सोमवार, 1 नवंबर 2010

बनो दीप सा उजला व धन सा प्यारा

दीप पर्व दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव धनतेरस से शुरु होकर भाई-दूज को पूरा होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह कृष्णपक्ष यानि अंधियारे काल के तेरहवें दिन से लेकर शुक्लपक्ष यानि उजले काल के दूसरे दिन तक मनाया जाता है। इन पांच दिनों में दीप जलाने यानि दीपदान के साथ धन साधना का महत्व है।

असल में इन पांच दिनों में धन की भी पांच रुपों में पूजा की जाती है। धन के यह रुप हैं पहले दिन स्वास्थ्य, दूसरे दिन शरीर, तीसरे दिन धन, समृद्धि रुपी लक्ष्मी, चौथे दिन गो धन, पांचवे दिन भाई-बहन के रिश्तों का धन। धन के साथ इन दिनों खुशहाल जीवन के लिए यम पूजा और दीपदान भी किया जाता है।
दीपोत्सव पर धन साधना संदेश देती है कि हमारी परंपरा में धन को लक्ष्मी माना गया है। लक्ष्मी का स्वभाव चंचल माना जाता है। चंचलता धन का भी स्वभाव होती है। वह चलता रहता है। धन ऊर्जावान होता है जो जीवन के लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक होता है। इसी तरह जीवन में भी गति आवश्यक है।
हम सदा सक्रिय रहें, ऊर्जा से भरे रहें। निरंतर आगे बढऩे से ही व्यक्ति का विकास होता है। किंतु जीवन में बढ़ते रहने के लिए यह भी जरूरी है कि हम निरोग रहें। इसके लिए मेहनत और आत्म-अनुशासन अहम है। इससे हम तनावों से दूर स्वस्थ रहकर लंबी उम्र प्राप्त करेंगे। पुरुषार्थ, स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन भी धन है जिनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
इसी तरह माना जाता है कि इन दिनों शाम के वक्त यम को दीपदान और भोग अर्पित करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है। इसमें संकेत है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन की रक्षा के दो उपाय हो सकते हैं- पहला ज्ञान, विद्या या शिक्षा से कुशल, दक्ष, योग्य बनें और दूसरा शरीर को अच्छी खुराक मिले, तन पुष्ट रहे। यहां दीपदान प्रकाश यानि ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक है और भोग उचित खुराक का। पहला उपाय व्यक्ति को अकाल मृत्यु यानि पतन से बचाता है एवं दूसरा उपाय शरीर की अकाल मृत्यु से रक्षा करता है।
ऐसा होने पर ही दीप की तरह आपके चरित्र और सफलता की चारों और चमक बिखरेगी और आप धन की तरह जन-जन के प्यारे बनेंगे।

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