सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

रिश्तों की कश्मकश से भरी किताब


इंसानी रिश्तों पर कई किताबें, ग्रंथ रचे गए हैं। इंसानी रिश्ते जितने सुलझे दिखाई देते हैं, भीतर से उतने ही उलझे हुए होते हैं। हिंदू संस्कृति में रिश्तों पर सबसे बड़ा ग्रंथ अगर कोई है तो वह निर्विवाद रूप से महाभारत है। एक परिवार या कुटुंब में जितने रिश्तों पर लिखा जा सकता है, वह सारे रिश्ते महाभारत में मिलते हैं। लोग महाभारत को युद्ध पर आधारित ग्रंथ मानकर छोड़ देते हैं लेकिन यह रिश्तों का ग्रंथ है।

महाभारत की खासियत यह है कि इसमें हर रिश्ते के सारे पहलू मौजूद हैं। पिता-पुत्र के आदर्श रिश्ते भी हैं तो ऐसे पिता पुत्र भी हैं जिनके बीच सिर्फ कपट है। महाभारत रिश्ते बनाना तो सिखाती भी है, उसे निभाने के लिए कितना समर्पण चाहिए यह भी बताता है। इस ग्रंथ में सारे जायज और नाजायज रिश्ते हैं। कई रिश्ते तो ऐसे जो आज के दौर में समझना मुश्किल है। शायद इन्हीं रिश्तों के कारण महाभारत को घर में रखने से मना किया गया है। इन रिश्तों की पवित्रता और पारदर्शिता को केवल इस ग्रंथ को पढ़कर ही समझा जा सकता है।
पांचवा वेद
महाभारत को पांचवा वेद माना गया है। महर्षि वेद व्यास ने इसे इसी के कालखंड में लिखा था और खुद वेद व्यास महाभारत की कथा की शुरुआत से आखिरी तक एक पात्र के रूप में मौजूद भी हैं। वेदों का सारा ज्ञान वेद व्यास ने इस ग्रंथ में डाल दिया है। हिंदू धर्म ग्रंथों में यह आकार और घटनाक्रम दोनों के अनुसार सबसे बड़ा और रोचक ग्रंथ है।

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