बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

भागवत: ९८: प्रेम से पुकारो, भगवान अवश्य आएंगे


भागवत: 93- स्वर्ग -नर्क का भेद बताती है भागवत अब तक हमने पढ़ा अजामिल ने अपने सबसे छोटे बेटे का नाम नारायण रखा। जब यमदूत उसके प्राण हरने आए तो वह नारायण-नारायण चिल्लाया। यह सुनकर भगवान विष्णु के देवदूत दौड़े आए। देवदूत आए तो उन्होंने देखा सामने खड़े थे यमदूत, इधर खड़े देवदूत। ये यमराज के दूत, ये भगवान के भेजे हुए दूत, तो यमदूत ने कहा आप कैसे? वे बोले इसने बोला नारायण-नारायण, हम लेने आए। वो बोले- आप नहीं ले जा सकते, जब तब ये नारायण-नारायण बोलेगा आप नहीं ले जा सकते।
उन्होंने कहा ये तो संभव नहीं। दोनों में युद्ध हो गया और पिटाई कर दी देवदूतों ने यमदूतों की। कूटे-पीटे यमदूत यमराज के पास पहुंचे । यमराज से उन्होंने देवदूतों की शिकायत की । यमराज बोले क्यों नहीं ला पाए? वो कैसे आ गए? क्या कर रहा था वो? दूत बोले वह बोल रहा था नारायण-नारायण। यमराज ने बोला ठीक है जब आदमी सत्संग कर रहा हो, गुरु के पास बैठा हो या भगवान का नाम ले रहा हो तो हमें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
यह कथा का सार है उसको नहीं मालूम था क्या करना है लेकिन वो बोल रहा था भाव है और भगवान भाव के भूखे हैं। देवदूत ने अजामिल को जब ये जागृति दी और उसको होश आया कि नारायण कहने से मेरी जान बच गई तो मैं कितना मूर्ख था। जीवन गंवा दिया मैंने नारायण बोला और मुझे पर परमात्मा का अनुग्रह हो गया तो अब मैं नारायण-नारायण ही बोलूंगा। इस तरह भगवान ने नाम जपने से ही अजामिल का उद्धार कर दिया।

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