेश करता है। इसलिए क्या देखा जाए ये जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण है। क्या देखा जाए, कितना देखा, कब देखा जाए और कैसे देखा जाए आदमी इस मामले को लेकर बिल्कुल ध्यान ही नहीं देता।
जो भक्त हैं, जो साधक हैं वो इस बात को साधना के रूप में लें कि क्या देखा जाए? कितना देखा जाए? क्योंकि दृष्टि से जब दृश्य का प्रवेश होता है तो वो दृश्य अपना प्रभाव लेकर आता ही है आप उससे वंचित नहीं हो सकते हैं।

जो भी देखें सोच-समझ कर देखें

हमारे यहां एक कथावाचक हुए हैं डोंगरे महाराजजी। बड़े सिद्ध संत थे। जब वे भागवत कहा करते थे तो आंखे बंद रखते थे। लोग उनसे पूछते कि आप आंख बंद करके क्यों बोलते हैं तो वह कहते थे कि जब मैं भागवत बोलता हूं तो मैं परमात्मा के साथ, भागवत के प्रसंगों के साथ जीता हूं। डोंगरेजी कहते हैं मैं तो देख नहीं पाता। बालकृष्ण का जन्म हुआ मुझे लगता है मैं वहीं था। तुलसीदास ने रामकथा ऐसे ही लिखी थी। सामने दृश्य घट रहा है और लिख ली।
हमें ये समझना चाहिए कि क्या देखना है और कितना। दृष्टि को विश्राम दीजिए अकारण न देखें। पहले भारत में संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो बच्चे लालन-पालन में माता-पिता के अलावा दादा-दादी, नाना-नानी के साथ सोते थे। बूढ़े नाना-नानी, दादा-दादी अपने नाती-पोतों को महाभारत की कोई रामायण की कहानी सुनाते और बच्चे सो जाते। अब हो गए छोटे-छोटे परिवार तो बच्चों को कौन कहानी सुनाए। इसलिए सावधान रहिए। क्या देख रहे हैं और क्या दिखा रहे हैं। यह दृश्य कहीं न कहीं आपके मानस पटल पर प्रभाव डालेंगे। इसीलिए तो कहते थे बच्चों को हिंसात्मक फिल्म न दिखाएं क्यों, क्योंकि वह कहीं न कहीं मानस पटल पर आकर क्रिया में आ जाती है।
इसलिए सावधान रहिए क्या देखा जाए?अजामिल की कथा हमको ये समझा रही है कि क्या देखें? कितना देखें और जरूरत नही है तो न देखें। हमने पिछले अंक में पढ़ा कि अजामिल नाम का एक ब्राह्मण था जो अत्यंत दुष्ट प्रवृत्ति का था। उसने एक वैश्या के साथ संबंध बनाए और जो संतान उत्पन्न हुई उनमें से सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण रखा। इसके आगे की कथा हम कल पढ़ेंगे।

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