शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

यहां प्रतिष्ठित हैं परशुरामजी की मां

परशुरामजी को विष्णुजी का अंशावतार कहा जाता है। उनका क्रोध बड़ा भयंकर था। कहते हैं कि वे क्रोध में किसी से नहीं संभलते थे।

वे बड़े पितृभक्त थे। पिता की आज्ञा मानना वे अपना परम कर्तव्य समझते थे। पिता की आज्ञा में ही तो इन्होंने अपनी माता को मार डाला था।
हालांकि बाद में पिता के ही आशीर्वाद से ही इन्होंने माता को जीवित करने का वरदान भी मांग लिया था। इनकी माता का मंदिर तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है।
यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता से भी परिपूर्ण है।
तुंगभद्रा नदी के एक तट पर देवी के मस्तक की और दूसरे तट पर धड़ की पूजा होती है। इन्हें लोग श्रीरामचण्डीश्वरी भी कहते हैं। जब इन्होंने माता को मारा और पुन: जीवित करवाया तो उसी समय के स्मारक के रूप में मस्तक और धड़ की अलग-अलग स्थानों पर पूजा होती है।
यह क्षेत्र किष्किन्धा क्षेत्र में सबसे प्राचीन माना जाता है। यहां वैशाख-शुक्ल पंचमी से नवमी तक मेला लगता है। इन्हें लोग व्याघ्रेश्वरी देवी भी कहते हैं। इधर के लोगों में इनका बड़ा सम्मान है।
कैसे पहुंचे- दक्षिण रेलवे की मसुलीपट्टम-बैजवाड़ा हुबली लाइन पर हासपेट स्टेशन से 5 किलोमीटर और उससे आगे के मुनीराबाद स्टेशन से यह स्थान 2 किलोमीटर दूर है।
मुनीराबाद से तुंगभद्रा बांध लगभग 5 किलोमीटर दूर है।

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