सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

सिंहाचलम: भक्त प्रहलाद ने ही बनवाया था यह मंदिर



भगवान विष्णु ने धरती से पापियों के नाश के लिए 24 अवतार लिए। उन्हीं में से एक अवतार था- नृसिंह अवतार।
उन्होंने यह अवतार अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की रक्षा और हिरण्यकशिपु के अत्याचारों से धरती को बचाने के लिया था।
यूं तो नृसिंह भगवान के मंदिर सभी जगह स्थापित हैं लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है जिसे स्वयं प्रह्लाद ने बनवाया था। वह मंदिर है- सिंहाचलम।
भगवान श्रीवाराह लक्ष्मी-नृसिंह स्वामी का मंदिर होने के कारण सिंहाचलम एक अत्यन्त प्रसिद्ध तीर्थ है।
कहते हैं कि पुराने समय में हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को समुद्र में गिराकर उसके ऊपर इस पर्वत को आरोपित कर दिया था, किन्तु भगवान विष्णु ने स्वयं प्रकट होकर इस पर्वत को धारण किये रखा और प्रह्लाद को बचा लिया।
तब प्रह्लाद ने स्वयं इस मूर्ति की स्थापना और उपासना की थी। मंदिर में यहां श्रीमूर्ति है। वह वाराह मूर्ति जैसी दिखती है किन्तु उसे नृसिंह मूर्ति कहा जाता है।
यह मूर्ति बारहों महीने चन्दन से ढ़की रहती है। वैशाख मास में अक्षय तृतीया के दिन इस मूर्ति का चन्दन हटाया जाता है। उसी दिन इसके दर्शन हो सकते हैं। मूर्ति के निजस्वरूप का दर्शन करने पर भक्तों की मान्यता है कि इससे निश्चित मुक्ति प्राप्त होती है।
मंदिर की चाहारदीवारी में गोपुरों की रचना की गई है। मंदिर के उत्तर में कल्याण मण्डप है, इस मण्डप में चैत्रशुक्ल एकादशी के दिन प्रत्येक वर्ष भगवान का विवाह सम्पन्न किया जाता है।
उस दिन भगवान विष्णु के अवतार मत्स्य, धन्वन्तरि, वरुण और भगवान नृसिंह की अनेक मूर्तियां इस मण्डप में रखी जाती हैं।
इस पहाड़ी में एक झरना है जिसे गंगाधार कहते हैं। दर्शनार्थी इसी के जल में स्नान करके मंदिर में प्रवेश करते हैं। इसी झरने का जल मंदिर में उपयोग में आता है।
कैसे पहुचें- हावड़ा-वाल्टेयर लाइन पर वाल्टेयर से केवल 7 किलोमीटर पहले सिंहाचलम स्टेशन पड़ता है। स्टेशन से मंदिर की पहाड़ी 5 किलोमीटर दूर है। विशाखापत्तनम से भी यहां के लिए मोटर बसें चलती हैं।

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