शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

त्रिपुरसुंदरी: कछुए जैसा है मंदिर



जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में कूदकर माता सती ने देह त्यागी और शिव उनकी देह लेकर निकले तो जहां उनका सीधा पैर गिरा वहां स्थापित हुआ त्रिपुरसुंदरी शक्तिपीठ। इसी शक्ति पीठ के नाम पर इस राज्य का नाम पड़ा त्रिपुरा। यह शक्तिपीठ भारत के पूर्वी राज्य त्रिपूरा में स्थित है।
इस शक्तिपीठ को कुर्मापीठ भी कहा जाता है क्योंकि मन्दिर का प्रांगण कछुए की तरह है। सुंदर मंदिर के अंदर माता काली की लाल-काली रंग की कास्टिक पत्थर की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति की सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर में ही एक छोटी प्रतिमा भी हैं, जिसे मां कहा जाता है। इनकी मूर्ति छोटी-सी है। यहा देवी की शक्ति त्रिपुरसुंदरी कही गई है तथा भैरव त्रिपुरेश है।
ऐसे बनी त्रिपुरसुंदरी शक्तिपीठ
ऐसी मान्यता है कि त्रिपुरा के महाराज धन्यमाणिक्य को माता त्रिपुरेश्वरी ने सपने में दर्शन दिए थे। देवी ने महाराजा से कहा था कि चित्तागांव के पहाड़ पर मेरी मूर्ति विराजित हैं। उसे आज की रात में ही लाना होगा। कहते हैं महाराजा ने तत्काल अपने सैनिकों को चित्तागांव, जो कि वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है, भेजा। उन्होंने सैनिकों से उसी रात मूर्ति लाने को कहा था लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी वे उसे तय स्थान पर ला नहीं सके। सैनिक जब मूर्ति को लेकर माताबाड़ी तक पहुंचे तभी सुबह हो गई। माता के कहे अनुसार ही वहीं पर उनका मंदिर स्थापित कर दिया। यही मंदिर आज त्रिपुरेश्वरी माता मंदिर के रूप में विख्यात है।

2 टिप्‍पणियां: